Himachali Khabar – (ब्यूरो)। पारिवारिक रिश्तों की मधुरता उस समय खटास में बदल जाती है, जब किसी सदस्य की ओर से दूसरे सदस्य के प्रति गलत व्यवाहर या कलह उत्पन्न होने लगे। आमतौर पर सास-ससुर और बहू के रिश्तों में भी खटास आने का यही कारण प्रमुख होता है।
कई मामलों में देखा गया है कि झगड़ालू बहू की चिकचिकबाजी के कारण सास-ससुर (Daughter-in-law’s right in father-in-law’s property) काफी परेशान हो जाते हैं। लेकिन अब बहू ऐसा नहीं कर सकेगी, एक मामले में हाईकोर्ट ने सख्त फैसला सुना दिया है।
ये भी जानें : Supreme Court ने कहा- बिना किसी से पूछे सारी प्राेपर्टी बेच सकता है परिवार का ये सदस्य
सास-ससुर को दिया यह अधिकार-
दिल्ली हाईकोर्ट (delhi high court news) का यह फैसला न केवल रिश्तों में एक नया मोड़ ला सकता है, बल्कि परिवारों के बीच के संवेदनशील मामलों को भी एक नई दिशा दे सकता है। सास-ससुर व बहू के बीच हुए विवाद के एक ऐसे ही मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने कहा है कि बहू को सास-ससुर को परेशान करने का कोई अधिकार नहीं है। अगर सास-ससुर चाहें तो ऐसी बहू को अपनी संपत्ति से बेदखल (Rules for eviction of property) भी कर सकते हैं।
यह है कानून में प्रावधान –
कानून में यह प्रावधान है कि एक झगड़ालू बहू की रोज की चिकचिक से अगर सास-ससुर परेशान हैं तो वे बहू को घर से बाहर का रास्ता दिखा सकते हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम (Domestic Violence Act) के तहत भी ऐसी बहू को साझा घर में रहने का हक (saas sasur ki property par bahu ka hak)नहीं है।
हाई कोर्ट ने यह फैसला निचली अदालत के आदेश के खिलाफ की गई अपील पर दिया है। निचली अदालत ने बहू को ससुराल के साझे घर में रहने का अधिकार नहीं दिया था। निचली कोर्ट ने यह भी कहा था कि सास-ससुर बहू को अपनी संपत्ति से बेदखल (property se bedakhal ke rule) कर सकते हैं। बहू ने हाईकोर्ट में अपील की थी। हालांकि कोर्ट ने अपीलकर्ता बहू को उसकी शादी जारी रहने तक वैकल्पिक आवास प्रदान किए जाने के लिए सास-ससुर को निर्देश दिए।
ये भी जानें : भूमि अधिग्रहण के मामले में Supreme Court का ऐतिहासिक फैसला, आम लोगों को बड़ी राहत
सास-ससुर को शांति से जीने का है हक-
अदालत ने यह माना कि दोनों पक्ष के वृद्ध सदस्य शांतिपूर्वक जीने के हकदार हैं और उन्हें अपने बेटे और बहू के वैवाहिक विवादों से प्रभावित नहीं होना चाहिए। न्यायाधीश ने कहा कि जब परिवार में रिश्ते सही नहीं हैं, तो इस अवस्था में वृद्ध माता-पिता के लिए यह उचित नहीं होगा कि वे अपीलकर्ता के साथ रहें। इसके बजाय, उन्हें एक अलग आवास दिया जाना चाहिए। यह प्रावधान महिलाओं को घरेलू हिंसा से बचाने के काम भी आता है।
पति ने भी पत्नी के खिलाफ की थी शिकायत-
ये भी पढ़ें – 8th Pay Commission : नहीं आएगा अगला वेतन आयोग, केंद्रीय कर्मचारियों की सैलरी बढ़ौतरी के लिए ये फॉर्मूला होगा लागू
इस मामले में यह भी सामने आया कि पति और पत्नी के रिश्ते में तनाव था और दोनों अलग-अलग रहते थे। पत्नी ने उस संपत्ति पर कोई दावा नहीं किया था, जबकि पति ने अपनी पत्नी के खिलाफ शिकायत की थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि परिवार के अन्य सदस्य, जैसे सास और ससुर, जब अपने वृद्ध अवस्था में होते हैं, तो उन्हें शांति से जीने का हक है।
विशेष रूप से जब घर में वैवाहिक विवाद चल रहे हों, तो यह जरूरी नहीं है कि वे उसी घर में रहें। कोर्ट ने डीवी अधिनियम की धारा 19 के बारे में बताते हुए कहा की निवास का अधिकार, साझा घर में रहने का स्वचालित अधिकार नहीं है। इस मामले में, दोनों वरिष्ठ नागरिक थे और उन्हें अपने जीवन के अंतिम समय में शांति से रहने का अधिकार था, ताकि वे परिवार के झगड़ों का हिस्सा न बनें।