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अब बेटे की वजह से समाज में पिता की नहीं उड़ेगी मजाक, लेकिन माननी होगी चाणक्य की ये बात

अब बेटे की वजह से समाज में पिता की नहीं उड़ेगी मजाक, लेकिन माननी होगी चाणक्य की ये बात

 आचार्य चाणक्य राजनीति, अर्थशास्त्र व नीति शास्त्र के मूर्धन्य विद्वान थे। उन्होंने अपने नीति ज्ञान में समाज व परिवार के हित के लिए कुछ ऐसे नियमों का उल्लेख किया है जिनका पालन करना आज के परिपेक्ष्य में भी बहुत उपयोगी सिद्ध हो रहा है।

अब बेटे की वजह से समाज में पिता की नहीं उड़ेगी मजाक, लेकिन माननी होगी चाणक्य की ये बात

आचार्य ने बेटे और बेटियों की परवरिश के विषय में ऐसी बातें बताई हैं जो किसी भी माता-पिता के लिए बहुत महत्वपूर्ण व उपयोगी हैं। आज के आलेख में हम आपको बेटों को कैसे पालना चाहिए? इस विषय पर आचार्य चाणक्य के विचारों से अवगत कराएंगे।

हर किसी के सामने बेटे की ना करें तारीफ

आचार्य ने स्पष्ट कहा है कि जैसे खुद की तारीफ करना अच्छी बात नहीं है वैसे हर किसी के सामने अपने बेटे के गुणों का बखान करना अच्छी बात नहीं है।

पिता को क्या करना चाहिए?

आचार्य चाणक्य कहते हैं कि एक पिता को अपने बेटे की भलाई के लिए सदैव उसका मार्गदर्शन तो करते रहना चाहिए लेकिन सामाजिक तौर पर उसके गुणों का बखान करने से बचना चाहिए क्योंकि ऐसा करना अपनी ही प्रशंसा करने की तरह माना जाएगा और समाज के सामने आप उपहास का केंद्र बन जाएंगे।

पुत्र की तारीफ बन सकती है मानसिक पीड़ा का कारण

आचार्य कहते हैं कि यदि कोई पिता हर समय सबके सामने अपने पुत्र की तारीफ करता है तो समाज में वह उपहास का कारण बन सकता है। अतः एक समझदार व्यक्ति दूसरे के सामने अपने पुत्र के गुणों व योग्यता का बखान करने से परहेज करता है।

गुणों का सार्वजनिक बखान करना अमूमन नहीं होता आवश्यक

आचार्य चाणक्य ने अपने विचार में कहा है कि यदि पुत्र सद्गुणी और मेधावी है तो यह जरूरी नहीं है कि आप उसका सार्वजनिक दिखावा करें क्योंकि उपलब्धियां समय आने पर स्वयं व्यक्त होती है वो छिपने वाली चीज नहीं हैं।

समाज में स्वयं बनाने दें पहचान

आचार्य कहते हैं की योग्यता स्वयं अपनी पहचान बनाती है। यह संभव है कि आपके द्वारा की गई अपने बेटे के गुणों के बखान पर लोग यकीन ना करें, इसलिए अपने पुत्र की खूबियों को उसके ही कर्मों द्वारा उजागर होने दें।

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आचार्य ने स्पष्ट कहा है कि अच्छे गुणों को किसी सत्यापन की जरूरत नहीं होती। अतः अपने पुत्र की तारीफ व प्रशंसा के स्थान पर अच्छा मार्गदर्शन व संस्कार दें क्योंकि यही एक पिता का सर्वप्रमुख व परिहार कर्तव्य है।

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