नई दिल्ली। मेहरुन्निसा अब तलाकशुदा हैं. अकेली. क्योंकि पति के पास लौटने के लिए हलाला से इनकार कर दिया. वे कहती हैं- बहुत प्यार करने का दावा करने वाला जो शौहर मुझे हरदम परदे में रखता, उसे अंदाजा ही नहीं था कि उसकी वजह से मैं अपने घर में ही बेपर्दा हो चुकी थी. सालों तक वहां टिकी रही, जहां एक नहीं, दो-दो रेपिस्ट रहते थे. सजा दिलवाना या गुस्सा दिखाना दूर, मुझे उन्हें इज्जत देनी थी.
इस रिपोर्ट में कोई तस्वीर नहीं. न कोई सनसनीखेज खुलासा है, न चटखारेदार खबर. यहां सिर्फ एक औरत है. और है एक शब्द- हलाला. वही हलाला जिसके नाम पर सोशल मीडिया पर चुटकुले और भद्दी तस्वीरें दिख जाती हैं.
पढ़ी-लिखी मेहरुन्निसा फोन पार से सधे हुए लहजे में कहती हैं- ये एक ऐसा रेप है, जिसमें औरत को चीखने या रो सकने तक की छूट नहीं.
कानूनी बैन के बाद भी तीन तलाक अब भी हो रहा है. साथ ही आ रहे हैं हलाला के मामले. कई जगहों पर परेशान औरतें थाने पहुंच रही हैं, वहीं ज्यादातर केस घर पर ही दब जाते हैं. मेहरुन्निसा ऐसा ही एक केस हैं.
शादी के करीब 7 साल बाद पति ने ‘चिड़चिड़ाहट और काम की थकान’ में पहली बार तलाक दे दिया. वे याद करती हैं- ‘मायूसी और शर्म!’ बहुत दिनों तक मैं इन्हीं दो चीजों के बीच झूलती रही.
मायके के जिस घर में मैंने पूरा बचपन निकाला, अब वो बदल चुका था. वहां मेरा कोई कमरा नहीं था.
अम्मी-पापा के कमरे में बैग रखा था. मैं ड्राइंगरूम में सोया करती. दिनभर खाली पड़े-पड़े यहां से वहां घूमती रहती. ससुराल में नाखूनों पर आटा चिपके-चिपके सख्त हो जाता. सब्जी की गंध, मेरे पसीने की गंध बन चुकी थी. लेकिन मायके में कोई रसोई के काम को हाथ लगाने नहीं देता था.
हर कोई बार-बार याद दिलाता रहा कि भले लौट आई, लेकिन ये घर मेरा अपना नहीं. कभी न कभी मुझे यहां से जाना होगा. कब और कैसे, बस ये तय होना बाकी था. कशमकश के इसी दौर में महीनेभर बाद पहले पति का फोन आया. फिर वो खुद.
गलती हो गई- उन्होंने माफी मांगते हुए अम्मी-पापा से कहा था. साथ ही ये कि वो मुझे वापस ले जाना चाहते हैं.
रूठे हुए दामाद की जमकर खातिर हुई. मैं सारा दिन अम्मी के कमरे में बंद रही. अब वो गैर-मर्द थे, जिनके सामने जाना हराम था. धीरे से उन्होंने एक और बात जोड़ी. वे मुझसे दोबारा शादी कर सकें, इसके लिए जरूरी है कि पहले मेरा हलाला हो. यानी किसी दूसरे से शादी और फिर तलाक. यहां आने से पहले वे सारी पड़ताल कर आए थे.
फोन पर मेहरून्निसा थम-ठहरकर बता रही हैं. आवाज में कयामत के बाद अकेले बाकी रहने जैसी उदासी.
हलाला किसके साथ हो?
कई ऑप्शन थे. आर्ट में ग्रेजुएट मेहरून्निसा हिंदी-अंग्रेजी-उर्दू मिलाकर बात करती हैं. दूर-पास की किसी मस्जिद के मौलवी से लेकर रिश्तेदार तक. आखिरकार ससुर के नाम पर ठप्पा लगा. घर की इज्जत घर में ही रहेगी. मुझे बताया गया. बाद में पति ने दूसरा कारण गिनाया-‘ पैसे भी बचे, वरना मौलवी काफी मुंह खोल रहा था’. मतलब मिलने आने से पहले वो पैसों तक का हिसाब कर चुके थे.
