इसबार के झारखंड विधानसभा चुनावों में प्रतियोगी परीक्षाओं में पेपर लीक और झारखंड कर्मचारी चयन आयोग (JSSC) से जुड़ी गड़बड़ियों के मुद्दे पर राज्य की हेमंत सोरेन की अगुवाई वाली जेएमएम गठबंधन सरकार को जवाब देना भारी पड़ रहा है। दरअसल, राज्य सरकार पर शुरू से ही आरोप रहे हैं कि उसने प्रदेश के युवाओं के भविष्य को गंभीरता से लिया होता तो इस तरह की धांधली देखने को नहीं मिलती।
रविवार को झारखंड दौरे पर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने परीक्षा पेपर लीक मुद्दे को लेकर सत्ताधारी जेएमएम को जबर्दस्त तरीके न सिर्फ घेरा है, बल्कि वादा किया है कि भाजपा की सरकार आई तो एसआईटी (SIT) बनाकर इसके गुनहगारों को कानून के शिकंजे में लाकर रहेंगे।
पेपर लीक का पर्दाफाश करने के लिए SIT बनाने का वादा
अमित शाह ने कहा, “परीक्षा के 11 से ज्यादा पेपर लीक हुए, मगर हेमंत बाबू खामोश हैं…क्योंकि पेपर लीक कराने वाले उन्हीं के चट्टे-बट्टे हैं।….आपने भले संरक्षण दिया, मैं कहकर जाता हूं…हम एसआईटी बनाकर पेपर लीक करने वालों को जेल की सलाखों के पीछे बांधने का काम करेंगे।”
पेपर लीक मामले में हेमंत सरकार के रवैए पर उठते रहे हैं सवाल
पेपर लीक का मसला झारखंडी की जनता के भरोसे से जुड़ा हुआ है। लेकिन, इस मुद्दे को हेमंत सरकार ने जिस तरह से हैंडल किया, वह बहुत ही संदेहास्पद बताया जाता है। तमाम आरोप लग चुके हैं कि अगर जेएमएम सरकार परीक्षा की सुरक्षा को प्राथमिकता देती तो इस तरह के पेपर लीक रोके जा सकते थे। जबकि, जेएसएससी की भर्ती परीक्षाओं में कथित अनियमितताओं के बावजूद आरोप लगे कि उसपर ध्यान नहीं दिया गया।
सवाल उठने स्वाभाविक हैं कि आखिर पेपर लीक क्यों हुए? या तो सरकार पेपर लीक रोक पाने में सक्षम नहीं थी या फिर भर्ती प्रक्रिया को निष्पक्ष और पारदर्शी रखने के प्रति उसकी प्रतिबद्धता में कोई कमी रह गई। जबकि, राज्य सरकार के पास कई ऐसे उदाहरण थे, जब अन्य राज्यों में प्रश्नपत्र लीक होने से रोकने के कई कड़े प्रतिबंध किए गए और उसे सफलतापूर्वक इस्तेमाल में भी लाया जाने लगा था।
सरकार के ढीले रवैए से बढ़ता गया संदेह!
हेमंत सरकार इस वजह से ज्यादा आलोचनाओं का शिकार हुई, क्योंकि पेपर लीक पर लगाम लगाने के मुद्दे पर उसका रेस्पॉन्स बहुत ही लचर बताया जाता है। परीक्षार्थी और अभ्यर्थी उम्मीद करते रह गए कि जल्द जांच होगी और कसूरवार सामने आएंगे, लेकिन कार्रवाई में देरी की वजह से जन आक्रोश पैदा होने लगा।
प्रशासन पर लगे लीपा पोती के आरोप
राज्य सरकार की एक बड़ी गलती यह भी दिखाई पड़ी कि वह चीजों को सही समय पर पारदर्शी तरीके से सार्वजनिक करने में देर करती गई, जिससे संदेह को और बढ़ावा मिला। ऐसा भी लगा कि प्रशासन कार्रवाई करने की जगह लीपा पोती में ज्यादा जुटा हुआ है, ताकि सरकार की छवि को नुकसान न पहुंचे।
सरकारी कमजोरी से पीड़ित युवाओं के पास क्या है रास्ता?
इतने बड़े अपराध के बावजूद न तो किसी की ठोस जवाबदेही तय की गई और न ही उत्तरदायी लोगों के खिलाफ कोई कठोर कार्रवाई ही की गई। सरकारी प्रतियोगी परीक्षाएं पास करने के लिए युवा अपना लंबा वक्त गुजार देते हैं। लेकिन, इस मामले में अगर सरकार की ओर से ही उन्हें लापरवाह और उदासीन रवैया देखने को मिले तो फिर वे कहां जाएंगे?
जबकि, इन घटनाओं की वजह से लाखों होनहार युवाओं का ना सिर्फ वर्तमान चौपट हुआ, बल्कि राज्य सरकार के गैर-जिम्मेदाराना रवैए की वजह से उनका भविष्य भी चौपट हो जाने के आरोप सामने आए।
जेएमएम सरकार की जांच पर भरोसे का संकट क्यों पैदा हुआ?
ऐसे हालातों में यह भी संदेह पैदा होना स्वाभाविक है कि झारखंड में फिर से एक ऐसा माहौल तैयार किया जा रहा है, जहां सरकारी नौकरियों के लिए भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को ही बढ़ावा मिल रहा है।
यही वजह है कि प्रदेश में मांग उठी कि इन घटनाओं की स्वतंत्र एजेंसी या फिर न्यायिक जांच होनी चाहिए। क्योंकि, राज्य सरकार की आंतिरक जांच पर किसी को भरोसा नहीं रह गया है।