आँधियों को जिद है जहाँ बिजलियाँ गिराने की हमें भी जिद है वहीँ आशियाँ बनाने की। यही कहती है उर्वशी की कहानी…
गुलज़ार साहब की एक बहुत ही मशहूर शायरी है कि, “वक्त रहता नहीं कहीं टिककर, आदत इसकी भी आदमी सी है।” जी हां वास्तव में वक्त या समय को लेकर गुलज़ार साहब की यह लाइन काफ़ी सटीक है, क्योंकि जिस प्रकार मानव प्रवृत्ति होती है कि वह सदैव चलता रहता है। ऐसे ही वक्त भी चलता रहता यानी कि बदलता रहता है। कुल-मिलाकर देखें तो किसी के जीवन में आज दुःखो के अंधेरे हैं। तो यह चिर स्थायी नहीं है। हर अंधेरी रात के बाद जैसे उजाले का सूरज निकलता है।
ठीक उसी प्रकार मानव जीवन में भी मुसीबतों के बाद सुखों का सवेरा आता है। ऐसे में अगर यह कहें कि वक्त और कुदरत ही होती है। जो इंसान को फर्श से अर्श पर और अर्श से फर्श पर पहुंचाने का कार्य करती है। तो यह ग़लत नहीं होगा। व्यक्ति के हाथ में होता है तो सिर्फ़ उसका कर्म। फ़िर ऐसे में यह निर्णय उस व्यक्ति को ही लेना पड़ता है कि वह सही दिशा में कर्म कर रहा या नहीं।
दुनिया में बहुत से ऐसे लोग होते हैं, जोकि रातों रात अमीर बन जाते हैं और ऐसे लोगों की भी इस धरती पर कोई कमी नहीं है, जो धनवान होते हुए पल भर में गरीब हो जाते हैं। कुदरत इंसान को उसके वक्त के हिसाब से मौका देती है। आज हम आपको एक ऐसी ही महिला की कहानी से रूबरू करवाने जा रहे हैं, जोकि करोड़ों रुपए की मालिक होने के बावजूद सडक़ों पर छोले कुलचे बेचने के लिए मजबूर हो गई थी।
जी हां इस महिला की कहानी किसी भी तरह से लोगों के लिए प्रेरणा से कम नहीं हैं। हौंसले और जज्बे की धनी इस महिला ने सडक़ पर एक रेहड़ी में छोले कुलचे बेचने का जो सफर शुरू किया था, वह उन्हें एक शानदार रेस्टोरेंट तक ले गया। बता दें कि यह कहानी है। हरियाणा के गुरूग्राम में रहने वाली महिला उर्वशी यादव की। जो आज के समय में देश की करोड़ों महिलाओं के लिए प्रेरणा की जीती जागती मिसाल है। वह भी उस दौर में उनकी प्रासंगिकता और अधिक बढ़ जाती है। जिस दौर में प्रधानमंत्री ‘आत्मनिर्भर भारत’ की बात करते हैं।
बता दें कि इस महिला ने सडक़ पर छोले कुलचे बेचने से सफऱ शुरू करके एक शानदार रेस्टोरेंट बना लिया, जोकि वाकई में अपने आप में एक अदभुत कहानी है।
साधन संपन्न परिवार से है उर्वशी…
दरअसल बता दें कि उर्वशी का विवाह गुरूग्राम के एक धनाढय़ परिवार में हुआ था। उनके पति एक बड़ी कंस्ट्रक्शन कंपनी में अच्छे पद पर नियुक्त थे। घर में नौकर चाकर सब थे। साथ ही सुख समृद्धि और पैसों की भी कोई कमी नहीं थी। वह हरियाणा की हाईटेक सिटी गुरूग्राम में आलीशन घर में अच्छे से जीवन यापन कर रही थीं। पूरा परिवार खुश था और बेहतर तरीके से रह रहा था। परंतु इसी बीच इस परिवार के किसी भी सदस्य ने सपने में भी नहीं सोचा था कि कभी उन्हें पाई पाई को भी मोहताज होना पड़ सकता है, लेकिन जब क़िस्मत अपना खेल दिखाती है। तो फ़िर अच्छे अच्छे उसके सामने डगमगा जाते हैं। फ़िर वही हुआ इस परिवार के साथ भी।
पति के एक्सीडेंट ने बदल दी जिदंगी…
बता दें यह साल था 2016 और तिथि 31 मई। जब उर्वशी के पति अमित का एक खतरनाक एक्सीडेंट हो गया। इस एक्सीडेंट में अमित को काफी चोटें लगी थी, जिसके चलते उनकी कई सर्जरी करवाई गई। चोट अधिक होने की वजह से सर्जरी तो कर दी गई, लेकिन अमित काम करने लायक नहीं रह गए थे। डाक्टरों ने उन्हें बैड रेस्ट की सलाह दी थी। इस सलाह के चलते अमित को मजबूरी में अपनी नौकरी छोडऩी पड़ गई। इसके बाद से परिवार के हालात बदलने शुरू हो गए।
फ़िर अर्श से फर्श तक आने में नही लगी देर…
परिवार के पास नौकरी के अलावा कमाई का कोई और ऐसा साधन नहीं था, जिससे घर को चलाया जा सके। नौकरी जाते ही बैंक में जमा सेविंग्स भी धीरे धीरे खत्म होने लगी। अमित की दवाई, बच्चों की फीस और घर परिवार का खर्च चलाने में सारा पैसा खर्च होने लगा। अचानक से हुई इस आर्थिक बदहाली ने इस परिवार को मुश्किल में डाल दिया। बिना पैसों के एक भी दिन काटना संकट पूर्ण हो गया था। अमित इस हालत में नहीं थे कि वह अपने परिवार को इस चक्रव्यूह से निकाल सकें। वह बेबस थे और तनाव पूर्ण होते इन हालातों को खुली आंखों से देखकर भी कुछ नहीं कर पा रहे थे।
