Himachali Khabar : Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट प्रोपर्टी से जुड़े मामलों को न्यायपुर्वक हल करके अहम फैसला सुनाता है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (SC latest decision) ने एक अहम फैसला सुनाया है, जिसमें उसने गिफ्ट डीड को लेकर माता-पिता के लिए बड़ा झटका दिया है। यह फैसला उनके लिए महंगा साबित हो सकता है क्योंकि अब उन्हें अपनी संपत्ति को बच्चों के नाम करने के तरीके को लेकर कुछ नई शर्तों का सामना करना होगा। इस फैसले के बाद गिफ्ट डीड (Gift Deed rules) से संबंधित नियमों में कई महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं जो आने वाले समय में कानूनी लड़ाई को और भी जटिल बना सकते हैं। इस फैसले से लाखों परिवारों की चिंता बढ़ सकती है क्योंकि अब हर कदम सोच-समझ कर उठाना होगा।
बुजुर्गों के लिए दिन अहम फैसला-
सुप्रीम कोर्ट के हाल ही में एक अहम फैसला सुनाया है। कोर्ट (court ka decision) के इस फैसले की वजह से बुजुर्गों को काफी लाभ हो रहा है। इसकी वजह से वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में सुधार देखने को मिलेगा। आमतौर पर देखा जाता है कि कई अभिभावकों को उनके बच्चे प्रॉपर्टी और गिफ्ट लेने के बाद नजरअंदाज कर देते हैं। कोर्ट (court ka faisla) ने हाल ही में इस मामले में अहम फैसले को सुनाया है।
जिम्मेदारी से नहीं मिल सकता छुटकारा-
इसके फैसले के मुताबिक बच्चों को अब माता-पिता की प्रॉपर्टी (property ke adhikar) और बाकी गिफ्ट दिए जाने के बाद एक शर्त उसमें शामिल किया जाएगा। शर्त के अनुसार बच्चों को माता-पिता का ख्याल भी रखा जाता है। उनकी जरूरतों को पूरा करने की जिम्मेदारी भी बच्चों की ही होगी। अगर बच्चे इन शर्तों का पालन नहीं करते हैं तो माता-पिता को उनके हाल पर अकेला छोड़ दिया तो उनसे सारी प्रॉपर्टी (gift deed rules) और बाकी गिफ्ट वापस ले लिए जाएंगे और प्रॉपर्टी के ट्रांसफर को भी रद्द किया जा सकता है।
कोर्ट के फैसला सुनाने का कारण-
मामले के मुताबिक माता पिता ने अपनी संपत्ति को बेटे (son’s right on father property) को इस शर्त पर गिफ्ट किया था कि वो उनकी सेवा करेगा। बेटे की उपेक्षा व दुर्व्यवहार के वजह से मां ने ट्रिब्यूनल में गिफ्ट डीड रद्द करने के लिए केस दर्ज कर दिया और केस को भी जीत भी गई। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने इस आदेश को भी रद्द कर दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट (high court decision) की खंडपीठ के निर्णय में भी बदलाव कर दिया था।
जस्टिस ने जानकारी देते हुए बताया कि अगर कोई वरिष्ठ नागरिक किसी व्यक्ति को इस शर्त पर संपत्ति को हस्तांतरित नहीं किया जा सकता है। वह उनकी सेवा करते हुए बुनियादी सुविधाएं को भी दिया जाता है। लेकिन संपत्ति (High court Decision for parents) लेने वाला इस शर्त का उल्लंघन करता है तो संपत्ति का हस्तांतरण धोखाधड़ी माना जाता है। ऐसे मामलों में ट्रिब्युनल बुजुर्ग माता-पिता को संपत्ति वापस हस्तांतरित करने और बेदखली का आदेश दिया जा सकता है। वरिष्ठ नागरिकों द्वारा उपहार में दी गई संपत्ति को वापस करने की ट्रिब्युनल (property tribunal kya hota h) की शक्ति के बिना, बुजुर्गों को लाभ पहुंचाने वाले कानून के उद्देश्य ही विफल कर दिया जाएगा।
धोखाधड़ी का मामला होगा दर्ज-
शीर्ष अदालत द्वारा जारी की गई जानकारी के मुताबिक बच्चों द्वारा बुजुर्गों की सेवा न करने पर संपत्ति के ट्रांसफर को रद्द कर दिया जाएगा। इसके साथ ही में संपत्ति ट्रांसफर को भी धोखाधड़ी या जबरदस्ती के तहत माना जाएगा। बच्चों अगर माता-पिता (parents property rules) की देखभाल करने में विफल रहते हैं तो माता-पिता ने उन्हें जो प्रॉपर्टी और गिफ्ट दिए हैं वो वरिष्ठ नागरिकों के भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम के तहत रद्द भी किये जा सकते हैं। कुछ मामले के मुताबिक ऐसे भी मामले सामने आए हैं, जहां पर धोखाधड़ी (case for Fraud) के जरिये संपत्ति को हथिया लिया जाता है। इसके बाद में उसे कानूनी तौर पर संपत्ति का ट्रांसफर बताया जाता है।
100 प्रतिशत संपत्ति को न करें ट्रांसफर-
सुरक्षित बुढ़ापे के लिए कभी भी अपनी संपत्ति की 100 फीसदी बच्चों को ट्रांसफर (property transfer rules) न करें। चाहे बच्चा कामयाब हो या फिर असफल, दोनों स्थितियों में बचना काफी ज्यादा जरूरी होता है। उदाहरण के तौर पर एक मामले में 2015 के अंदर रेमंड समूह में पूरी 37.17 फीसदी हिस्सेदारी छोटे बेटे के नाम पर कर दी थी। इसके बाद गौतम ने अपने पिता (pita ke sampatti par adhikar) को बेदखल कर दिया। इस बात से ये जानकारी मिलती हैं कि सुरक्षित बुढ़ापे के लिए कभी भी अपनी संपत्ति को पूरी तरह से किसी को भी ट्रांसफर न करें।
जानिये क्या होता है गिफ्ट डीड का अर्थ-
गिफ्ट डीड (Gift Deed kya hoti h) एक प्रकार का कानूनी दस्तावेज होता है। इस दस्तावेज का यूज करके किसी संपत्ति या संपत्ति का मालिकाना हक एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को हस्तांतरित कर दिया जाता है। यह पैसे एक प्रकार का आदान-प्रदान होता है जो बिना मालिकाना हक (Ownership rights) के ही हस्तांतरीत किया जाता है। इसमें कोई भी रजिस्ट्री शुल्क या ट्रांसफर शुल्क नहीं लगाया जाता है।