दास ने किया निराश, अब RBI के नए मुखिया पर सबकी की निगाहें, नए साल में घट सकता है रेपो रेट !

Das disappointed, now everyone's eyes are on the new head of RBI, repo rate may decrease in the new year!

RBI REPO Rate: साल 2024 में तमाम उम्मीदों और अनुरोध के बावजूद आरबीआई की ओर से ब्याज दरों में कोई कटौती नहीं की गई. आरबीआई ने रेपो रेट में कटौती कर कोई राहत नहीं दी. आरबीआई ने पूर्व गवर्नर शक्तिकान्त दास ने ब्याज दरों में कटौती के दबाव को नजरअंदाज करते हुए अपना फोकस महंगाई पर केंद्रित रखा. अब आरबीआई के गवर्नर की कुर्सी पर संजय मल्होत्रा हैं, ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि नए मुखिया की अगुवाई में केंद्रीय बैंक नए साल में राहत दे सकता है. नए गवर्नर को जल्द यह फैसला लेना होगा कि क्या वह आर्थिक वृद्धि की कीमत पर महंगाई को तरजीह देना जारी रख सकता है.

नोटबंदी से लेकर कोविड में इकोनॉमी को संभाला

शक्तिकांत दास ने साल 2016 में नोटबंदी के फैसले पर न केवल सरकार का साथ दिया बल्कि उसके बाद देश की अर्थव्यवस्था को संभाला, उन्होंने एक स्थायी विरासत छोड़ी है. कोविड के बाद जहां बड़े-बड़े देशों की इकोनॉमी हिल गई दास ने देश की अर्थव्यवस्था को न केवल संभाला बल्कि आगे बढ़ाया. देश की मौद्रिक नीति को कुशलतापूर्वक संचालित करने के बाद सरकार ने राजस्व सचिव संजय मल्होत्रा को नया गवर्नर नियुक्त किया है. अब उनके हाथों में केंद्रीय बैंक की कमान और महंगे कर्ज से मार झेल रही जनता की उम्मीदें है.

नए मुखिया के रुख पर सभी की निगाहें

दास के नेतृत्व में आरबीआई ने लगभग दो साल तक प्रमुख नीतिगत दर रेपो को यथावत रखा, हालांकि, चालू वित्त वर्ष की जुलाई-सितंबर तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर सात तिमाहियों के निचले स्तर पर आ गई है. नए गवर्नर के कार्यभार संभालने तथा ब्याज दरों में कटौती के पक्ष में ब्याज दर निर्धारण समिति (एमपीसी) में बढ़ती असहमति के कारण अब सभी की निगाहें फरवरी में आरबीआई की मौद्रिक समीक्षा बैठक पर है.

सभी इस बात का इंतजार कर रहे हैं कि फरवरी की बैठक में एमपीसी का क्या रुख रहता है. इसी महीने उनकी नियुक्ति के बाद कुछ विश्लेषकों का मानना ​​था कि मल्होत्रा ​​के आने से फरवरी में ब्याज दरों में कटौती की संभावना मजबूत हुई है, लेकिन कुछ घटनाएं, विशेषकर अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा 2025 में ब्याज दर में कम कटौती का संकेत दिए जाने, रुपये पर इसके असर के बाद कुछ लोगों ने यह सवाल उठाना शुरू कर दिया है कि क्या यह ब्याज दर में कटौती के लिए उपयुक्त समय है.

कुछ पर्यवेक्षक यह भी सवाल उठा रहे हैं कि क्या 0.50 प्रतिशत की हल्की ब्याज दर कटौती – जैसा कि मुद्रास्फीति अनुमानों को देखते हुए व्यापक रूप से अपेक्षित है – आर्थिक गतिविधियों के लिए किसी भी तरह से उपयोगी होगी. एक नौकरशाह के रूप में लंबे करियर के बाद केंद्रीय बैंक में शामिल हुए दास ने कहा था कि उन्होंने उन प्रावधानों के अनुसार काम किया, जो वृद्धि के प्रति सजग रहते हुए मुद्रास्फीति पर ध्यान केंद्रित करते हैं.

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