किन्हीं दो व्यक्तियों के शक्तिशाली होने की तुलना उनके बीच मुकाबला होने पर ही जानी जा सकती है। ऐसे ही मूल देवों की तुलना का कोई कारण नहीं है क्योंकि इनके बीच कोई मुकाबला नहीं है, बल्कि तीनों का कार्य क्षेत्र अलग-अलग है।
पौराणिक कथाओं में से केवल तर्कपूर्ण बातों को ध्यान में रखकर हम इनके प्रतीक चिह्नों और कथानकों से इनके कार्यक्षेत्र को समझ सकते हैं।
पहले तो यह समझ लेना चाहिए कि ब्रह्मा, विष्णु और महेश केवल तीन व्यक्ति न होकर आदिकालीन मानव विकास की तीन परम्परा हैं। इनको अंग्रेजी के school of thought जैसा समझ सकते हैं। अब पहले हम बात करते हैं महेश या शिव की। शिव के चारों ओर कुछ पशु, जीव जन्तु हैं। इसका अर्थ हुआ कि शिव परम्परा में ही पशु पालन का विकास हुआ। बैल(गाय), हाथी (गणेश), बिल्ली परिवार (शेर), कुत्ता (भैरव के पास), वन मानुस (वीरभद्र), चूहा, मोर आदि को यदि सबसे पहले साधकर पालतू बनाया होगा तो शिव ने बनाया होगा। शिकार के लिए त्रिशूल भी है और मृगछाला भी जो कि चर्म वस्त्र के आविष्कार का द्योतक है। भभूत है तो अग्नि भी है अर्थात अग्नि का प्रयोग भी आरम्भ यहीं हुआ है। शवों को जलाकर उनका कल्याण करना भी शिव का ही काम है। डमरू जैसा वाद्य यंत्र है। आज भी ड्रम बीट से ही आदिवासी संदेश पहुँचाते हैं । सर्प हैं तो उनसे विष के सीरम और औषधि बनाई जाती होगी। अपने गणों की सहायता से गंगा को धरती पर लाने में सहयोग किया होगा। काशी जैसा नगर बसाया और फिर भी निवास पर्वत और निर्जन स्थानों पर है। ऐसा सब तो शूद्र ही कर सकता है। रुद्र का शुद्ध स्वरूप ही शूद्र है।
अब ब्रह्मा की बात करें। कथा आती है कि विष्णु की नाभि से कमल नाल निकली और उस कमल पर ब्रह्मा विराजमान थे। अपने जीवन की खोज करते हुए वे कमल नाल में जा घुसे। जहाँ उन्हें छोटे छोटे बीज दिखाई दिए। यह कमल नाल वास्तव में जन्म नाल है जो माता की नाभि से शिशु की नाभि को जोड़ती है। और जो बीज दिखाई दिए वे ही आनुवांशिक जीन्स हैं। इस तरह जीन्स को पहचान कर श्रेष्ठ मानव प्रजाति का विकास ब्रह्मा द्वारा किया गया। यही वह काल रहा होगा जब एक परिवार में विवाह का निषेध किया गया होगा। वेद (पुस्तक) और चतुर्दिक दृष्टि रखने वाला ब्रह्मा है या ब्राह्मण, आप ही तय कर सकते हैं।
विष्णु के हाथ में चक्र है जो उद्योग, गति और विकास का परिचायक है। उद्योगपति के पास लक्ष्मी है और रत्नों के भंडार समुद्र में घर है। लेकिन एक उद्योगपति के पास समस्याएँ सहस्रफन की तरह सिर पर सवार रहती हैं। विष्णु के दो प्रमुख अवतार हैं, राम और कृष्ण। एक चौदह वर्ष में वन में भूमि तैयार करके हल (सीता) से खेती का विकास करते हैं तो दूसरे गौपालन और समुद्र (द्वारका) से विदेश व्यापार पर बल देते हैं। उद्योग, कृषि, व्यापार और गौपालन का कार्य तो वैश्य के लिए बताया गया है।
आपने केवल तीन के बारे में पूछा है लेकिन एक और देव हैं जो इनके समकक्ष हैं। वेदों में सबसे अधिक उल्लेख इन्द्र का ही है। इन्द्र को देवताओं का राजा माना जाता है। दंड देने के दिए वज्र भी है। समाज की व्यवस्था, मर्यादा और नियमों आदि के पालन और रक्षा के लिए राजा या क्षत्रिय होते हैं। लेकिन परवर्ती काल में ब्राह्मणों और राजाओं के बीच शक्तिशाली होने की होड़ के चलते इन्द्र की छवि एक विलासी राजा की बना दी गई। गौवर्धन जैसी कथाओं में तो इन्द्र (राजा) को हवि (कर) ने देने का आवाहन करके चतुर्देव से बाहर ही कर दिया है।
सबके अलग-अलग कार्यक्षेत्र होने के कारण यह निर्णय करना मुश्किल है कि कौन अधिक शक्तिशाली है।