

विदेश मंत्रालय ने कहा है कि 20 जनवरी को होने वाले डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में क्वाड देशों के विदेश मंत्री उपस्थित रह सकते हैं। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जैसवाल ने कहा, वॉशिंगटन डीसी में डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान क्वाड देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक भी हो सकती है। बता दें कि विदेश मंत्री एस जयशंकर इस समारोह में शामिल होंगे। इस मौके पर वह नए प्रशासन के कई अधिकारियों के साथ बैठक भी करेंगे।
बता दें कि क्वाड चार देशों के बीच सुरक्षा संवाद के लिए बनाया गया ग्रुप है। इसका मतलब है क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डायलॉग। इसमें भारत के अलावा अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान है। इन देशों ने समुद्र में सुरक्षा और व्यापार को सुदृढ़ करने के लिए यह संगठन बनाया है। हालांकि चीन इस संगठन से खौफ खाता है। उसको इस संगठन की बैठकें भी नहीं सुहाती हैं। हालांकि क्वाड देश हमेशा यह स्पष्ट करते रहे हैं कि इसका उद्देश्य केवल हिंद प्रशांत के साझा हितों को साधना ही है।
जहां विदेश मंत्री एस जयशंकर 20 जनवरी को वाशिंगटन में उद्घाटन समारोह में शामिल होंगे, वहीं जापानी विदेश मंत्री ताकेशी इवाया और ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री पेनी वोंग ने भी अपनी भागीदारी की पुष्टि की है। इन खबरों के बीच कि ये तीनों विदेश मंत्री भावी अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो के साथ एक अनौपचारिक क्वाड बैठक कर सकते हैं, हालांकि विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जयसवाल ने इसका कोई सीधा जवाब नहीं दिया।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति के रूप में डोनाल्ड ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह के लिए क्वाड के तीन विदेश मंत्रियों के वाशिंगटन डीसी में होने की उम्मीद है। मैं आपको विशिष्ट बैठकों के बारे में और जानकारी दूंगा। जापानी प्रधानमंत्री के विशेष सलाहकार अकिहिसा नागाशिमा ने एक्स पर पोस्ट किया कि अगर क्वाड विदेश मंत्रियों की बैठक होती है तो यह ट्रम्प के अंतर्गत ब्लॉक के भविष्य के बारे में “अधिकांश चिंताओं और आशंकाओं” को दूर करने में मदद करेगा। यह पूछे जाने पर कि क्या प्रधानमंत्री मोदी को उद्घाटन समारोह के लिए निमंत्रण मिला है, विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कुछ दिन पहले जारी बयान को दोहराया।
चीन इस संगठन को एशियाई नाटो भी कह चुका है। दरअसल हिंद प्राशंत क्षेत्र में चीन अपना वर्चस्व चाहता है। वह नहीं चाहता कि इस क्षेत्र में अमेरिका का कोई दखल हो। वहीं ये चार देश चीन को जवाब देने के लिए तैयार रहते हैं। चीन को लगता था कि ये देश कभी साथ आ ही नहीं सकते। हालांकि चार देशों का साथ आना चीन के लिए बड़ा झटका है।