कर्नाटक के भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटिल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वक्फ संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण करने की माँग की है।
देश भर में वक्फ बोर्ड द्वारा एक के बाद एक करके सरकारी ही नहीं, निजी संपत्तियों पर दावा किया जा रहा है।
कर्नाटक में किसानों की 1200 एकड़ जमीन पर वक्फ बोर्ड दावा करना और कॉन्ग्रेस सरकार द्वारा उसे हस्तांतरित करने के लिए किसानों को नोटिस देने के बाद बवाल मच गया है। वहीं, केंद्रे की मोदी सरकार वक्फ बोर्ड की असीमित शक्तियों को नियंत्रित करने कि लिए वक्फ संशोधन बिल पेश करने जा रही है, जो फिलहाल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास है।
वक्फ बोर्ड भारत की तीसरी सबसे अधिक संपत्ति वाली संस्था है। इसको देखते हुए कर्नाटक के भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटिल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर वक्फ संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण करने की माँग की है। अपने पत्र में पाटिल ने लिखा है कि वर्तमान कानून से शक्तिशाली बना वक्फ बोर्ड व्यक्तियों का ही नहीं, लंबे समय से चली आ रहे धार्मिक संस्थाओं, जो वक्फ से संबंधित भी नहीं हैं, उन पर भी अतिक्रमण कर रहा है।
कर्नाटक में किसानों की जमीनों पर दावा करने से पहले सितंबर 2022 में तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड नेहिंदुओं के पूरे गाँवऔर 1100 साल पुराने मंदिर पर दावा ठोक दिया था। तमिलनाडु में वक्फ बोर्ड ने त्रिची के नजदीक स्थित तिरुचेंथुरई गाँव को वक्फ संपत्ति घोषित कर दिया था। जब राजगोपाल नाम के व्यक्ति ने अपनी जमीन बेचने का प्रयास किया तो यह मामला समाने आया था।
क्या होता है वक्फ?
वक्फ अरबी भाषा के वकुफा शब्द से बना है। इसका अर्थ होता है ठहरना। वकुफा से ही वक्फ बना है। वहीं, वक्फ बोर्ड वो संस्था है जो अल्लाह के नाम पर दान में दी गई संपत्ति का रख-रखाव करता है। हालाँकि, मुस्लिमों की पवित्र पुस्तक कुरान में वक्फ शब्द का जिक्र नहीं है। फिर भी, मुस्लिम जब अपनी किसी चल या अचल संपत्ति को जकात के रूप में देते हैं तो वो संपत्ति ‘वक्फ’ कहलाने लगी।
जकात दिए जाने के बाद इस संपत्ति पर सिर्फ अल्लाह का हक माना जाता है और उसकी देखरेख ‘वक्फ-बोर्ड’ को दी जाती है। यह संस्थान उस संपत्ति से जुड़े सारे कानूनी काम को सँभालती है। इस संपत्ति को खरीदा-बेचा नहीं जा सकता, सिर्फ अधिकतम 30 वर्षों के किराए पर दी जा सकती है। एक बार संपत्ति वक्फ को दे देने के बाद वह संपत्ति कभी वापस नहीं मिल सकती।
भारत में वक्फ: पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों की संपत्ति भी कब्जाया
भारत में वक्फ का सिद्धांत मुस्लिम आक्रांताओं के साथ आया। सारी संपत्ति पर मुस्लिम शासकों का अधिकार होता था तो वक्फ संपत्ति के प्रबंधन करने के लिए अलग से बोर्ड आदि जैसे संस्था आदि नहीं बने थे। भारत में वक्फ का विचार दिल्ली सल्तनत से शुरू होता है, जब सुल्तान मुइज़ुद्दीन सैम ग़ौर ने मुल्तान की जामा मस्जिद के लिए दो गाँव देकर इसका प्रशासन शेख उल इस्लाम को सौंपा था।
इस तरह जैसे जैसे इस्लामी शासन का प्रभाव भारत में बढ़ा वैसे-वैसे वक्फ की संपत्तियों में वृद्धि होती गई। वक्फ बोर्ड को ज्यादातर संपत्तियाँ मुस्लिम शासनकाल में मिलीं। मुगलों के शासनकाल में वक्फ संस्थाओं को मस्जिद, मदरसा, कब्रगाह के लिए बेहिसाब जमीनें मिलीं। औरंगेजब से लेकर अकबर तक तमाम बादशाहों ने मुस्लिम संस्थाओं के लिए खूब जमीनें दीं। गाँव के गाँव दे दिए।
