शंकराचार्य और 3 नेताओं की सलाह पर महाकुंभ स्नान करने पहुंच गई थीं सोनिया गांधी, क्यों मचा था बवाल

Sonia Gandhi had reached Maha Kumbh to take a bath on the advice of Shankaracharya and 3 leaders, why was there a ruckusSonia Gandhi had reached Maha Kumbh to take a bath on the advice of Shankaracharya and 3 leaders, why was there a ruckus

नई दिल्ली। बात जनवरी 2001 की है। केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह की सरकार थी। प्रयागराज (तब के इलाहाबाद) में महाकुंभ लगा था। उन दिनों कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी थीं। वह विदेशी मूल के मुद्दे पर विपक्षियों खासकर भाजपा के निशाने पर थीं। उन दिनों कांग्रेस से नजदीकी रखने वाले द्वारकापीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने सलाह दी थी कि सोनिया गांधी को महाकुंभ में स्नान करना चाहिए। स्वरूपानंद सरस्वती विश्व हिन्दू परिषद और भाजपा के कट्टर आलोचक माने जाते थे।

शंकराचार्य ने ये सलाह कांग्रेस के उन तीन नेताओं को दी थी, जिन्होंने उनसे मुलाकात की थी। इन नेताओं में मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री माखनलाल फोतेदार और सुरेश पचौरी शामिल थे। कांग्रेस पार्टी और सोनिया के नजदीकी सलाहकारों के मंथन के बाद प्लान बना कि सोनिया गांधी इलाहाबाद जाएंगी और गंगा में डुबकी लगाएंगी लेकिन तत्कालीन राजनाथ सिंह सरकार ने इसमें रोड़ा अटका दिया।

प्रशासन ने कर दिया था मना
इलाहाबाद प्रशासन की तरफ से कहा गया कि सोनिया के महाकुंभ में पहुंचने से सुरक्षा को खतरा हो सकता है। कांग्रेस नेताओं के ये बात पच नहीं रही थी क्योंकि कुछ दिनों पहले ही तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधान विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी को मकर संक्रांति (14 जनवरी) को गंगा स्नान करने का इजाजत दी गई थी और सुरक्षा के इंतजाम किए गए थे। कांग्रेस का कहना है कि सोनिया गांधी ने जिस दिन डुबकी के लिए चुना था उस दिन कोई बड़ा या शाही स्नान नहीं है, इसलिए न तो आमजनों को परेशानी होनी है, न ही सुरक्षा व्यवस्था इतनी मुश्किल होगी। बावजूद इसके उन्हें इसका इजाजत नहीं दी गई।

बनारस से आए थे पुरोहित
24 जनवरी, 2001 को सोनिया गांधी अपने सुरक्षाकर्मियों और कांग्रेस नेताओं के साथ महाकुंभ पहुंच गईं। वहां उन्होंने त्रिवेणी में गंगा डुबकी लगाई और हिन्दू विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इसके लिए बनारस से उनके पारिवारिक पुरोहित को बुलाया गया था। इस दौरान सोनिया गांधी ने अपनी कलाई पर लाल धागा वाला कलावा भी बांधा था, जो कथित तौर पर उन्हें हिंदू पुजारी ने दिया था। सोनिया गांधी की डुबकी लगाने, गंगा पूजा, गणपति पूजा, कुल देवता पूजा और त्रिवेणी पूजा करने की तस्वीरें तब व्यापक रूप से प्रसारित की गईं थीं।

सोनिया की तस्वीरों से सियासी हड़कंप
जब सोनिया की घुटने भर पानी में उतरकर गंगा स्नान की तस्वीरें प्रसारित हुईं तो सियासी खेमों में हड़कंप मच गया। इटली में जन्मी और पली-बढ़ी रोमन कैथोलिक नेता ने अपनी यूरोपीय हिचक और परंपराओं का त्याग कर दिया था और पूरे हिन्दू विधि-विधान से पवित्र नदी के तट पर अपनी आस्था को उजागर करते हुए अपने देवर संजय गांधी सहित ससुराल के अन्य दिवंगतों के लिए छोटा सा अनुष्ठान किया था, जो एक कश्मीरी पंडित परिवार की बहू होने के नाते उनकी स्थिति के अनुसार किया गया था। दरअसल, सोनिया ने त्रिवेणी में पवित्र स्नान कर एक दोहरा संदेश देने की कोशिश की थी। पहला- अपने विदेशी मूल के बारे में विवाद को दबाने की कोशिश की थी और दूसरा- संघ के हिंदुत्व ब्रांड के लिए एक उदार और मध्यम मार्ग का विकल्प दिया था। पूजा के बाद सोनिया शंकराचार्य से भी मिली थीं।

2001 के महाकुंभ में सोनिया गांधी की पवित्र डुबकी लगाने का दांव विवादों में घिर गया था। सोनिया तब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी पहले इलाहाबाद पहुंच गई थीं। सोनिया की यात्रा अमावस्या (24 जनवरी) के दिन दूसरे शाही स्नान से दो दिन पहले हुई थी। कांग्रेस नेता प्रमोद तिवारी ने भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर तब सोनिया की इलाहाबाद यात्रा का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया था। वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई के एक आलेख के मुताबिक, तब तिवारी ने कहा था, “भाजपा ने इसे राजनीतिक मुद्दा बना दिया है, जिसे प्रशासन लागू करना चाहता है। लेकिन सोनिया जी जो कर रही हैं, वह उनकी पारिवारिक परंपरा है। पंडित नेहरू जी कुंभ में आते थे और बाद में इंदिरा जी मेले में आनंदमयी मां के शिविर में जाती थीं। उसी परंपरा को सोनिया जी बढ़ा रही हैं।”

उन्होंने ये भी आरोप लगाया था कि इलाहाबाद प्रशासन सोनिया की संगम यात्रा को रोकने पर आमादा है। तब आग में घी डालने का काम एक सरकारी आदेश ने किया था, जिसमें सभी वीआईपी को 24 जनवरी, 2001 को अमावस्या तक कुंभ में न आने के लिए कहा गया था। दरअसल, सत्तारूढ़ भाजपा सोनिया की यात्रा से बहुत खुश नहीं थी क्योंकि इस गंगा स्नान के सियासी नफा-नुकसान का आंकलन कर रही थी। अगले साल विधानसभा चुनाव होने थे। तीन साल बाद जब देश में लोकसभा चुनाव हुए तो वाजपेयी सरकार हार गई और सोनिया की अगुवाई वाले UPA गठबंधन ने बहुमत हासिल की थी। बता दें कि 1954 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी प्रयागराज में कुंभ में पवित्र डुबकी लगाई थी।

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