रूस-यूक्रेन और इसराइल-हमास युद्ध, पड़ोसी बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन, अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप की वापसी और अशांति में डूबा मध्य पूर्व.
साल 2025 भारत के लिए कई ऐसी चुनौतियां लेकर आने वाला है, जिन्हें हल करना आसान नहीं होगा.
इस साल भारत क्वॉड नेताओं के शिखर सम्मेलन और संभावित भारत-ईयू शिखर सम्मेलन की मेज़बानी करेगा.
वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एससीओ शिखर सम्मेलन में चीन की यात्रा कर सकते हैं. इसके साथ ही माना ये भी जा रहा है कि रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन भारत आ सकते हैं.
अमेरिका के साथ मुश्किल?
20 जनवरी, 2025 को डोनाल्ड ट्रंप अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. अपने शपथ ग्रहण समारोह में ट्रंप ने चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को आमंत्रित किया है, लेकिन अभी तक ऐसा कोई न्योता भारत के लिए नहीं आया है.
24 से 29 दिसंबर तक भारतीय विदेश मंत्री अमेरिका के दौरे पर थे. यहां उनकी मुलाकात अमेरिकी विदेश मंत्री एंथनी ब्लिंकन और राष्ट्रपति बाइडन के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवन से हुई.
बाइडन प्रशासन में दोनों देशों के संबंध गहरे हुए, लेकिन अमेरिकी जमीन पर खालिस्तान समर्थक नेता गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की कथित कोशिश के आरोपों ने तनाव बढ़ा दिया है, जो फ़िलहाल जारी है.
पन्नू न्यूयॉर्क में रह रहे हैं और सिख फ़ॉर जस्टिस के संस्थापक और वकील हैं. भारत सरकार ने उन्हें 2020 में ‘आतंकवादी’ घोषित किया था.
अमेरिका के न्याय मंत्रालय ने 17 अक्टूबर को भारतीय नागरिक विकास यादव के खिलाफ भाड़े पर हत्या और मनी लॉन्ड्रिंग का मामला दर्ज करने की घोषणा की थी.
अमेरिका का दावा है कि विकास यादव भारत की खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के लिए काम करते थे.
अमेरिकी अधिकारियों का दावा है कि पन्नू की हत्या की साज़िश में विकास यादव की अहम भूमिका है. इस मामले में एक और भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता पहले से ही अमेरिकी हिरासत में हैं.
दूसरी तरफ अमेरिका में भारतीय बिजनेसमैन गौतम अदानी पर एक आपराधिक मामला दर्ज किया गया है. उन पर अमेरिका में अपनी एक कंपनी को कॉन्ट्रैक्ट दिलाने के लिए 25 करोड़ डॉलर की रिश्वत देने और इस मामले को छिपाने का आरोप है. हालांकि अदानी ग्रुप ने इन आरोपों को बेबुनियाद बताया है.
भारत की विपक्षी पार्टियां लंबे समय से आरोप लगाती रही हैं कि गौतम अदानी पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी हैं. इस मामले ने भारत में सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ाने का काम किया.
इसके अलावा एच1-बी वीज़ा को लेकर भी भारत के सामने कई चुनौतियां हैं, क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप शुरू से इसका विरोध करते आए हैं, लेकिन हाल ही में उन्होंने इसका समर्थन भी किया है.
यह वीज़ा पाने वाले लोगों में सबसे ज्यादा लोग भारतीय हैं. हाल के आंकड़ों के मुताबिक 72 फीसदी वीज़ा भारतीय नागरिकों को दिए गए हैं.
राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद ट्रंप एच1-बी वीज़ा को लेकर क्या रुख़ रखते हैं, ये आने वाले दिनों में पता लगेगा.
कनाडा से रिश्तों को सुधारना
साल 2023 में कनाडाई नागरिक हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के बाद भारत और कनाडा के रिश्ते अपने सबसे ख़राब दौर से गुज़र रहे हैं.
कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने देश की संसद में बयान दिया था कि कनाडा के पास इस अपराध में भारतीय अधिकारियों के शामिल होने के ‘ठोस सबूत’ हैं. हालांकि भारत ने इस दावे को सिरे से खारिज करते हुए कनाडा से सबूतों की मांग की थी.