इसके अलावा, 1947 में देश के बँटवारे के समय पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों ने अपनी संपत्तियाँ या तो अपने परिवार के नाम कर दी या वक्फ के नाम कर दीं। इस तरह भारत में शत्रु संपत्ति अधिनियम के तहत सरकारी कब्जे में लेने के लिए कुछ विशेष संपत्ति नहीं बची। वो संपत्तियाँ पहले ही मुस्लिमों के हाथ से निकल मुस्लिमों के हाथ में जा चुकी थीं।
वक्फ बोर्ड ने पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों की संपत्तियाँ तो वक्फ बताकर ले लीं, लेकिन पाकिस्तान से आने वाले हिंदुओं को उनके बदले कोई जमीन नहीं दी। कायदे से यह अदला-बदली का मसला था, क्योंकि भारत से पाकिस्तान जाने वाले मुस्लिमों की संपत्ति, पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदुओं के लिए थी। हालाँकि, ऐसा नहीं हुआ। वक्फ बोर्ड सारी संपत्ति दबाए बैठा रहा।
इस समय वक्फ बोर्ड रेलवे और कैथोलिक चर्च के बाद देश का तीसरा सबसे अधिक संपत्ति वाली संस्था है। इन संपत्तियों का क्षेत्रफल करीब 9.4 लाख एकड़ है। अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार, वक्फ बोर्ड के पास देश भर में 8,65,646 संपत्तियाँ पंजीकृत हैं। इनमें 80,000 से ज्यादा बंगाल में हैं। इसके बाद पंजाब में 70994, तमिलनाडु में 65945 और कर्नाटक में 61,195 संपत्तियाँ हैं। साल 2009 में यह जमीन 4 लाख एकड़ हुआ करती थी, जो कुछ सालों में बढ़कर दोगुनी हो गई है।
अंग्रेजों के शासन के दौरान वक्फ
मुगलों के बाद जब भारत में अंग्रेजी शासन आया, तब भी वक्फ विवाद का विषय बन गया। वक्फ की संपत्ति को लेकर विवाद इतना बढ़ा कि वह लंदन स्थित प्रिवी काउंसिल तक पहुँचा। इसके बाद ब्रिटेन में चार जजों की बेंच बैठी और वक्फ को अवैध करार दे दिया। हालाँकि, इस फैसले को ब्रिटिश भारत की सरकार ने नहीं माना और मुसलमान वक्फ वैलिडेटिंग एक्ट 1913 लाकर वक्फ बोर्ड को बचा लिया।
दरअसल, शुरुआत में अंग्रेजों ने हिंदू और मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं किया। समय के साथ इनके नियमन के लिए कानून लाया गया। 1890 के चैरिटेबल एंडॉवमेंट्स एक्ट में चैरिटेबल संपत्तियों के लिए कोषाध्यक्षों की स्थापना की बात कही गई। 1920 में चैरिटेबल और धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम में इच्छुक व्यक्ति को ट्रस्टों की न्यायिक निगरानी की अनुमति दी गई। इस तरह कठोर नियंत्रण रखा गया।
सन 1894 में अब्दुल फता मोहम्मद इशाक बनाम रुसोमॉय धुर मामले में एक फैसला आया। इस फैसले में कहा गया कि परिवार को लाभ पहुँचाना तब तक अमान्य है, जब तक कि वे दान के लिए समर्पित न हों। मुस्लिमों में पारिवारिक वक्फ की भी अवधारणा थी, जिसे गिफ्ट कहा जाता है। इस फैसले से मुस्लिम असंतुष्टि हो गए। इसके बाद 1913 में मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम पारित हुआ।
आगे चलकर 1923 के मुसलमान वक्फ अधिनियम में संपत्तियों का लेखा-जोखा अनिवार्य कर दिया गया। इसके अलावा, 1934 में बंगाल वक्फ अधिनियम और बिहार वक्फ अधिनियम जैसे संशोधन पेश किए गए। इन कानूनों ने साबित कर दिया कि मुस्लिम बंदोबस्तों के प्रबंधन के लिए समर्पित कानूनों की आवश्यकता थी, जो पिछले धर्मनिरपेक्ष कानूनों के विपरीत थे।
आजादी के बाद भारत में वक्फ
सन 1947 में देश आजाद हो गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने। उस समय तक 1923 का मुसलमान वक्फ अधिनियम लागू रहा। इसके बाद सन 1954 में तत्कालीन पंडित नेहरू की सरकार ने वक्फ अधिनियम 1954 पेश किया। इसमें वक्फ की संपत्तियों के प्रशासन को केंद्रीकृत कर दिया। इसने महत्वपूर्ण शक्तियों के साथ वक्फ बोर्ड भी स्थापित किए।
