गुरु ने ली शिष्यों की परीक्षा

एक गांव में एक आश्रम था। यहां गुरु अपने शिष्यों को शिक्षा देते थे। कई वर्षों से चल रही शिक्षा का अंतिम दिन आ गया। सभी शिष्य घर वापस जाने तो उत्साहित हो गए। इस बीच गुरु ने सभी शिष्यों को पास बुलाया और उनकी परीक्षा लेने की सोची।

शिष्यों को एकत्रित कर गुरु ने सभी से कहा “आज आपका गुरुकुल में अंतिम दिन है। मैं चाहता हूँ कि आप सभी एक दौड़ लगाए। ये बाधा दौड़ होगी जिसमें कई बाधाओं स गुजरते हुए आपको अपने लक्ष्य तक पहुंचना होगा।”

गुरु की बात सुन सभी शिष्य फिर से जोश में आ गए और दौड़ शुरू कर दी। कई बाधाओं को पार करने के बाद शिष्य एक अंधेरी सुरंग में गए। इसमें आते ईई उनके पैरों में नुकीली चीजें चुभने लगी। सभी ने सोचा कि इन नुकीले पत्थरों से बचकर जल्दी निकलना चाहिए। ऐसे में कोई तेज दर्द सहन कर फटाफट दौड़ गया, तो कोई धीरे-धीरे चलने लगा ताकि पैर में कुछ चुभे नहीं।

इनमें कुछ शिष्य ऐसे भी थे जिन्होंने अंधेर में पड़े इन पत्थरों अपनी जेब में रख लिया, ताकि बाद में जो भी यहां से गुजरे तो उन्हें ये पत्थर चुभे नहीं। अब दौड़ समाप्त हुई। गुरु ने सभी शिष्यों को अपने पास बुलाया और पूछा “दौड़ सब ने साथ में शुरू की थी। लेकिन कुछ जल्दी आ गए, बल्कि कुछ देर से। ऐसा क्यों?”

इस पर शिष्यों ने बताया कि सुरंग में नुकीले पत्थर थे। कोई रुककर उन्हें उठाने लगा ताकि दूसरों को दर्द न सहना पड़े तो कोई फटाफट दौड़कर दर्द सहकर आ गया। इस पर गुरु ने कहा “कि वह शिष्य मेरे सामने आए जिन्होंने मार्ग में पड़े पत्थर उठाकर जेब में रख लिए।” गुरु के कहने पर वे सभी शिष्य आगे आए और जैसे ही जेब से पत्थर निकाला तो चौंक गए।

शिष्यों ने जिसे पत्थर समझ जेब में रखा था वह हीरे निकले। गुरु ने कहा कि “ये हीरे मैंने ही सुरंग में रखे थे। जिन शिष्यों ने अपनी जीत से ज्यादा दूसरों की मदद करने का सोचा उनके लिए ये हीरे मेरी तरफ से उपहार हैं।

कहानी की सीख

इस कहानी से यही सीख मिलती है कि जीवन की असली सफलता सिर्फ भागते रहना ही नहीं है, बल्कि दूसरों की मदद करना है। जो शख्स दूसरों की हेल्प करता है, सफलता अपनेआप उसके कदम चूमती है। इसलिए आगे जरूर बढ़ें, लेकिन समय पड़ने पर दूसरों के हितों के लिए त्याग भी करें। इसे भी जरूर पढ़ें –