‘बेटियां बोझ नहीं, वारदान होती हैं’ 3 बहनों ने एकसाथ अफसर बन इसे साबित कर दिया, पढ़ें पूरी कहानी

कुछ लोग आज भी बेटियों को खुद पर बोझ समझते हैं। लेकिन सच तो ये है कि बेटियां बोझ नहीं वरदान होती हैं। यदि आपको हमारी बातों पर यकीन नहीं तो राजस्थान के रावतसर तहसील के भैरूसरी गांव में रहने वाले किसान सहदेव सहारन की पांचों बेटियों को ही देख लीजिए। सहदेव की पांच बेटियां हैं और ये पांचों आज अपने पैर पर खड़ी हैं। इनमें से दो पहले ही बड़ी पोस्ट पर थी, जबकि बाकी की तीन बेटियों ने एक साथ राजस्थान प्रशासनिक सेवा में पास होकर अपने गांव में नया इतिहास रच दिया।

‘बेटियां बोझ नहीं, वारदान होती हैं’ 3 बहनों ने एकसाथ अफसर बन इसे साबित कर दिया, पढ़ें पूरी कहानी

दरअसल राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) ने हाल ही में राजस्थान प्रशासनिक सेवा परीक्षा 2018 परिणाम घोषित किए हैं। ऐसे में आरएएस फाइनल रिजल्ट में सबसे अधिक चर्चा हनुमानगढ़ जिले की रहने वाली तीन बहनों रीतू, सुमन और अंशु की हो रही है। इन तीनों बहनों ने एक साथ राज्य की प्रशासनिक परीक्षा दी और एक साथ इसमें सफल होकर अफसर भी बन गई।

farmer daughters

दिलचस्प बात ये है कि इनकी दो बड़ी बहने पहले से ही अलग-अलग विभाग में सरकारी नौकरी बतौर अधिकारी कर रही हैं। इनकी बड़ी बहन मंजू का चयन 2012 में सहकारिता विभाग में हुआ था। वहीं रोमा 2011 में आरएएस में चुनी जा चुकी है। रीतू, सुमन और अंशु  की पढ़ाई लिखाई भी एकसाथ हुई है। तीनों पांचवीं तक सरकारी स्कूल में पड़ी फिर छठी क्लास से प्राइवेट स्कूल में पढ़ने लगी। इन तीनों ने पीएचडी भी एक साथ की। इसके बाद जब राजस्थान प्रशासनिक सेवा की तैयारी करने की बात आई तब भी तीनों बहनों ने एकदूसरे का साथ नहीं छोड़ा। ये साथ में मेहनत करती रहीं।

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तीनों बहनों की इच्छा थी कि वे भी अपनी दो बड़ी बहनों की तरह किसी गवर्नमेंट डिपार्टमेंट अफसर बने। आज उनका यह सपना पूरा भी हो गया है। अंशु ने ओबीसी गर्ल्स में 31, रीतू ने 96 और सुमन ने 98वीं रैंक प्राप्त की है। तीनों बहनों की सफलता ने उनके पिता का पूरे हनुमानगढ़ जिले में नाम रौशन कर दिया है। उन्हें बधाई देने के लिए घर पर भीड़ लगी हुई है। लोगों ने उनसे कहा कि आपने यह साबित कर दिया कि बेटियां बोझ नहीं वरदान होती है।

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किसान सहदेव सहारन की बड़ी बेटी बताती है कि जब मेरे पिता बेटियों की पढ़ाई पर खूब पैसा खर्च करते थे तो आस पड़ोस वाले और रिश्तेदार उन्हें ताना मारते थे। कहते थे कि बेटियों पर इतना पैसा क्यों लगा रहे हो? इन्हें आखिरी में रोटियां ही तो बनानी है। लेकिन मेरे पापा ने समाज की परवाह नहीं की और हमे पढ़ाने लिखाने के लिए वह सबकुछ किया जो उनके बस में था। यदि वह अपनी बेटियों के लिए त्याग-समर्पण नहीं करते तो हम आज इस मुकाम तक नहीं पहुंच पाते।

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उधर बेटियों की सफलता पर माता पिता की खुशी का ठिकाना नहीं है। वे गांव में सिर गर्व से ऊंचा कर चल रहे हैं। उनकी तीनों बेटियों ने दुनिया को दिखा दिया कि यदि बेटियों की परवरिश ठीक से की जाए तो वह भी इतिहास रच सकती है। वह बेटों से भी ज्यादा आगे जा सकती है।

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