हमे इस गंदी आदत से बचना चाहिए। बल्कि एक अच्छा इंसान वही होता है जो लोगों की बुराई में भी उनकी अच्छाई खोज लेता है। इससे रिश्तों में मिठास आती है। लड़ाई झगड़े नहीं होते हैं। सामने वाला आपकी बातों से खुश और प्रेरित होता है। चलिए इस बात को एक कहानी से समझते हैं।

शिष्य के कवड़े पानी को भी मीठा बोले गुरु

एक समय की बात है। गर्मी का मौसम था। एक शिष्य अपने गुरु से भेंट करने आश्रम जा रहा था। रास्ते में उसे प्यास लगी। उसकी नजर एक कुएं पर पड़ी। उसने जैसे ही कुएं का पानी पिया तो वह बहुत मीठा और ठंडा लगा। शिष्य ने सोचा क्यों न गुरुजी को भी ये शीतल और मीठा पानी पिलाया जाए। ये सोच उसने पानी अपनी मशक (चमड़े से बना एक थैला, जिसमें पानी भरा जाता था) में भर लिया।

अब शिष्य गुरु के आश्रम में पहुंचा। उसने पूरी बात सुनाते हुए गुरु को मशक से जल दिया। गुरु ने जल पीकर खुशी और संतुष्टि का भाव दिया। कहा कि जल सच में बहुत अच्छा है। गुरु की बात सुन शिष्य खुश हुआ और वहाँ से चला गया। यह नजारा एक दूसरा शिष्य देख रहा था। पानी की तारीफ सुन उसकी भी इच्छा इस जल को पीने की हुई।

दूसरे शिष्य ने जैसे ही पानी पिया बुरा मुंह बनाया। उसने एक घूट जो अंदर लिया था वह भी थूक दिया। वह गुरु से बोला- “हे गुरुदेव ये पानी न तो मीठा है और न ही शीतल। बल्कि ये तो बहुत कड़वा है। फिर आप ने अपने शिष्य से इस जल की तारीफ क्यों की?”

शिष्य कुएं से गुरु के लिए पानी लाया, वह कड़वा था, फिर भी गुरु बोले बहुत मीठा है, जाने क्या थी वजह

इस पर गुरुजी बोले- वत्स, जल में  मिठास और शीतलता नहीं है तो क्या हुआ। इसे लाने वाले के मन में तो है। जब शिष्य ने जल ग्रहण किया होगा तब उसके मन में मेरे प्रति प्रेम उमड़ा होगा। बस यही अहम बात है। तुम्हारी तरह मुझे भी मशक का जल अच्छा नहीं लगा। लेकिन ये बात बोलकर मैं उसका मन दुख नहीं करना चाहता था।”

गुरु ने आगे कहा “हो सकता है जब मशक में जल भरा हो तब वह शीतल हो और मशक के साफ न होने पर यहां तक आते-आते स्वाद में बदल गया हो। लेकिन इससे जल लाने वाले के मन का प्रेम कम नहीं हो जाता।”

कहानी की सीख

इस कहानी की सीख यही है कि यदि कोई शख्स आपके प्रति समर्पित है तो उसके प्रेम का आदर करें। उसमें बुराई न खोजें। दूसरों के मन को दुखी करने वाली बातों को टालकर सामने वाले को खुश किया जा सकता है। हमे हर बुराई में अच्छाई खोजनी चाहिए। इसे भी जरूर पढ़ें –