
सआदत हसन मंटो की कहानियांImage Credit source: Social media
लेखन की दुनिया में बड़ा नाम कहानीकार सआदत हसन मंटो की कहानियां जितनी प्रसिद्ध हैं, उतनी ही प्रसिद्ध हैं उनके खिलाफ हुए मुकदमे और सजा. अपनी कहानियों में अश्लीलता के आरोपों का शिकार हुए मंटो को अपनी कहानियों के चलते जिंदगी भर मुकदमों का सामना करना पड़ा था. 18 जनवरी को मंटो की पुण्यतिथि आइए जान लेते हैं हैं कि कैसे मंटो पाकिस्तान में तो बदनाम हुए पर पूरी दुनिया में नाम कमा गए.
अविभाजित भारत में हुआ था जन्म
11 मई 1912 को मंटो का जन्म अविभाजित भारत के पंजाब प्रांत में हुआ था. वह मुख्यत: उर्दू में कहानियां लिखते थे. फिलहाल उनकी लघु कथाओं के कुल 22 संग्रह उपलब्ध हैं. उनका एक उपन्यास भी प्रकाशित हुआ. इसके अलावा रेडियो नाटकों की पांच सीरीज के साथ ही निबंधों के तीन संग्रह और निजी स्केच के दो संग्रह प्रकाशित मिलते हैं. लंबे संघर्ष के बाद अंग्रेजों को जब भारत छोड़ना पड़ा तो उन्होंने देश को दो हिस्सों में बांट दिया. बंटवारे के बाद मंटो पाकिस्तान चले गए, जहां 18 जनवरी 1955 को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया.
अंग्रेजों के शासनकाल में भी हुई थी सजा
मंटो ने बंटवारे से पहले भारत में कई कहानियां लिखी थीं. इनमें से तीन कहानियों काली सलवार, बू और धुआं के खिलाफ अंग्रेजी शासन काल में भी मुकदमे चले. उनको अश्लीलता फैलाने के आरोप में कोर्ट से सजा तक हो गई. हालांकि, उन्होंने अदालत में फिर अपील की तो कहानियों के साथ ही मंटो भी इस आरोप से छूट गए.
पाकिस्तान में पहली ही कहानी पर मचा बहाल
मंटो की पाकिस्तान में लिखी गई पहली कहानी ठंडा गोश्त लाहौर की एक साहित्यिक पत्रिका जावेद में मार्च 1949 में प्रकाशित हुई थी. पत्रिका का प्रकाशन हुआ तो अगले ही दिन 30 मार्च को तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार ने पत्रिका की सारी प्रतियां जब्त कर लीं. इसी कहानी को लेकर पाकिस्तान के हिस्से वाले पंजाब में सरकार ने 7 मई 1949 को मंटो के अलावा पत्रिका के तत्कालीन संपादक आरिफ अब्दुल मतीन और पत्रिका के प्रकाशक नसीर अनवर पर मुकदमा लिखवा दिया.
इसके बाद पाकिस्तान में कहानी गोश्त को लेकर लंबी बहस छिड़ी. कोर्ट में गवाहियों के बाद 16 जनवरी 1950 को फैसला आया और लेखक, प्रकाशक व संपादक पर तीन-तीन सौ रुपये जुर्माना लगा दिया गया. इसके अलावा मंटो को तीन महीने की सजा सुनाई गई. संपादक और प्रकाशक को भी 21-21 दिनों की सजा सुनाई गई. इस सजा के खिलाफ तीनों ने सेशन कोर्ट में अपील की. वहां मजिस्ट्रेट ने लोअर कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया और तीनों बरी हो गए. कोर्ट ने सरकार को आदेश दिया कि जुर्माने का भी आदेश वापस ले.
हाईकोर्ट से राहत पर जुर्माना न देने पर हुई जेल
सेशन कोर्ट के फैसले के खिलाफ पंजाब की सरकार ने लाहौर हाईकोर्ट में अपील कर दी. हाईकोर्ट ने 8 अप्रैल 1952 को अपने फैसले में मंटो और संपादक-प्रकाशक पर तीन-तीन सौ रुपये जुर्माना लगा दिया. जुर्माना न चुकाने पर मंटो को एक महीना जेल में बिताना पड़ता.
मंटो के खिलाफ पाकिस्तान में आखिरी मुकदमा उनकी कहानी ऊपर-नीचे और दरमियान को लेकर चलाया गया. लाहौर के तब के एक अखबार एहसान में यह कहानी सबसे पहले छपी. बाद में इसे कराची की एक पत्रिका पयाम-ए-मशरिक में भी प्रकाशित किया गया. इसके बाद मंटो की इस कहानी पर भी अश्लीलता का आरोप लगाया गया और सरकार ने उनके खिलाफ कोर्ट में केस कर दिया. मजिस्ट्रेट मेहंदी अली सिद्दीकी ने कुछ ही तारीखों के बाद फैसला सुना दिया. इसमें मंटो पर 25 रुपये जुर्माना लगा दिया. इस जुर्माने को तुरंत चुकता कर दिया गया. यह मंटो की जिंदगी का आखिरी मुकदमा साबित हुआ.
देश का बंटवारा नहीं चाहते थे मंटो
मंटो देश के बंटवारे के खिलाफ थे. उन्होंने लिखा है कि जनवरी 1948 में मैं भारत छोड़कर पाकिस्तान आया. हालांकि, मुझे समझ में नहीं आता कि मैं कहां हूं. उन्होंने सवाल किया कि बंटवारे से पहले जो साहित्य रचा गया था, क्या उसका भी बंटवारा होगा? क्या पाकिस्तान का साहित्य अलग होगा? पाकिस्तान के हालात क्या अंग्रेजों के कार्यकाल से अलग होंगे? क्या सरकार की आलोचना करने की छूट होगी? अपने इन सवालों को लेकर मंटो ने फैज अहमद फैज, चिराग हसन हसरत, अहमद नदीम कासमी और साहिर लुधियानवी जैसे तत्कालीन नामी रचनाकारों से चर्चा की. हालांकि, उनके सवालों का जवाब किसी के नाम पर नहीं था.