इस अधिनियम में स्वतंत्रता से पहले के कई कानूनों को निरस्त कर दिया गया था और वक्फ संपत्तियों के प्रशासन को बड़े पैमाने पर बदल दिया। इस कानून के तहत पंडित नेहरू की सरकार ने बँटवारा के बाद भारत से पाकिस्तान गए मुस्लिमों की जमीनें वक्फ बोर्डों को दे दी। इसके साथ ही पंडित नेहरू ने तुष्टिकरण की राजनीति का एक अप्रतिम उदाहरण पेश किया था।
सन 1964 में वक्फ अधिनियम 1954 के तहत केंद्रीय वक्फ परिषद की स्थापना की गई। यह केन्द्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन एक सांविधिक निकाय है। इसे केन्द्र सरकार के सलाहकार निकाय के रूप में स्थापित किया गया था। वक्फ परिषद को केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और राज्य वक्फ बोर्डों को सलाह देने का अधिकार है। परिषद का अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री होता है।
सन 1984 में वक्फ जाँच समिति ने एक रिपोर्ट दी, जिसके बाद वक्फ (संशोधन) अधिनियम पारित हुआ। इसका उद्देश्य वक्फ प्रशासन का पुनर्गठन करना और वित्तीय एवं परिचालन संबंधी खामियों को दूर करना था। हालाँकि, मुस्लिम समुदाय ने इसका कड़ा विरोध किया। वक्फ आयुक्त को दी गई शक्तियों के कारण इस अधिनियम को पूरी तरह से लागू नहीं किया जा सका।
नरसिम्हा राव की सरकार ने वक्फ को दी असीमित शक्तियाँ
1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन अपने चरम पर पहुँचने लगा। इसका परिणाम हुआ। कि 1992 में अयोध्या के बाबरी ढाँचे को गिरा दिया गया। उस समय देश में कॉन्ग्रेस की सरकार थी। इसके कारण मुस्लिम समुदाय कॉन्ग्रेस से नाराज हो गए। मुस्लिम समुदाय का कॉन्ग्रेस में विश्वास बढ़ाने के लिए नरसिम्हा राव ने वक्फ अधिनियम 1995 पारित करके कई शक्तियाँ दीं।
पीवी नरसिम्हा राव की कॉन्ग्रेस सरकार ने वक्फ एक्ट 1954 में संशोधन किया और नए-नए प्रावधान जोड़कर वक्फ बोर्ड को असीमित शक्तियाँ दे दीं। वक्फ एक्ट 1995 का सेक्शन 3(आर) के मुताबिक, अगर कोई संपत्ति, किसी भी उद्देश्य के लिए मुस्लिम कानून के मुताबिक पाक (पवित्र), मजहबी (धार्मिक) या (चैरिटेबल) परोपकारी मान लिया जाए तो वह वक्फ की संपत्ति हो जाएगी।
वक्फ अधिनियम 1995 की धारा 3 में कहा गया है कि यदि वक्फ बोर्ड को लगता है कि कोई भी भूमि किसी मुस्लिम की है तो वह उसे वक्फ की संपत्ति घोषित कर सकता है। इसके लिए वक्फ या उससे जुड़े व्यक्ति को कोई रिकॉर्ड पेश करने की जरूरत नहीं होगी। वहीं, जिस व्यक्ति की जमीन को वक्फ ने अपनी संपत्ति घोषित की है, वह अपने पक्ष में रिकॉर्ड दिखा सकता है।
इसके अलावा, वक्फ एक्ट 1995 का आर्टिकल 40 कहता है कि यह जमीन किसकी है, यह वक्फ का सर्वेयर और वक्फ बोर्ड तय करेगा। इन शक्तियों को जोड़ने के साथ ही इसमें सन 1984 के प्रमुख प्रावधानों को बरकरार रखा गया था। इस तरह वक्फ बोर्ड एक पावरफुल संस्था बनकर उभरा और वह किसी भी जमीन पर हक जमाने लगा।
UPA सरकार ने 2013 में इन शक्तियों को और बढ़ाया
इतनी शक्तियाँ मिलने के बाद भी मुस्लिम खुश नहीं दिखे। इसके बाद सन 2013 में वक्फ कानून में कॉन्ग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने एक और संशोधन पेश किया। इसमें वक्फ बोर्ड को स्वायत्ता और असीमित शक्तियाँ दी गईं। यहाँ तक कि कलेक्टर भी इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकता था। अगर आपकी संपत्ति को वक्फ की संपत्ति बता दी गई तो आप उसके खिलाफ कोर्ट नहीं जा सकते।
आपको वक्फ बोर्ड से गुहार लगानी होगी। जब वह नहीं मानता है तो तो वह आप वक्फ ट्रिब्यूनल में जा सकते हैं। वक्फ एक्ट की धारा 85 कहता है कि ट्रिब्यूनल के फैसले को हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है। नए संशोधन के तहत वक्फ बोर्ड बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के अपनी संपत्तियों का प्रबंधन कर सकते हैं।
