49 साल पहले आज के दिन ही लगा था ‘आपातकाल’
इंदिरा गांधी (Indira announced Emergency) के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 25 जून 1975 को जो फैसला लिया उसके कारण आज तक विपक्षी पार्टियां और आम जनता पानी पी पी कर उन्हें कोसती हैं। 26 जून की सुबह जब इंदिरा गांधी ऑल इंडिया रेडियो पर आई तो उन्होंने कहा कि “भाईयों और बहनों राष्ट्रपति जी ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की है, लेकिन इससे घबराने और आतंकित होने की कोई वजह नहीं है” लेकिन ये खबर सुनते ही पूरा भारत सदमें में था, क्योंकि कोई नहीं जानता था कि अगले कुछ घंटों, दिनों या फिर महीनों और सालों में उनके साथ क्या होने वाला है?
इमरजेंसी के कारण देश का जो बुरा हाल हुआ वो काला धब्बा कांग्रेस सरकार के दामन से कभी धोया नहीं जा सकता। 1975 से लेकर 21 मार्च 1977 तक चली इस इमरजेंसी के दौरान जो कुछ हुआ वो भारत के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है। खुद कांग्रेस के नेता राहुल गांधी भी इंदिरा गांधी (Indira announced Emergency) द्वारा लिए गए इस फैसले को गलत बताते हैं।
इमरजेंसी में चला गिरफ्तारियों का दौर
25 जून की आधी रात को जैसे ही उस समय के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने आपातकाल के दस्तावेजों पर अपने हस्ताक्षर किए तो वैसे ही पूरा का पूरा लोकतंत्र इंदिरा गांधी (Indira announced Emergency) के कब्जे में आ चुका था। यहां तक की सविंधान की धारा 21 तक निलंबित कर दी गई थी जिसकी वजह से हर नागरिक को जीने के अधिकार मिला हुआ था। हालांकि खुद कांग्रेस की सरकार इमरजेंसी के भीषण परिणामों से बेखबर थी, लेकिन सरकार ने तैयारी पहले ही कर ली थी। 25 जून की रात को हस्ताक्षर होने के बाद से लेकर 26 जून की सुबह इसके ऐलान से पहले ही गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो चुका था।
विपक्षी पार्टियों के साथ साथ इंदिरा गांधी के कई विरोधी सलाखों के पीछे पहुंचा दिए गए थे। लोकतांत्रिक व्यवस्था को पूरी तरह से धवस्त कर दिया गया था। कई बड़े अखबरों और मीडिया हाउसों पर ताला लटका दिया गया था और इंदिरा गांधी के खिलाफ कुछ भी लिखने वाले पत्रकारों को सीधा हवालात में बंद कर दिया गया था। ये दौर एक ऐसा दौर था जिसे भारत के लोगों ने ना तो कभी देखा और ना ही सुना था।
करीब 19 महीनों तक चली इस इमरजेंसी में हजारों लोग जेल में बंद थे, बाहर था तो बस तानाशाह रवैए से पैदा हुआ सन्नाटा, जिसे इंदिरा गांधी और पूरी कांग्रेस ने अपने पक्ष में समझ लिया था। हालांकि वो इसमें भी गलत ही साबित हुई थी।
इस वजह से लिया आपातकाल का फैसला
इंदिरा गांधी द्वारा लिया गया आपातकाल का फैसला एकदम से नहीं लिया गया था बल्कि कई छोटी छोटी घटनाओं ने इंदिरा (Indira announced Emergency ) को ऐसा करने के लिए मजबूर कर दिया था। इसकी शुरूआत होती है 12 जून 1975 से जब इलाहबाद हाई कोर्ट ने रायबरेली चुनाव को लेकर अपना एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। दरअसल इस दिन इलाहबाद हाई कोर्ट ने इंदिरा गांधी को 6 साल के लिए मताधिकार से वंचित रखने का फैसला सुना दिया था।
इस फैसले के कारण भारत की पूरी राजनीति में भूचाल आ गया था क्योंकि इस फैसले से इंदिरा गांधी की लोकसभा सदस्यता तक रद्द हो चुकी थी। ये फैसला उस वक्त आया था जब इंदिरा गांधी (Indira announced Emergency) की सरकार के लिए कई मुद्दे पहले से ही सर दर्द बने हुए थे। एक तरफ गुजरात में सरकार के खिलाफ छात्रों का काफी हिंसक आंदोलन तेज होता जा रहा था।
दूसरी तरफ बिहार में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से लाखों लोग लगातार जुड़ते ही जा रहे थे। इसके साथ ही 1974 में जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में रेलवे की हड़ताल भी खूब जोरों शोरों से चल रही थी। ऐसे वक्त में चारों तरफ से घिरी हुई इंदिरा गांधी को जब प्रधानमंत्री की कुर्सी अपने हाथ से निकलती हुई दिखी तो उन्होंने आगामी परिणामों की चिंता किए बिना अपना आज बचाने की चाह में देश को इमरजेंसी की खाई में धकेल दिया।