ऐसे में उर्वशी ने वो करने की ठानी। जो उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था, लेकिन आर्थिक बदहाली के चक्रव्यूह से निकलने के लिए तो कुछ न कुछ करना ही था। तो ऐसे में उर्वशी ने इस जिम्मेदारी को चुनौती समझते हुए अपने कंधों पर उठाने का निर्णय लिया। उर्वशी ने ठान लिया था कि वह अपने परिवार को इस चक्रव्यूह से निकालने के लिए वह कुछ भी करेगी। हालांकि उर्वशी को नौकरी करने का भी कोई अनुभव नहीं था, जिसकी वजह से उन्हें आसानी से कोई काम भी नहीं मिलता। हालांकि पढ़ी-लिखी होने की वजह से उर्वशी को एक नर्सरी स्कूल में जॉब मिल गई। परंतु इस जॉब से मिलने वाली रकम इतनी नहीं थी, जिससे वह अपने परिवार को आसानी से चला सकें। इस छोटी सी सैलरी से घर का खर्च चलाना बहुत मुश्किल हो गया था। ऐसे में उर्वशी ने कमाई का कोई और जरिया निकालने का सोचा, जिससे अधिक पैसा मिल सके।
फ़िर छोले कुल्चे बेचने की ठानी…
इसके बाद उर्वशी ने अपना खुद का काम खोलने का निर्णय लिया। हालांकि इसके लिए उर्वशी को पैसों की भी जरूरत थी। वह खुद की दुकान खोलना चाहती थी, लेकिन इस काम में पैसा चाहिए था। जोकि उस वक्त उनके पास नहीं था। तब उर्वशी ने एक कठोर फैसला लिया कि दुकान ना सही वह एक ठेला तो लगा ही सकती हैं। यह फैसला परिवार के बहुत से लोगों को रास नहीं आया। मगर उर्वशी ने उस वक्त अपनी जरूरत को देखा और किसी की सलाह को मानें बिना छोले कुलचे का ठेला लगा लिया। उर्वशी के इस फैसले का परिवार ने बहुत विरोध किया और अपनी इज्जत और मान मर्यादा की दुहाई भी दी। लेकिन अब उर्वशी कहाँ मनाने वाली थी। उन्हें यह पता था कि इस इज्जत और मान मर्यादा से उनके बच्चों का पेट नहीं भरने वाला और ऐसे ही रहा तो परिवार बदहाली में फंसा रहेगा तथा मदद के लिए भी कोई हाथ आगे नहीं बढ़ाएगा।
उर्वशी ने लगा लिया छोले कुल्चे का ठेला…
तब उर्वशी ने गुरूग्राम के सैक्टर -14 में सडक़ किनारे एक ठेला लगाकर छोले कुल्चे बेचने शुरू कर दिए। हैरत की बात यह है कि एक वक्त था। जब उर्वशी एसी में रहकर ठाठ बाट की जिंदगी जी रही थी। महंगे होटल में अपने परिवार के साथ खाना खाने जाया करती थी और फिर एक वक्त ऐसा आया कि उसी उर्वशी को सडक़ पर ठेला लगाकर अपने परिवार का पेट पालना पड़ा।
ऐसे में शायद किसी ने सच ही कहा है कि व्यक्ति को अपने समय पर कभी न तो अधिक नाज़ करना चाहिए और न ही बुरा वक्त आने पर उससे घबराना चाहिए। कुछ ऐसा ही सोचकर उर्वशी ने छोला-कुल्चा बेचना शुरू कर दिया। हालांकि यह काम इतना आसान नहीं था, लेकिन धीरे धीरे लोग उनके छोले कुल्चे के कायल होने लगे। जो भी उर्वशी के ठेले पर जाता। वह उनके व्यवहार और अंग्रेजी भाषा बोलने से प्रभावित हो जाता। धीरे धीरे उर्वशी का काम चलने लगा और वह हर रोज इतने पैसे कमाने लगी, जिससे घर का खर्च भी निकलने लगा।
फिर ऐसे हुई फेमस…
यह देखकर परिवार के लोग भी उनकी मदद के लिए सामने आ गए। जो लोग पहले उन्हें ताने मारा करते थे, वह अब उनकी हिम्मत और जज्बे की तारीफ करते नहीं थक रहे थे। यह ठेला अब उर्वशी के लिए सफल बिजनेस का रूप ले चुका था। सोशल मीडिया पर उर्वशी की कहानी जैसे ही वायरल हुई तो गुरूग्राम के कोने कोने से लोग उनके छोले कुलचे खाने पहुंचने लगे। देखते ही देखते उर्वशी का बिजनेस अच्छा खासा चलने लगा तथा परिवार और पति भी इस बिजनेस की देखभाल करने लगे।
पति अमित भी ठीक हो गए और वापिस से परिवार पटरी पर आने लगा। इसके बाद उर्वशी ने भी अपने ठेले को रेस्टोरेंट का रूप दे दिया। जहां अब छोले कुल्चे ही नहीं, खाने के और भी आईटम बनने लगें हैं। उर्वशी की यह कहानी साबित करती है कि यदि मन में कुछ करने की ठान ली जाए तो फिर कोई भी मंजिल मुश्किल नही होती। बशर्ते कि लोग क्या कहेंगे और झूठी मान-मर्यादा और सम्मान आड़े न आएं।