अर्थ फिल्म देखें, समझ आएगा।
वैसे आगे क्या होगा, ये मैं बता दूं।
रोज के एक दो घंटे का आशिक आपको चौबीस घंटे के पति से अच्छा लगेगा। फिर आप उसके साथ सो जाओगे।
उसके बाद वो आपसे कहेगा कि जब तू, (जी हां तू कहेगा) अपने ही पति की नहीं हुई तो मेरी क्या होगी? अगर तू मेरे साथ सो सकती है तो पता नहीं कितनों के साथ सोई होगी?
फिर वो आपके पति को बताने की धमकी देकर चार दोस्त साथ लायेगा।
बस खेल खत्म। आप पत्नि से वैश्या बन गए। बधाईयां। जिसको धोखा दिया उसी की नजर में इज्ज़त बचाने के लिए बहुत लोगों के साथ लुटानी पड़ेगी।
शादी होने तक जो सबसे अच्छा मिला, बस वही सबसे अच्छा है (पति-पत्नि दोनों के लिए)। यदि बुरा है, तो तलाक की हिम्मत रखिए।
जो आपके रोटी कपड़ा और मकान के लिए दिन भर घर से बाहर रहता है, आकर्षित उस खूबी पर होइए। जो समाज में आपको पहचान देता है, उस पर ध्यान दीजिए। पिताजी और पति या खुद के खर्चे पर पल रही स्त्री किसे नहीं चाहिए?
जीवन साथी जरुरी नहीं कि सब अच्छे हों। पहचानने में गलती या धोखा हो सकता है। सुधार की संभावना हो तो करें या असहनीय हो तो तलाक़ दें।
जीवन साथी से असंतुष्टि चरित्रहीन होने का लाइसेंस नहीं है।