कई बार हमारे मन में विचार आता है कि आखिर नारी का जन्म किस आधार पर मिलता। कौनसा कर्म करने पर नारी का जन्म प्राप्त होता है। तो आइए इस बारे में जानते है।
शास्त्रो के अनुसार आत्मा का कोई जेंडर नहीं है। जब भगवान ने जीवों की उत्पति की तब उन्होंने दो प्रजाति के जीव बनाए। एक नर और दूसरा मादा। लेकिन कभी कभी ऐसा होता है कि पुरुष की आत्मा को स्त्री का शरीर मिल गया हो या फिर स्त्री की आत्मा को पुरुष का शरीर मिला हो। तो ये क्यों होता है। इसके पीछे के दो मुख्य कारण है, आइए जानते है।
आखिर किस कर्म के कारण मिलता है स्त्री जन्म ?
पहला कारण
बता दें कि व्यकित जैसा अपना स्वभाव बनाता है, उसके अनुरुप उसे जीवन मिलता है। जैसे कि आपने अपना स्वभाव पशुओं जैसा बना लिया, जो काम पशु कर रहे है वो आप कर रहे है। वहीं जो पशु खा रहा है वहीं हम सेवन कर रहे हैं। तो निश्चित रुप से हमारा जन्म पशु का होगा।
ऐसे में अगर आपने अपना स्वभाव स्त्री जैसा बना रखा है, हमने अपनी इंद्रियों को स्त्री के जैसा बना लिया है, हमारा मन, हमारी इन्द्रियां वहीं करना चाहती हैं जो एक स्त्री करती है तो निश्चित रुप से हमारा अगला जन्म स्त्री के रुप में ही होगा।
दूसरा कारण
आप को बता दें कि मृत्यु के समय मनुष्य की आसक्ति जिस ओर होती है उसका जन्म उसी आसक्ति के आधार पर होता है। मान लीजिए अगर हम मृत्यु के समय स्त्री को याद करते-करते प्राण त्याग देते हैं तो हमारा अगला जन्म स्त्री के रुप में ही होगा।
मृत्यु के समय सोची गई बात अगले जन्म के विषय में सबसे महत्वपूर्ण है।
ऐसे में हम जिन आसक्तियों को लेकर हमारे प्राण त्याग देते है। अगले जन्म में उन्हीं आसक्तियों को भोगने के लिए आते हैं। चाहे शरीर वो किसी का भी हो। अगर मरते समय हम स्त्री में अपने मन को फंसाए रहे अथवा स्त्री को सोचते रहे तो स्त्री में आसक्ति हमारी बनी रही तो अगला जन्म हमारा स्त्री का हो जाएगा। मतलब जिस चीज को हम सोचकर मरते हैं हमारा अगला जन्म उसी का होता है।