निकाह हलाला एक पूरी की पूरी फैक्ट्री बन चुकी. मौलवी इसके मालिक हैं. करीब 18 साल पहले लंदन में एक अंडरकवर स्टिंग के दौरान पता लगा था कि तीन तलाक के बाद मौलवी हलाला करते हैं. इसके लिए बाकायदा एक फीस तय होती है. लंदन से बाहरी इलाकों में रकम घट जाती है.
भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन एक एनजीओ है, जो मुस्लिम महिलाओं के हक में काम करता है. इसकी महाराष्ट्र कन्वेयर खातून शेख कहती हैं- हमने खुद एक टीम बनाकर तहकीकात की थी. जोगेश्वरी में एक काजी साहब के पास पहुंचे. हममें से ही एक महिला तलाकशुदा बता दी गई, जिसे हलाला के लिए शादी करनी थी. काजी इसके लिए तैयार हो गए, लेकिन फीस तगड़ी बताई.
अगर तुरंत छुटकारा चाहिए तो पैसे ज्यादा लगेंगे. इसके बाद तीन महीने इद्दत और फिर शादी. सब कुछ फटाफट हो जाएगा, और किसी को पता भी नहीं लगेगा. काजी मुस्कुराते हुए ऐसे बात कर रहे थे, जैसे दुकानदार अपना प्रोडक्ट बेच रहा हो.
घरवाले राजी भी हो जाते हैं. कोशिश रहती है कि हलाला ऐसे आदमी के साथ हो जाए, जिससे औरत का रोज सामना न हो.
खातून मानती हैं कि तीन तलाक भले ही खत्म हो गया हो, लेकिन ये और हलाला जैसी बातें लगातार हो रही हैं. हम औरतों की अदालत लगाते हैं. कोशिश करते हैं कि वे मजबूत बनें. उन्हें समझाते हैं. बहुत सी मान जाती हैं, बहुत सी डरकर वहीं अटकी रहती हैं.
मेहरून्निसा उन्हीं अटकी हुई औरतों में से हैं.
आपने हलाला के लिए मना क्यों नहीं किया?
किया था. बहुत किया था, लेकिन कोई माना नहीं. घुटी-घुटी सी आवाज फोन पर झूल रही है.
आप इनकार करतीं तो कोई जबर्दस्ती नहीं कर पाता. मैं बात का सिरा थामे रखती हूं.
पति से बात करनी चाही. प्यार का हवाला देते हुए उन्होंने कह दिया- हलाला के बिना शादी हलाल नहीं. फिर मुझे सब मानना पड़ा.
जिस ससुर को पिता की तरह देखा, जिसके पीछे चाय-दवा लेकर भागती, जिसने कितनी ही बार मेरे सिर पर हाथ फेरा था, अब उसके पास मेरे शरीर पर हाथ फेरने का हक था. पहली बार जब दरवाजा बंद हुआ तो मैं हड़बड़ाकर रो पड़ी थी. लेकिन फिर पुराने शौहर की बात याद आ गई. ‘जल्दी. सब जल्दी ठीक हो जाएगा.’
एक-एक करके दिन गिनती रही. रोज सुबह लगता कि आज तलाक मिल जाएगा. रोज रात लगता, आज जहन्नुम की आखिरी रात है. इंतजार करते-करते करीब महीनाभर बीत गया. मेरे नए पति अब मुझे आसानी से छोड़ना नहीं चाहते थे. पति को भी शायद अंदाजा था.
कौन कहता है कि मौत एक बार होती है! मैं रोज कई-कई मौतें मर रही थी. अब्बू की उम्र का वो शख्स जब-जब मुझे छूता था. पति जब लाचार चेहरा लिए मुंह घुमा लेता था. मोहल्लेवालियां जब च्च-च्च वाली आंखों से देखती थीं.
फिर एक दिन बात बन गई. तलाक भी हुआ और थोड़े इंतजार के बाद निकाह भी. मैं दोबारा उसी घर में, उसी आदमी की बीवी बनकर रहने लगी, लेकिन इस बार सबकुछ बदल चुका था.
ऊनी कपड़े का एक धागा टूट जाए तो वो कैसे उधड़ने लगता है, मेरा रिश्ता भी वैसे ही उधड़ रहा था.
पति खिंचे-खिंचे रहते थे. मैं खुद पहले जैसी नहीं रही. यहां तक कि पति के पिता, अब मुझपर खराब नीयत रखने लगे थे. वे मौका पाकर मुझे छूने की कोशिश करते. गंदी नजरों से देखते रहते. मैं कोशिश करती थी कि चाय-पानी के अलावा सामने न पड़ूं, लेकिन दिनभर के काम में बार-बार टकराती रहती.
