नंगे पैर थाने पहुंची बूढ़ी महिला, बोली- चप्पल नहीं, पांव जल रहे..फिर जवान ने जो किया दिल छू लेगा

इंसानियत एक ऐसी चीज है जो आजकल बहुत कम देखने को मिलती है। हालांकि दुनिया में आज भी कुछ गिने चुने अच्छे लोग मौजूद हैं। जब इनकी नेक दिली की कहानियां सामने आती है तो हमे भी कुछ अच्छा करने की प्रेरणा मिलती है। आईपीएस अधिकारी नवनीत सिकेरा ने ऐसी ही एक दिल छू लेने वाली कहानी साझा की है। सिकेरा अक्सर पुलिस जवानों से जुड़ी दिलचस्प स्टोरीज सोशल मीडिया पर साझा करते रहते हैं। इस बार उन्होंने भरी गर्मी में नंगे पैर थाने पहुंची एक बूढ़ी महिला की कहानी साझा की है।

नीरज कुमार यादव नाम के एक यूपी के जवान हैं। उन्होंने एक बूढ़ी और गरीब महिला के चेहरे पर मुस्कान लाकर सबका दिल जीत लिया। आईपीएस नवनीत सिकेरा ने नीरज यादव की एक प्रेरणादायक कहानी अपने फेसबुक वॉल पर साझा की है। कहानी की शुरुआत भयंकर गर्मी के बीच भरी दोपहर से होती है। करीब 2 बजे थे। एक बूढ़ी महिला थाने में नंगे पैर आती है। उसकी उम्र 100 से भी ऊपर लग रही होती है।

चप्पल नहीं है लाला, दिला दो

इस बूढ़ी अम्मा को देख ऐसा लगा जैसे वह कुछ कहना चाहती थी। ऐसे में नीरज यादव ने उन्हें अपने पास बुलाया और पानी पिलाया। फिर वह बोले ‘हां दादी। अब बताओ। क्या बात है?’ इस पर दादी बोली ‘लाला मेरे पांव जल रहे हैं। हमारे पास चप्पल नहीं है। हमें एक जोड़ी चप्पल ला दो।’ यह सुन नीरज बोले ‘ठीक है दादी। अभी ला देता हूँ।’ इसके बाद उन्होंने एक जोड़ी चप्पल मँगवाकर दादी के पैरों में पहना दी।

नीरज ने फिर दादी से पूछा ‘अम्मा कुछ खाओगी?’ इस पर अम्मा ने सिर हिला मना कर दिया। हालांकि जब नीरज ने बार-बार पूछा और कुक खाने पर जोर दिया तो दादी कान के पास आकर बोली ‘बस 5 रुपए के अंगूर मंडवा दो लाला।’ फिर निर्जन ने एक किलो अंगूर मंगवाकर उन्हें दे दिया। इतने सारे अंगूर देख दादी बोली ‘लाला तुम भी खा लो’। फिर नीरज भी दादी के साथ अंगूर खाने लगे।

किराए के नहीं थे पैसे

बातों का सिलसिला चलता रहा। फिर अम्मा ने नीरज से उनका नाम पूछा। बोली ‘लाला का नाम बा?’ इस पर नीरज ने अपना नाम बोल दिया। फिर दादी बोली ‘कहाँ से हो?’ तब नीरज ने बताया कि मैं इलाहाबाद से हूं। नीरज ने पूछा कि ‘दादी जानती भी हो इलाहाबाद कहां है ?’ इस पर वह बोली ‘हां मरला लगता है वहाँ।’ नीरज ने पूछा ‘कभी है हो?’ वह बोली ‘नहीं लाला नहीं गए।’ इस पर नीरज बोले ‘मेरे साथ चलना फिर।’ यह सुन दादी हंसने लगी।

अब नीरज ने पूछा कि दादी आप कहाँ से हैं? इस पर उन्होंने एक गांव का नाम बताया जो कि थाने से लगभग 7 किलोमीटर दूर है। इस पर निरज ने जानना चाहा कि आप वहाँ से कैसे आई? तब अम्मा बोली ‘बस से आई। लेकिन किराया नहीं दिया।’ जब नीरज ने कारण पूछा तो हँसते हुए बोली ‘पैसे नहीं थे मेरे पास।’ नीरज बोले ‘फिर गाड़ी वाला कुछ बोला नहीं?’ अम्मा ने जवाब दिया ‘नहीं कुछ नहीं बोला।’

नीरज ने अपनी पोस्ट में आगे कहा कि मैं उस गाड़ी वाले को उसकी मानवता के लिए धन्यवाद बोलता हूँ। आज भी अच्छे लोग मौजूद है। इसके बाद नीरज ने बताया कि हमने दादी को गाड़ी में बैठाया और ड्राइवर से कहा कि ये जहां बोले उन्हें वहाँ उतार देना। इस पूरी कहानी को बताते हुए नीरज अंत में कहते हैं “आज तो दिल ही खुश हो गया। ऐसे लोग आएं तो हमे उनकी हेल्प जरूर करनी चाहिए। जय हिंद।”