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हिमाचल में कर्मचारियों से ज्यादा हो जाएंगे पेंशनर

हिमाचल में कर्मचारियों से ज्यादा हो जाएंगे पेंशनर

कर्मचारियों से ज्यादा हो जाएंगे पेंशनर, चाहिए 90,000 करोड़

वित्त आयोग के सामने हिमाचल सरकार ने किया ओपीएस बहाली का बचाव

हिमाचल में सरकारी कर्मचारी नेगेटिव ट्रेंड के साथ बेशक कम हो रहे हैं, लेकिन जीवन प्रत्याशा यानी लाइफ एक्सपेक्टेंसी बढऩे के कारण पेंशनरों की संख्या लगातार बढ़ रही है। 16वें वित्त आयोग के सामने रखे गए सरकारी आंकड़े बताते हैं कि आज जो पेंशनर 1,89,466 हैं, वे वर्ष 2030 में 2,38,827 हो जाएंगे। सरकारी नौकरी में नेगेटिव ट्रेंड ऐसा ही रहा, तो इसी अवधि में पेंशनर कर्मचारियों से ज्यादा हो जाएंगे। इसी कारण आशंका है कि यदि वित्त आयोग से मदद नहीं मिली, तो ट्रेजरी के लिए सबसे बड़ी चिंता पेंशन बन जाएगी। इस पांच साल की अवधि में सिर्फ पेंशन के लिए ही 90,000 करोड़ रुपए चाहिए। यदि पिछले पांच साल की ही बात करें, तो वर्ष 2017-18 में जहां कुल खर्च में से पेंशन सिर्फ 13 फीसदी थी, ओल्ड पेंशन लागू होने के बाद वह अब 17 फीसदी हो गई है। उधर,कर्मचारी वेतन का खर्च 27 फीसदी से घटकर 25 फीसदी हो गया है।

16वें वित्त आयोग के सामने राज्य सरकार ने ओल्ड पेंशन को लागू करने के फैसले को डिफेंड भी किया है। मेमोरेंडम में राज्य सरकार की तरफ से तर्क दिया गया है कि ओल्ड पेंशन को सोशल सिक्योरिटी एक्सपेंडिचर की तरह लिया जाए। एनपीएस में रिटायर हो रहे कर्मचारियों को कम अवधि के कारण सोशल सिक्योरिटी पेंशन से भी कम पैसे मिल रहे थे। हिमाचल में सरकारी सेवा में एंट्री भी लेट होती है और अनुबंध या बैचवाइज नियुक्ति के कारण एनपीएस कंट्रीब्यूशन भी कम था। सरकार ने अपने मेमोरेंडम में माना है कि ओल्ड पेंशन लागू करने से वित्तीय भार बढ़ेगा, इसलिए वित्त आयोग से अपील की गई है कि राज्य की पेंशन देनदारी को देखते हुए इसके एक्चुअल एक्सपेंडिचर की पूरी भरपाई कर दी जाए।

ओल्ड पेंशन पर फायनांस कमीशन का रुख : फायनांस कमीशन ने राज्य सरकार की ओर से दी गई प्रेजेंटेशन के वक्त ओल्ड पेंशन पर अलग से स्पेसिफिक कुछ नहीं कहा। आयोग ने पहले ही केंद्र सरकार और राज्य सरकार के प्राथमिकता क्षेत्र अलग रखने के संकेत दे दिए थे, लेकिन प्रेस वार्ता में इस सवाल के जवाब में फायनांस कमीशन चेयरमैन डा. अरविंद पनगढिय़ा ने कहा कि आयोग ओल्ड पेंशन और फ्रीबीज के मसले को एड्रेस करेगा, क्योंकि ये दोनों गंभीर मामले हैं और इनके दूरगामी इफेक्ट हैं। (एचडीएम)

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