Himachali Khabar – (property rights) पिता व बेटे के बीच संपत्ति विवाद तो अक्सर आते रहते हैं, लेकिन कभी-कभी पिता व बेटी के बीच भी संपत्ति (property knowledge) को लेकर विवाद इतना गहरा जाता है कि मामला कोर्ट तक पहुंच जाता है। पिता की प्रोपर्टी में एक विशेष परिस्थिति में बेटी के अधिकारों को नकारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट का यह फैसला एक पिता की संपत्ति (daughter’s rights in father’s property) में बेटा-बेटी के बराबर हक होने के बावजूद विपरीत आने से काफी अहम हो गया है। आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के इस सुप्रीम फैसले के बारे में।
यह फैसला सुनाया कोर्ट ने –
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब वे बेटियां अपने पिता की संपत्ति (property dispute) में हिस्सा नहीं पा सकेंगी, जो पिता की ही खिलाफत करते हुए उनके पास नहीं रहना चाहती। यह निर्णय उन परिवारों के लिए एक नया मोड़ है, जहां पहले बेटियां भी अपनी भागीदारी का दावा कर सकती थीं। सुप्रीम कोर्ट (SC decisoin on property rights) ने इस मामले में अपने फैसले से कई पुराने कानूनी पहलुओं को चुनौती दी है।
पढ़ाई और विवाह के लिए नहीं मांग सकती खर्चा-
सुप्रीम कोर्ट में एक मामले की सुनवाई हुई, जिसमें दो जजों ने फैसला दिया कि यदि एक लड़की की उम्र लगभग 20 साल हो और वह अपने पिता से कोई रिश्ता नहीं रखना चाहती, तो वह अपनी पढ़ाई और विवाह के लिए पिता की संपत्ति (daughter’s property rights on father’s property) से कोई भी खर्च नहीं मांग सकती। अदालत का कहना था कि उसे इस तरह की मांग करने का अधिकार नहीं है। यह फैसला बेटी की संपत्ति से जुड़े अधिकारों पर था और यह बताता है कि रिश्तों में अनबन होने पर किसी को संपत्ति से खर्च मांगने का हक नहीं होता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी किया स्पष्ट –
सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि यदि बेटी अपने पिता से रिश्ता नहीं रखना चाहती है, तो उसे पिता की संपत्ति पर कोई अधिकार (Property rights for daughters) नहीं मिलेगा। इस मामले में माता-पिता का तलाक हो चुका है, और याचिकाकर्ता ने अपनी पत्नी से अलग होने के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था। कोर्ट ने तलाक की अर्जी मंजूर कर दी। अदालत ने कहा कि पत्नी अपने भाई के साथ रह रही है, जबकि पति अपनी बेटी की शिक्षा और अन्य खर्चे का ध्यान रख रहा है। इसके अलावा, पति ने पत्नी को 8000 रुपये महीने का अंतरिम गुजारा भत्ता देने की व्यवस्था की है। इस फैसले से यह साफ हो गया कि बेटी अगर पिता से रिश्ता नहीं रखती, तो उसे संपत्ति (property rights) से संबंधित कोई अधिकार नहीं होगा।
यह राशि रहेगी मां के पास-
कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि पति अपनी पत्नी को एकमुश्त राशि के तौर पर 10 लाख रुपये दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट (SC decision on daughter’s property right) ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि मां अपनी बेटी की सहायता करती है, तो वह राशि मां के पास ही रहेगी। इसका मतलब है कि पत्नी को मिलने वाली राशि का किसी और को हक नहीं होगा। यह निर्णय संपत्ति के वितरण और पति-पत्नी के बीच वित्तीय अधिकारों से संबंधित था, जिसमें मां की भी एक भूमिका थी।
इतने समय से चल रहा था मामला –
एक मामले में पति ने जिला अदालत में अर्जी दी थी और वहां उसके पक्ष में फैसला आया। इसके बाद पत्नी ने हाईकोर्ट का रुख किया, जहां तलाक की अर्जी खारिज कर दी गई। फिर यह मामला सुप्रीम कोर्ट (SC decision on daughter property rights) में पहुंचा, जहां कोर्ट ने अब अपना फैसला सुनाया। इस पूरे प्रकरण में अदालतों ने पति-पत्नी के बीच के विवाद को देखा और अब सुप्रीम कोर्ट (supreme court) का निर्णय अंतिम माना गया। कोर्ट का फैसला दोनों पक्षों के दावों और परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए आया है।
इस संशोधन के बाद मिला बेटियों को प्रोपर्टी में हक –
भारत में 1965 का एक कानून है, जो संपत्ति के बंटवारे से संबंधित नियम बनाता है। 2005 में इस कानून में बदलाव किया गया था, जिससे बेटों और बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार दिया गया। पहले, विवाहित बेटियों (Daughters Property Rights) को संपत्ति में हिस्सा नहीं मिलता था, लेकिन 2005 के संशोधन के बाद यह अधिकार मिल गया। यह संशोधन हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1965 (Hindu Succession Act, 1965) में किया गया था।