इन आरोपों को लेकर भारत और कनाडा के बीच संबंध इतने नाजुक स्तर पर चले गए कि साल 2024 में दोनों देशों ने एक-दूसरे के राजनयिकों को निकाल दिया.
यह कदम तब उठाया गया जब कनाडा ने निज्जर मामले में संजय कुमार वर्मा समेत छह भारतीय राजनयिकों और उच्चायोग अधिकारियों को ‘पर्सन्स ऑफ़ इंटरेस्ट’ बताया था.
‘पर्सन्स ऑफ़ इंटरेस्ट’ उसे कहा जाता है जिसको लेकर जांचकर्ता मानते हैं कि उस शख़्स को किसी अपराध की महत्वपूर्ण जानकारी है.
इतना ही नहीं कनाडा के विदेश उप मंत्री डेविड मॉरिसन ने दावा किया कि कनाडाई नागरिकों को धमकी देने या हत्या करने की मंजूरी भारत के गृह मंत्री अमित शाह ने दी थी. हालांकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने इन आरोपों को ‘निराधार’ बताया है.
चीन के साथ विश्वास की कमी
वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) वह सीमा है जो भारत और चीन को अलग करती है. यह 3 हजार किलोमीटर से ज्यादा की है.
दोनों देशों के बीच अब तक पूरी तरह से सीमांकन नहीं हुआ है क्योंकि कई इलाक़ों के बारे में दोनों के बीच मतभेद हैं. इस सीमा को तीन सेक्टरों में बांटा गया है.
पहला पूर्वी सेक्टर है, जो अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम तक फैला हुआ है. दूसरा मध्य सेक्टर जो उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में हैं, वहीं लद्दाख में फैली सीमा को पश्चिमी सेक्टर कहते हैं.
तीनों ही सेक्टर में भारत का चीन के साथ विवाद चल रहा है, लेकिन अक्टूबर 2024 में पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर एक महत्वपूर्ण समझौता कर भारत और चीन ने आने वाले दिनों में गतिरोध को कम करने के संकेत दिए हैं.
इस समझौते के मुताबिक गतिरोध वाले दो बिंदुओं-देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी हो गई है और जल्द इन टकराव बिंदुओं पर गश्त शुरू हो जाएगी.
हालांकि अभी यह साफ नहीं है कि क्या भारतीय सैनिक 2020 से पहले के गश्त बिंदुओं तक जा पाएंगे या नहीं.
साल 2020 में पूर्वी लद्दाख के गलवान में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प में 20 भारतीय सैनिकों के साथ कई चीनी सैनिक मारे गए थे. तब से दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर था.
अक्टूबर में हुए समझौते के बाद कज़ान में 16वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान पांच सालों के बाद पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग में पहली द्विपक्षीय बातचीत हुई.
विदेशी मामलों के जानकार क़मर आगा का मानना है कि चीन से भारत कई बार धोखा खा चुका है और यही वजह है कि दोनों देशों में विश्वास की बहुत कमी है.
वह कहते हैं, “साल 2025 में चीन के साथ भारत के रिश्तों में सुधार आएगा, क्योंकि चीन, अमेरिका के दबाव में है. चीन जब भी अमेरिका के प्रेशर में होता है तब वह भारत से गंभीर होकर बातचीत करता है. ऐसे में चीन नहीं चाहता कि उसके संबंध भारत से खराब हों.”
कमर आगा कहते हैं कि वर्ल्ड ऑर्डर बदल रहा है और चीन, अमेरिका को चुनौती दे रहा है. अगर उसे सफल होना है तो उसे भारत को साथ लेकर चलना होगा.
रूस के साथ संतुलन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार पद संभालने के बाद पहली द्विपक्षीय यात्रा के लिए रूस को चुना था.
जिस वक्त पीएम मोदी रूस दौरे पर थे, उस वक्त पश्चिमी देशों का सैन्य गठबंधन नेटो बैठक की तैयारी कर रहा था. बैठक में यूक्रेन के लिए सहयोग और उसे नेटो सदस्य बनाने को लेकर बात होनी थी.
पीएम मोदी की यात्रा और रूस और भारत संबंधों को लेकर पश्चिमी देशों में बहस जारी है. यहां तक की अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने इस यात्रा को लेकर चिंता तक जाहिर की थी.
