बांग्लादेश में KUET विश्वविद्यालय में छात्र राजनीति पर प्रतिबंध लगाने की मांग तेज हो गई है. इस मुद्दे को लेकर दो गुटों के बीच कई झड़पें भी हुईं. इससे विश्वविद्यालय के परिसर में तनावपूर्ण स्थिति पैदा हो गई है. ये घटना इतनी भयानक थी कि इस दौरान कई छात्र भी घायल हो गए. ऐसे में इन दिनों ये अटकले तेज हैं कि बांग्लादेश में छात्र राजनीति पर बैन लग सकता है.
अब ये सवाल उठ रहा है कि जो मोहम्मद यूनुस खुद छात्र राजनीति से निकलकर आज देश की अंतरिम सरकार की बागडोर संभाल रहे हैं, आखिर वो इसी छात्र राजनीति को बैन क्यों करना चाह रहे हैं? ये सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं, क्योंकि यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार देश के प्रमुख छात्र संगठन बांग्लादेश छात्र लीग पर प्रतिबंध भी लगा चुकी है.
छात्र राजनीति पर कड़े पहरे
यह संगठन बर्खास्त प्रधानमंत्री शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग का छात्र विंग था. सरकार ने भले ही इसे आतंकी संगठन घोषित करते हुए आतंकवाद विरोधी कानून के तहत प्रतिबंध लगाया हो, लेकिन इससे ये तो साफ है कि यूनुस कहीं न कहीं छात्र राजनीति पर कड़े पहरे लगाने की तो कोशिश कर ही रहे हैं. एक कारण ये भी माना दा रहा है कि यूनुस नहीं चाहते उनके खिलाफ कोई छात्र संगठन कोई मूवमेंट करे.
देश की मुखिया को ही देश छोड़ना पड़ गया
छात्र राजनीति पर एक नारा दिया जाता है कि जिस ओर जवानी चलती है, उस ओर जमाना चलता है. इस नारे का हर शब्द अपने आप में खुद बयां कर रहा है कि सरकारों की जड़ों को अगर कोई उखाड़ फेंकने की हिम्मत कर सकता है तो वह सिर्फ और सिर्फ छात्र आंदोलन ही है. इसी बांग्लादेश के हालिया राजनीतिक घटनाक्रम पर नजर डाले तो वह भी यही चीख-चीख कर बयां कर रहा है. देश की पूर्व पीएम हसीना को ही देख लीजिए एक छोटा सा छात्र आंदोलन इतना बड़ा हो गया कि देश की मुखिया को ही देश छोड़ना पड़ गया.
छात्र राजनीति पर नकेल कसने की कोशिश
इतना ही नहीं, देश को कई हिंसा और आगजनी का सामना भी करना पड़ा. खैर इसके बाद अंतरिम सरकार बनी. सरकार के मुखिया बने मोहम्मद यूनुस. वहीं, जो छात्र संगठन आंदोलन कर रहा था, उनके लीडर को इस सरकार में भी शामिल किया गया, लेकिन अब एक बार फिर बांग्लादेश में सरकार के खिलाफ हवा बनने लगी.
बांग्लादेश की बागडोर यूनुस को देने वाले छात्र ही अब उनसे अलग होने की बात कर रहे हैं. ऐसे में यूनुस को ये भी लग रहा है कि कहीं उनकी पकड़ फिर न ढीली हो जाए और छात्र संगठन कहीं इस सरकार के खिलाफ भी न खड़ा हो जाए. माना जा रहा है इन सभी उथल-पुथल से बचने के लिए भी यूनुस छात्र राजनीति पर नकेल कस रहे हैं.
ये छात्र नेता छोड़ सकता है यूनुस का साथ
इस खबर में छात्र राजनीति की ताकत को जानने से पहले ये जान लेते हैं कि आखिर कौन है जो यूनुस का साथ छोड़ रहा है. शेख हसीना का पतन करने वाले छात्र आंदोलन के नेता नाहिद हसन अब यूनुस सरकार से अलग होना चाह रहे हैं. इस सरकार में नाहिद को एडवाइजर IT मिनिस्टर बनाया गया है.
हालांकि, हाल ही में नाहिद ने एक प्राइवेट चैनल में कहा था कि वह जल्द ही इस पद से इस्तीफा दे सकते हैं और नई राजनीतिक पार्टी में शामिल हो सकते हैं. इसलिए ये कयास भी लगाए जा रहे हैं कि यूनुस सरकार में सब ऑल इज वेल नहीं है. कहीं न कहीं यूनुस को देश की बागडोर देने वाले ही अब उनसे किनारा कर रहे हैं. ऐसे में माना जा रहा है यूनुस अपने आप को बचाने के लिए कहीं ये छात्र राजनीति को खत्म तो नहीं करना चाहते.
छात्र राजनीति के मायने
देश की राजनीति में छात्र राजनीति की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. यह सिर्फ विश्वविद्यालयों और कॉलेजों तक सीमित नहीं होती, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति को भी प्रभावित करती है. छात्र राजनीति को लोकतंत्र की नर्सरी कहा जाता है. यह युवाओं को नेतृत्व, संगठन कौशल और जनता की समस्याओं को समझने का मौका देती है.
हालांकि, समय के साथ छात्र राजनीति में कई नकारात्मक पहलू भी सामने आए हैं. कई जगहों पर यह हिंसा, जातिवाद, बाहुबल और धनबल से प्रभावित हो गई है. कई छात्र संगठनों पर आरोप लगते रहे हैं कि वे राजनीतिक दलों के लिए मोहरा बनकर रह गए हैं, जिससे शैक्षणिक माहौल प्रभावित होता है.
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