हरियाणा की जनता उस दौर को भी भुगत चुकी है, जब सरकार का राज्य के कुछ ही इलाकों से मतलब था। बाकी क्षेत्रों की उसने कभी भी खास चिंता नहीं की। अधिकतर क्षेत्र और वहां की जनता को पूरी तरह से उपेक्षित छोड़ दिया था। मुख्यमंत्री के स्तर से पक्षपात का खुल्लम-खुल्ला खेल चलता था। जिस तरह से तब कांग्रेस शासन पर हरियाणा का एक समाज हावी था, उसी तरह से एक क्षेत्र विशेष के लिए सरकार के खजाने खोल दिए गए थे।
कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने प्रदेश के संसाधनों को जैसे व्यवस्थित तरीके से सिर्फ एक इलाके की ओर ही मोड़ रखा था। यह वो इलाका था, जहां वे अपने राजनीतिक हित साध सकते थे। बाकी इलाके भगवान भरोसे थे। क्योंकि, सरकार का उनपर ध्यान ही नहीं था। तब सरकार के लिए यह बात मायने नहीं रखती थी कि प्रदेश की अधिकतर आबादी मुंह ताक रही है। उन्हें तो अपने पसंदीदा इलाके से मतलब था।
जिस जनता से वसूलती थी रकम, उसके लिए खर्च नहीं कर पाती थी
लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई सरकार की इस अलोकतांत्रिक और भेदभावपूर्ण हरकत का सबसे बड़ा उदाहरण गुड़गांव में एक्सटर्नल डेवलपमेंट चार्जेज (EDC) के नाम पर वसूले गए 5,000 करोड़ रुपए में से 1,000 करोड़ रुपए से अधिक का कुप्रबंधन है। यह रकम हुड्डा सरकार ने गुड़गांव के निवासियों से वसूले थे और अदालत के सामने कबूल किया था कि इतनी बड़ी रकम विकास और कल्याणकारी कार्यों पर वह नहीं खर्च कर सकी।
मॉडल गांव देने में भी रोहतक को सबसे ज्यादा प्राथमिकता
कांग्रेस सरकार इस कदर आंखें मूंद कर क्षेत्रवाद में लिप्त थी कि जब 65 गांवों को मॉडल गांवों के तौर पर नाम देने की बारी आई तो सिरसा, महेंद्रगढ़ और पंचकूला जिलों को दरकिनार करके सबको हैरानी में डाल दिया। इससे भी चौंकाने वाली बात ये थी कि इनमें से भी 36% मॉडल गांव मात्र दो ही जिलों से लिए गए थे और उनमें से भी हुड्डा का गृह जिला रोहतक सबसे बड़ा लाभार्थी था।
राजनीतिक विरोधियों के इलाकों के साथ हुआ सौतेला बर्ताव
मतलब, कांग्रेस सरकार को जरा भी नहीं लगता था कि इस तरह से खुल्लम-खुल्ला सत्ता का दुरुपयोग किसी की भी आंखों को चुभ सकता है। लेकिन, सरकार उनकी थी और उनकी जो मर्जी में आया वही करते रहे। अब सिरसा से चौटाला परिवार का नाता जुड़ा है, इससे इस बात का संदेह और गहराता है कि पूरा फैसला राजनीति और भेदभाव से प्रभावित था। यहां के लोगों का विकास सरकार की थोड़ी सी भी प्राथमिकताओं में शामिल नहीं था।
जनता से वसूली में चुस्त, खर्च करने में भेदभाव
2004-05 से 2013-14 के बीच हरियाणा अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी (HUDA) की ओर से जो संसाधन जुटाए गए, उनके आवंटन में भी जमकर बंदरबांट किया गया और चुन-चुनकर उन जिलों को नजरअंदाज करने की कोशिश की गई, जो कांग्रेसी इकोसिस्टम में फिट नहीं बैठ पाए थे। इसका परिणाम ये रहा कि रेवाड़ी, चरखी दादरी, भिवानी, महेंद्रगढ़, जींद, हिसार, फतेहाबाद, कैथल, सिरसा और यमुनानगर जिलों में प्रगति के नाम पर मुश्किल से ही कभी भी कुछ नजर आया।
आम जनता के लिए अपनी ही सरकार से उम्मीद रह गई थी बेमानी
कांग्रेस के दौर में विकास की जितनी भी घोषणाएं हुईं, उसे मूलरूप से एक खास क्षेत्र तक की ही सीमित रखा गया और पूरे राज्य को उनकी हाल पर पूरी तरह से उपेक्षित छोड़ दिया गया।
कांग्रेस की इस प्रवृत्ति से न सिर्फ हरियाणा में एक खास समाज और और क्षेत्र को ही प्राथमिकता मिलती रही, बल्कि व्यवस्थित तरीके से राज्य के अधिकतर इलाकों और ज्यादातर आबादी को मायूसी का जीवन जीने के लिए उनकी हाल पर छोड़ दिया गया था। जहां, उन्हें अपनी ही सरकार से किसी भी तरह की उम्मीद करना बेमानी हो चुका था।