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आखिर है कौन ये तुर्रम खां, जिनके नाम पर बने है सैंकड़ों मुहावरें? पुरखों के खजाने से कम नहीं है इनका नाम!!

आखिर है कौन ये तुर्रम खां, जिनके नाम पर बने है सैंकड़ों मुहावरें? पुरखों के खजाने से कम नहीं है इनका नाम!!
आखिर है कौन ये तुर्रम खां, जिनके नाम पर बने है सैंकड़ों मुहावरें? पुरखों के खजाने से कम नहीं है इनका नाम!!

India News (इंडिया न्यूज), Turram Khan alias Tajurbe Khan: 1857 की क्रांति भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसमें देशभर से अनेक वीर योद्धाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ अपने हौसले और जज्बे से मोर्चा खोला।

इन्हीं में से एक वीरता की मिसाल हैं तुर्रम खां, जिन्हें तजुर्बे खान के नाम से भी जाना जाता है। उनकी कहानी न केवल साहस की है, बल्कि देशभक्ति और बलिदान की भी है।

1857 की क्रांति

1857 की क्रांति के दौरान भारतीय सिपाहियों ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह किया। मेरठ से मंगल पांडे जैसे साहसी योद्धा इस विद्रोह का चेहरा बने। इस दौर में हैदराबाद के निजाम ने अंग्रेजों का साथ देने का निर्णय लिया और वहां की सेना को दिल्ली भेजने का आदेश दिया, ताकि सिपाही अंग्रेजों की ओर से लड़ सकें। लेकिन इस आदेश का विरोध करने वाले भी थे।

चीता खान और तजुर्बे खान

हैदराबाद की निजाम की सेना के एक अफसर, चीता खान, को दिल्ली जाने का आदेश मिला था, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। इसके परिणामस्वरूप उन्हें रेजीडेंसी हाउस में कैद कर दिया गया। यह स्थिति तजुर्बे खान के लिए एक अवसर बन गई। उन्होंने चीता खान को छुड़ाने का फैसला किया और इसके लिए मौलवी अलाउद्दीन की मदद ली।

रेजीडेंसी हाउस पर हमला

तजुर्बे खान ने 500 से 600 लोगों की सेना के साथ रेजीडेंसी हाउस पर रात में अचानक हमला किया। यह हमला उस समय की परिस्थिति के हिसाब से एक साहसिक कदम था। उनकी सेना के पास केवल तलवारें थीं, जबकि अंग्रेजों के पास आधुनिक हथियार जैसे तोप और बंदूकें थीं।

17 जुलाई 1857 की लड़ाई

17 जुलाई 1857 को हुई इस लड़ाई में तजुर्बे खान की बहादुरी की दास्तान लिखी गई। उनकी तलवारें अंग्रेजी तोपों और बंदूकों के सामने खड़ी थीं, और उनकी वीरता ने इस लड़ाई को अद्वितीय बना दिया। लेकिन अंततः अंग्रेजों ने अपने बेहतर हथियारों के दम पर जीत हासिल की, हालांकि तजुर्बे खान को पकड़ने में असफल रहे।

गिरफ्तारी और सजा

इस लड़ाई के बाद, निजाम के एक मंत्री ने तजुर्बे खान का पता अंग्रेजों को बता दिया। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और अदालत में उनके साथी सेनानियों के नाम पूछे गए। तजुर्बे खान ने अपनी वफादारी बनाए रखते हुए किसी का नाम नहीं बताया, जिसके कारण उन्हें काला पानी की सजा सुनाई गई।

तजुर्बे खान की मृत्यु

काला पानी की सजा से पहले, तजुर्बे खान अंग्रेजों से भाग निकले। लेकिन उनकी यह आज़ादी लंबे समय तक नहीं रही। एक ताल्लुकदार मिर्जा कुर्बान अली बेग ने उन्हें एक जंगल में ढूंढकर मार दिया। इस तरह, तजुर्बे खान की वीरता और बलिदान की कहानी हमारे लिए एक प्रेरणा बन गई है।

निष्कर्ष

तुर्रम खां उर्फ तजुर्बे खान का नाम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। उनकी साहसिकता, बलिदान और देशभक्ति की कहानी हमें याद दिलाती है कि स्वतंत्रता की लड़ाई में कितने अनगिनत नायकों ने अपने प्राणों की आहुति दी। उनकी वीरता को हमेशा याद रखा जाएगा, और वे उन शहीदों में से एक हैं जिन्हें सही मायनों में पहचानने की आवश्यकता है।

डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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