आपने पति से शिकायत की या घर में किसी और से!
कोशिश की, लेकिन वो उल्टा मुझपर भड़क उठे. उन्हें लगता था, मैं नाशुक्री हूं. अब्बू की मदद और नेकदिली को भूल रही हूं. गंदगी काबिज हो रही है दिमाग पर. समझाया कि मैं ऊपरवाले में ज्यादा दिल लगाया करूं. मैं घुटकर रह गई. फिर किसी और से कह ही नहीं सकी.
उस आदमी की हरकतें बढ़ती ही चली गईं. वो पति को मेरे खिलाफ उकसाने लगा.
रोज उनके दफ्तर से लौटते ही कोई नया बखेड़ा शुरू हो जाता था. बासी रोटियां परोस दीं. जानबूझकर फर्श पर पानी छोड़ दिया ताकि बूढ़ी हड्डियां चटख जाएं. जबान लड़ाती है. सिर खुला करके छत पर चली गई…जितने घंटे, उतनी शिकायतें.
पति पहले चुप रहते, फिर भरोसा करने लगे थे. मैं भी पहले लिहाज करती. अब बोलने लगी थी. लड़ाइयां बढ़ने लगीं. शौहर अब मेरी तरफ से पीठ कर चुके थे. पास होकर भी मेरी आवाज, मेरा दर्द कुछ भी उनतक नहीं पहुंच रहा था. बढ़ते-बढ़ते झगड़ा इतना बढ़ा कि एक बार फिर मैं उसी जगह पहुंच गई.
तलाक. शर्म. और इंतजार.
कोई कुछ कहता नहीं था, लेकिन सबकी आंखें मुझमें खोट खोजतीं. अम्मी तक ने एक दिन दबी जबान से कह दिया- ‘मेरा रिश्ता 35 साल का हो चुका. मियां-बीवी में खिटपिट कहां नहीं होती. फिर बार-बार तुम्हारे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है!’ आवाज में टूटे-घर-वाली बेटी के लिए दर्द कम, नायकीनी ज्यादा थी. मुझमें ही कुछ है, जो घरबार संभाल नहीं पा रही!
इस बार मैंने खुद फोन किया. उधर से लपककर फोन उठा, जैसे इंतजार कर रहे हों. वो वापस मुझे घर में चाहते थे, लेकिन हलाला के बगैर हलाल नहीं. दोबारा वही सब बातें दोहराई गईं.
मैं तैयार थी. लेकिन इस बार निकाह हलाला के लिए नया ऑप्शन मिला- मेरा देवर.
अब्बू से तुम्हारा मन नहीं मिलता. फालतू में फसाद होगा. पति दरियादिली से बोल रहे थे. ये वही शख्स था, जिसके साथ मैंने इतना समय बिताया. जिससे मेरी दो औलादें थीं.
ये पहली बार था, जब मेहरून्निसा ने अपने बच्चों का जिक्र किया. आपके बच्चे भी हैं, कितने बड़े हैं! मैं अपनी हैरानी छिपा नहीं सकी.
समझदार हैं. अपनी मां को जीते-मरते देख लिया. रिश्तों को सिवइयों की तरह उलझा हुआ देख लिया. हर बार जब उस घर लौटी, मेरा कमरा बदलते देखते. बेटा बड़ा है. मुझसे दूर-दूर रहने लगा था. बेटी डरी रहती.
आखिरी बार जब उसने तलाक दिया, मैं रिश्ते के साथ-साथ उम्मीद को भी वहीं छोड़ आई. फोन पार की आवाज पहली बार घुमड़ती लगती है.
अब कहां रहती हैं आप?
चुप्पी.
गुजारे के लिए क्या करती हैं?
ट्यूशन पढ़ाती हूं. पहले कोई भरोसा नहीं करता था. फिर बच्चे बढ़ने लगे. अब तो कमरा भर जाता है.
इस पूरी बातचीत के दौरान मेहरून्निसा की आवाज लगभग सधी हुई, जैसे दुख की रस्सी पर चलना सीख लिया हो.
बात के बीच ही में कहती हैं- उस जिंदगी के बाद साबुत रह पाना भी बड़ी बात है. पहले हलाला के बाद मिरगी के दौरे पड़ने लगे. आखिरी बार पति ने इसी को वजह बनाई- कहा. बीमार औरत ने घर बिगाड़ दिया.
