नई दिल्ली : तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने गुरुवार को कहा कि हिंदी को जबरन थोपे जाने के कारण 100 साल में 25 उत्तर भारतीय भाषाएं खत्म हो गईं। स्टालिन ने गुरुवार को एक्स पर पोस्ट कर कहा- एक अखंड हिंदी पहचान बनाने की कोशिश प्राचीन भाषाओं को खत्म कर रही है। उत्तर प्रदेश और बिहार कभी हिंदी प्रदेश नहीं थे। अब उनकी मूल भाषाएं अतीत की निशानी बन गई हैं।
CM ने कहा कि राज्य सरकार हिंदी को थोपने की इजाजत नहीं देगी और तमिल भाषा और संस्कृति की रक्षा करेगी। सीएम स्टालिन ने अपने पत्र में लिखा, “हम हिंदी को थोपने का विरोध करेंगे। हिंदी एक मुखौटा है, जबकि संस्कृत उसका छिपा हुआ चेहरा है।”
मूर्खतापूर्ण बयान
स्टालिन ने लिखा- दूसरे राज्यों के मेरे प्यारे बहनों और भाइयों, क्या आपने कभी सोचा है कि हिंदी ने कितनी भारतीय भाषाओं को निगल लिया है? भोजपुरी, मैथिली, अवधी, ब्रज, बुंदेली, गढ़वाली, कुमाऊंनी, मगही, मारवाड़ी, मालवी, छत्तीसगढ़ी, संथाली, अंगिका, हो, खरिया, खोरठा, कुरमाली, कुरुख, मुंडारी और कई और भाषाएं अब अस्तित्व के लिए हांफ रही हैं। डीएमके सरकार का दावा है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के तहत तीन-भाषा फॉर्मूले के जरिए हिंदी थोपने की कोशिश की जा रही है.
वहीं, बीजेपी ने स्टालिन के बयान को मूर्खतापूर्ण बताया। स्टालिन ने कहा- हिंदी थोपे जाने का विरोध किया जाएगा क्योंकि हिंदी एक मुखौटा है और संस्कृत एक छिपा हुआ चेहरा है। द्रविड़ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सीएन अन्नादुरई ने दशकों पहले द्विभाषा नीति लागू की थी। इसका उद्देश्य तमिल लोगों पर हिंदी-संस्कृत की आर्य संस्कृति को न थोपना था।
नहीं स्वीकार करेंगे
मुख्यमंत्री स्टालिन का आरोप है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत संस्कृत के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं को पढ़ाने की अनुमति दी गई है, जबकि तमिल जैसी भाषाओं को ऑनलाइन पढ़ाने की योजना बनाई गई है। उनका कहना है कि इससे साफ पता चलता है कि केंद्र सरकार संस्कृत थोपने की योजना बना रही है, जिसे तमिलनाडु सरकार किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेगी।
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