इसके दोनों नेताओं की मुलाकात ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हुई, जिसके बाद डोनाल्ड ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को डॉलर का विकल्प तलाशने के बारे में कड़ी चेतावनी दी.
ट्रंप ने कहा कि डॉलर का विकल्प तलाशने की कोशिश कर रहे ब्रिक्स देशों पर 100 प्रतिशत टैरिफ़ लगाया जाएगा.
फरवरी 2022 में शुरू हुए रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद से रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ज्यादातर पश्चिमी देशों के निशाने पर हैं और रूस कड़े आर्थिक प्रतिबंधों का सामना कर रहा है.
बावजूद इसके भारत, रूस से तेल आयात कर रहा है और साल 2024 में दोनों देशों का व्यापार करीब 66 अरब डॉलर रहा है.
ऐसे में साल 2025 में भारत के सामने सबसे बड़ी चुनौती अमेरिका और रूस को एक साथ लेकर चलने की है.
रूस भारत के लिए एक विश्वसनीय साझेदार रहा है. दूसरी तरफ अमेरिका भारत की तुलना में पाकिस्तान को तवज्जो देता रहा है.
भारत, चीन और पाकिस्तान की दोस्ती से पहले ही जूझ रहा है. ऐसे में भारत रूस से दूर होकर उसे इस जुगलबंदी में आने देने का जोखिम नहीं उठा सकता है.
बांग्लादेश में तख्तापलट
साल 2024 बांग्लादेश के लिए उथल पुथल का साल रहा. कई हफ्तों तक सड़कों पर चले विरोध प्रदर्शन के बाद शेख हसीना को 16 साल से चली आ रही सत्ता से बेदखल होना पड़ा. उन्हें भारत भागने के लिए मजबूर होना पड़ा.
फिलहाल बांग्लादेश में अंतरिम सरकार है और उसकी कमान मोहम्मद यूनुस के हाथों में है. सत्ता बदलने के बाद भारत के साथ बांग्लादेश के रिश्तों का रंग भी बदला है. दोनों मुल्कों के बीच तनाव बढ़ा है, जिसे आने वाले दिनों में कम करना भारत और बांग्लादेश दोनों के लिए एक बड़ी चुनौती है.
स्थिति यह है कि भारत के विदेश मंत्रालय के मुताबिक 8 दिसंबर तक हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ 2200 हिंसात्मक घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें कई हिंदुओं की हत्या भी शामिल है.
दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर साउथ एशियन स्टडीज़ के प्रोफ़ेसर संजय भारद्वाज का मानना है सत्ता परिवर्तन के बाद बांग्लादेश में जमात और एंटी अवामी लीग और उसका समर्थन करने वाली शक्तियां मजबूत हुई हैं, जो भारत का साथ पसंद नहीं करती.
भारद्वाज का कहना है कि ऐसे में बांग्लादेश का पाकिस्तान के करीब जाना सामान्य बात है, लेकिन ये भारत के लिए चिंता की बात है.
वहीं शेख हसीना के समय में यह स्थिति नहीं थी. जानकारों का मानना है कि शेख हसीना के समय में भारत की पूर्वोत्तर की सीमाएं सुरक्षित थी, क्योंकि उग्रवादियों का बांग्लादेश में पनाह लेना आसान नहीं था.
पिछले महीने ही पाकिस्तान का एक मालवाहक पोत कराची से बांग्लादेश के दक्षिण पूर्वी तट पर स्थित चटगांव बंदरगाह पर पहुंचा था.
1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के बाद दोनों देशों के बीच यह पहला समुद्री संपर्क है. इससे पहले दोनों देशों के बीच समुद्री व्यापार सिंगापुर या कोलंबो के ज़रिए होता था.
इसे पाकिस्तान के साथ करीबी बढ़ने की एक ठोस शुरुआत के तौर पर देखा जा रहा है.
ऐसी ही बात कमर आगा भी करते हैं. उनका कहना है, “बांग्लादेश में कट्टरपंथी और धार्मिक ताकतों के हाथ में सत्ता है और सेना का उन्हें साथ मिला हुआ है. ऐसे लोगों के साथ बातचीत के जरिए मसलों का हल नहीं तलाश सकते. इसलिए इस साल बांग्लादेश भारत के लिए बड़ी चुनौती बना रहेगा.”