कलश पूजन के समय भी यह सन्देश दिया जाता है कि, जल देवता के बिना सभी का जीवन अधूरा है, इसमें सभी देवताओं का वास है.गौरतलब है कि हमें जीवन में कभी भी जल शक्ति की अवहेलना नहीं करनी चाहिए. जल में बहुत से ऐसे गुण होते है कि, उसके संपर्क में आने से सब कुछ धुल जाता है. जल की संगति का अर्थ है, विकारों को पवित्र और निर्मल बनाना.

कलश पूजन के पीछे का है बड़ा कारण

कलश पूजन के पीछे बहुत बड़ा रहस्य है. कलश को जल का प्रतीक मानकर पूजा जाता है. इसमें देवता वास करते है. सनातन धर्म में सांस्कृतिक संस्कारों में, मांगलिक या अन्य किसी कार्य के आरंभ में कलश पूजन अनिवार्य होता है. इसके साथ ही कलश को सुख-समृद्धि, धन-धान्य और मंगल कामना का प्रतीक माना जाता है.

ऐसी है इसकी धार्मिक मान्यता

धार्मिक शास्त्रों में इस बात को बताया गया है कि, भगवान विष्णु की नाभि कमल से सृष्टि की रचना हुई और कमल से ही ब्रह्माजी की उत्पत्ति हुई. ऐसे में कलश में रखा जल, उस जल स्रोत का प्रतीक माना जाता है जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है.

कलश को लेकर एक अलग मान्यता यह भी है कि समुद्र मंथन के दौरान देव और असुरों के समक्ष अमृत से भरा कलश प्रकट हुआ था. ऐसे में यही कलश, इस शाश्वत जीवन का प्रतीक है. इस वजह से भी कलश का पूजा में विशेष महत्व होता है. इसके साथ ही खुद मां लक्ष्मी के हाथ में भी धन से भरा कलश ही होता है, जो धन-धान्य और सुख-समृद्धि का प्रतीक माना जाता है. इस कारण से ही रोजमर्रा में भी पूजा घर में जल से भरा कलश लक्ष्मी मां को खुश करने के लिए ही रखा हुआ होता है.

इसका है वैज्ञानिक महत्व

कलश पूजन का न सिर्फ सांस्कृतिक बल्कि वैज्ञानिक महत्व भी होता है. इसके अनुसार मांगलिक और धार्मिक कार्यों में कलश पूजन के समय कलश को जल से भरा जाता है. लेकिन मृत्यु, जीवन का अंतिम महासत्य है जिसे टाला नहीं जा सकता. अंतिम संस्कार के समय भी कलश का ही महत्व होता है.

दरअसल जीवन भर इस कलश पात्र में जल भरकर पूजा करवाई जाती रही है क्योंकि जल में ही जीवन शक्ति है परन्तु अब अंतिम समय इस कलश में अग्नि रखकर इस दैहिक शरीर को भस्मीभूत करके समष्टि ऊर्जा में भेजा जाता है. इससे स्पष्ट होता है कि जीवन के शुरू होने से लेकर जीवन के अंत तक जल का कितना महत्त्व होता है. इसे भी जरूर पढ़ें –