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➡ सप्तपर्णी गज़ब की औषिधि :
- सप्तपर्णी एक ऐसा वृक्ष है जिसकी पत्तियाँ चक्राकार समूह में सात- सात के क्रम में लगी होती है और इसी कारण इसे सप्तपर्णी कहा जाता है. इसके सुंदर फूलों और उनकी मादक गंध की वजह से इसे उद्यानों में भी लगाया जाता है।
➡ सप्तपर्णी के फूल किस काम आते हैं ?
- फूलों को अक्सर मंदिरों और पूजा घरों में भगवान को अर्पित भी किया जाता है. इसके फूल सफ़ेद रंग के होते है और बहुत सुन्दर लगते है. अगर इन्हें घर में ला कर फूलदान में सजाया तो देर तक इसकी गंध से घर महकता रहता है।
- पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि प्रसव के बाद माता को यदि छाल का रस पिलाया जाता है तो दुग्ध की मात्रा बढ जाती है. इसकी छाल का काढ़ा पिलाने से बदन दर्द और बुखार में आराम मिलता है।
- डाँग- गुजरात के आदिवासियों के अनुसार जुकाम और बुखार होने पर सप्तपर्णी की छाल, गिलोय का तना और नीम की आंतरिक छाल की समान मात्रा को कुचलकर काढ़ा बनाया जाए और रोगी को दिया जाए तो अतिशीघ्र आराम मिलता है।
- आधुनिक विज्ञान भी इसकी छाल से प्राप्त डीटेइन और डीटेमिन जैसे रसायनों को क्विनाईन से बेहतर मानता है. पेड़ से प्राप्त होने वाले दूधनुमा द्रव को घावों, अल्सर आदि पर लगाने से आराम मिल जाता है।
- डाँग-गुजरात के आदिवासियों के अनुसार किसी भी तरह के दस्त की शिकायत होने पर सप्तपर्णी की छाल का काढ़ा रोगी को पिलाया जाए, दस्त तुरंत रुक जाते हैं. काढ़े की मात्रा 3 से 6 मिली तक होनी चाहिए तथा इसे कम से कम तीन बार प्रत्येक चार घंटे के अंतराल से दिया जाना चाहिए।
- दाद, खाज और खुजली में भी आराम देने के लिए सप्तपर्णी की छाल के रस का उपयोग किया जाता है. छाल के रस के अलावा इसकी पत्तियों का रस भी खुजली, दाद, खाज आदि मिटाने के लिए काफी कारगर होता है।
- इस पेड़ की छाल को सुखाकर चूर्ण बनाया जाए और 2-6 ग्राम मात्रा का सेवन किया जाए, इसका असर मलेरिया के बुखार में तेजी से करता है. मजे की बात है इसका असर कुछ इस तरह होता है कि शरीर से पसीना नहीं आता जबकि क्विनाईन के उपयोग के बाद काफी पसीना आता है।
- पेड़ से प्राप्त दूधनुमा द्रव को तेल के साथ मिलाकर कान में ड़ालने से कान दर्द में आराम मिल जाता है. रात सोने से पहले 2 बूंद द्रव की कान में ड़ाल दी जाए तो कान दर्द में राहत मिलती है।
- रविंद्रनाथ टैगोर द्वारा शुरू किए गए विश्वविद्याल विश्व-भारती, में उत्तीर्ण होने वाले स्नातकों को सरलता और प्रकृति से जुड़े होने के प्रतीक के रूप में, सप्तपर्णी पत्तियां दी जाती हैं. विश्व भारती के प्रांगण में कई वृक्ष हैं, जिनमें सप्तपर्णी काफी सामान्य है।