हलाला से गुजर चुकी मेहरून्निसा कहती हैं- जिस उम्र में बच्चों के दांत टूटते हैं, मेरे बच्चों के सपने टूट गए. अपने ही अब्बू से फरमाइशें करनी छोड़ दीं. दादा की गोद में बैठना बंद कर दिया. हरदम डरे रहते थे. अब जाकर कुछ हौसला आया है.
तीन तलाक और हलाला के मामले लगातार दिख रहे हैं. हाल में कानपुर की एक महिला को उसके शौहर ने वीडियो कॉल पर इसलिए इंस्टेंट तलाक दे दिया क्योंकि उसने मना करने के बाद भी आइब्रो बनवाई थी. मुरादाबाद से भी इस तरह के कई केस आए, जो थाने तक पहुंच गए. इस्लामिक स्कॉलर तीन तलाक पर अलग बात करते हैं.
जामिया मिलिया इस्लामिया में डिपार्टमेंट ऑफ इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर जुनैद हारिस कहते हैं- हलाला जैसी कोई चीज इस्लाम में नहीं. हमारी नीयत खराब हो तो 10 रास्ते निकल आते हैं. ये वैसा ही कुछ है. एक तरह का फ्रॉड है.
तो क्या ट्रिपल तलाक भी इस्लाम में नहीं?
इस्लाम में तो औरत को नेमत माना गया है. शादी के बाद उसे रोटी, कपड़ा, छत और समाज में इज्जत दिलाना मर्द की जिम्मेदारी होती है. इन जिम्मेदारियों से बचने का नाम है तलाक. इसे दुनिया के सबसे खराब कामों में गिना गया है. तब फिर तीन तलाक या इंस्टेंट तलाक जैसी बात कैसे मुमकिन है?
प्रोफेसर हारिस काफी विस्तार से तीन तलाक को बताते हैं.
अगर मियां-बीवी के बीच मतभेद इतने बढ़ जाएं कि साथ रहना ही मुमकिन न हो तो भी पहले सुलह की कोशिश होती है, लेकिन न हो सके तो दोनों अलग हो सकते हैं. अलग होने का फैसला जब औरत ले तो उसे खुला कहते हैं. यही फैसला जब मर्द की तरफ से आए तो उसे तलाक कहते हैं.
तलाक के बाद भी लगातार तीन महीनों तक औरत शौहर के घर में रहती है. इस दौरान दोनों के बीच सुलह हो जाए तो रिश्ता वापस बहाल हो जाता है. अगर ऐसा न हो तो तीन महीने बाद औरत इस रिश्ते से आजाद हो जाती है.
इस बीच अगर वो दोबारा उसी पति के पास लौटना चाहे तो रास्ता खुला है, लेकिन दोबारा निकाह करना होगा. दूसरी बार भी तलाक हो जाए, तब भी यही प्रोसेस है. दोनों वापस जुड़ सकते हैं, लेकिन नए सिरे से आपस में निकाह करके. लेकिन तीसरी बार भी तलाक हो जाए तो इस्लाम कहता है कि अब इस आदमी से रिश्ता मुमकिन नहीं. ऐसा आदमी, जिसने रिश्ते को खेल बना लिया हो, उसे रोकने के लिए सख्ती करनी होगी.
इसी के तहत तय किया गया कि तीसरी बार तलाक के बाद औरत वापस उस शौहर के पास तभी लौट सकेगी, जब एक और शादी से गुजर चुकी हो. लेकिन ये सबकुछ कुदरती तौर पर होना चाहिए, न कि प्लानिंग के साथ. अगर पति-पत्नी के बीच सामान्य ढंग से अलगाव हो या पति की मौत हो जाए तभी औरत अपने पूर्व शौहर के पास जा सकती है.
इस्लामिक स्कॉलर अब्दुल हमीद नोमानी भी मिलती-जुलती राय देते हैं.
वे कहते हैं- हलाला का मतलब है पति के लिए हलाल होना. इकट्ठे तीन तलाक इस्लाम में सरासर गलत है. ऐसा होना ही नहीं चाहिए. इसे ही रोकने के लिए हलाला का सहारा लिया गया ताकि शौहर तलाक को खेल न समझ ले. लेकिन अब जो हो रहा है, वो भी एक किस्म का खेल है. इसमें औरत बेचारी पिस रही है.
साभारः आज तक