इसके अलावा, वक्फ संपत्तियों के विवादों के निपटान के लिए एक विशेष न्यायालय की स्थापना की गई। तत्कालीन सरकार ने इसे वक्फ संपत्तियों के विवादों को तेजी से निपटाने की दिशा में उठाया गया कदम बताया था। इसे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन और निगरानी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए सक्षम बनाया गया। इसमें वक्फ संपत्तियों को विशेष दर्जा दिया गया है, जो किसी ट्रस्ट आदि से ऊपर है।
मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश
मार्च 2014 में लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तत्कालीन कॉन्ग्रेस सरकार ने दिल्ली-एनसीआर की 123 प्रमुख संपत्तियाँ दिल्ली वक्फ बोर्ड को दे दीं। देश की हर सरकारों ने वक्फ बोर्ड को दिल खोलकर अनुदान दिया है। सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने नियम बनाया है कि अगर वक्फ की जमीन पर स्कूल, अस्पताल आदि बनते हैं तो इसका पूरा खर्च सरकार को देना होगा।
यह निर्णय मुख्तार अब्बास नकवी के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री रहते लिए गए थे। इस तरह हर सरकार ने वक्फ बोर्ड को फायदा पहुँचाकर मुस्लिमों को लुभाने की कोशिश की। हालाँकि, मोदी सरकार ने वक्फ की असीमित शक्तियों को कम करने की दिशा में कदम बढ़ाया है। बता दें कि देश में एक सेंट्रल वक्फ बोर्ड और 32 स्टेट बोर्ड हैं। केंद्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री सेंट्रल वक्फ बोर्ड का पदेन अध्यक्ष होता है।
प्रमुख विवाद
साल 2022 में तमिलनाडु के वक्फ बोर्ड ने हिंदुओं के पूरे थिरुचेंदुरई गाँव को वक्फ संपत्ति बताते हुए उस पर अपना दावा ठोक दिया। यहाँ 1500 साल पुराना एक मंदिर है। उसे भी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति घोषित कर दी। इस तरह वक्फ बोर्ड ने 369 एकड़ भूमि पर अपना दावा ठोका है। गाँव के लोगों का कहना है कि इन जमीनों के कागजात उनके पास मौजूद हैं।
वहीं, बेंगलुरु का ईदगाह मैदान भी एक बड़ा विवाद है। सन 1950 में वक्फ बोर्ड ने इसे वक्फ संपत्ति बताते हुए अपना दावा ठोक दिया था। वक्फ का दावा है कि यह 1850 के दशक से वक्फ की संपत्ति थी, इसलिए यह अब हमेशा के लिए वक्फ संपत्ति है। हालाँकि, यह विवाद अदालत में है और इस पर अंतिम निर्णय आना बाकी है। इसी तरह बेंगलुरु में आईटीसी विंडसर होटल पर भी वक्फ ने दावा ठोका है।
इसी तरह का मामला अप्रैल 2024 में हैदराबाद से आया था। तेलंगाना वक्फ बोर्ड ने राजधानी के एक नामी 5 स्टार होटल मैरियट को ही अपनीजागीर घोषितकर दिया था। हालाँकि, हाई कोर्ट ने उसके इस मंसूबे को धाराशायी कर दिया था। दरअसल, साल 1964 में अब्दुल गफूर नाम के एक व्यक्ति ने तब वायसराय नाम से चर्चित इस होटल पर अपना हक जताते हुए मुकदमा कर दिया था।
इसी तरह गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत नगर निगम की बिल्डिंग पर ही दावा ठोक दिया। अब यह वक्फ की संपत्ति है, क्योंकि इस बिल्डिंग से जुड़े किसी भी दस्तावेज को अपडेट नहीं किया गया था। वक्फ के अनुसार, मुगल काल के दौरान सूरत नगर निगम की इमारत एक होटल थी और हज यात्रा के दौरान इस्तेमाल की जाती थी। ब्रिटिश शासन के दौरान संपत्ति तब ब्रिटिश साम्राज्य की थी।
इसी तरह कोलकाता के टॉलीगंज क्लब और रॉयल कलकत्ता गोल्फ क्लब को भी वक्फ बोर्ड ने अपनी संपत्ति बताई है। इसके अलावा भी देश के विभिन्न हिस्सों में कई ऐसी संपत्तियाँ हैं, जिन पर वक्फ बोर्ड अपना दावा ठोकता है और उन्हें वक्फ संपत्ति बताता है। ये सारे मामले विवाद के घेरे में हैं। अब इन संपत्तियों के राष्ट्रीयकरण की माँग होने लगी है।