दोस्तों क्या आपने कभी खुद से सवाल किया है कि सारे औजार होने के बावजूद हमारे बुजुर्ग प्याज को फोड़ कर ही क्यों खाते थे, काट कर क्यों नहीं खाते थे तो उसका उत्तर इस प्रकार है:-
प्याज पिछले 5000 साल से भारत भर में व आजकल सारे विश्व में उगाया व खाया जाता है। दोस्तो प्याज के काटने पर जितनी तेजी से उस में पाये जाने वाले पदार्थ रासायनिक क्रिया करते हैं उतणी किसी अन्य खाद्य पदार्थ के नहीं करते। प्याज में सल्फर की मात्रा अधिक होती है अतः रासायनिक प्रक्रिया का जो अंतिम उत्पाद बणता है वो होता है सल्फ्युरिक अम्ल (H2SO4), यह अम्ल एक्वा रिजिया के बाद पाया जाने वाला सबसे शक्तिशाली अम्ल होता है जो सोने व प्लेटिनम को छोड़ किसी भी धातु के साथ क्रिया कर उसे नष्ट कर सकता है।
दूसरी बात प्याज की हर परत पर ऊपर व नीचे एक झिल्ली होती है यो कि अपाच्य होती है। वह झिल्ली फोड़णे से ही अलग हो पाती है, काटणे पर वह साथ में कट जाती है। इसलिए प्याज को किसी भी धातु से काटणा उचित नहीं है। खुद को आधुनिक दिखाने के लिए इसे काटकर नहीं फोड़ कर खाना चाहिए. आप भी आगे से ऐसा ही कीजिये.
यह सल्फर युक्त पदार्थ गंठे (प्याज) की ऊपरी परतों में सबसे ज्यादा होता है तथा बीच में नाम मात्र का होता है। Wageningen विश्वविद्यालय, नीदरलैंड्स की खोज के अनुसार गंठे (प्याज) के बीच में पाये जाने वाला quercetin बहुत ही प्रभावी ऐंटिऑक्सिडेंट है जो कि जवानी को बरकरार रखता है तथा विटामिन ई का मुख्य स्त्रोत है। वैसे तो यह पदार्थ चाय व सेब में भी पाया जाता है लेकिन गंठे (प्याज) के बीच में पाया जाने वाला पदार्थ चाय के पदार्थ से दो गुणा व सेब में पाये जाने वाले इसी पदार्थ से तीन गुणा जल्दी हजम होता है। 100 ग्राम गंठे (प्याज) में यह 22.40 से 51.82 मिलीग्राम तक होता है।
Bern विश्वविद्यालय स्वीट्जरलैंड ने चूहों को प्रति दिन एक ग्राम प्याज खिलाया तो उन की हड्डी 17% तक मजबूत हो गई। प्याज का बीच वाला हिस्सा पेट का अल्सर व सभी प्रकार के हृदय रोगों को ठीक करती है। गंठे (प्याज) व इसके बीच के हिस्से पर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है लेकिन आज के लिए बस इतणा ही।
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तो दोस्तों प्याज को कभी भी काटकर सलाद बनाकर ना खाएं. उसको मुक्का मारकर, या किसी चीज से फोड़कर खाए इससे आपको काफी हेल्थ बेनिफिट होंगे और आंसू भी नहीं आएंगे. हमारे बुजुर्ग प्याज को फोड़कर ही खाते थे या फिर खेत से डायरेक्ट हरे पत्ते वाला प्याज लेते थे और बिना फोड़े ही डायरेक्ट खाते थे, जैसे आप सेब और अमरूद खाते थे.
डॉ. शिव दर्शन मलिक, गौमय युक्त वैदिक प्लास्टर के निर्माता।
वैदिक भवन, रोहतक (हरियाणा), मो. 9812054982