देश के 98 फीसदी से अधिक भूमि का डिजिटलीकरण

Land Reform: देश में भूमि विवाद के सबसे अधिक मामले हैं. भूमि संबंधी विवाद को कम करने के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के भूमि संसाधन विभाग डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड मॉडर्नाइजेशन कार्यक्रम चला रहा है. इसके अलावा प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत जल संरक्षण के विकास पर काम कर रहा है. सितंबर 2024 में मंत्रालय की ओर से लैंड रिकॉर्ड मॉडर्नाइजेशन कार्यक्रम के तहत शहरी क्षेत्रों में नक्शा कार्यक्रम की शुरुआत की गयी. शहरी क्षेत्रों में डिजिटल लैंड रिकॉर्ड तैयार करने के लिए पायलट प्रोजेक्ट के तहत 150 शहरों में यह योजना चलायी जा रही है. यह कार्यक्रम राज्यों के राजस्व एवं शहरी विकास मंत्रालय के सहयोग से चलाया जा रहा है और इसे एक साल में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है. इस कार्यक्रम के लिए 193.81 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है.

जमीन संबंधी विवाद को कम करना है मकसद

कार्यक्रम का मकसद जमीन पर मालिकाना हक के दावे को सुनिश्चित करना है, ताकि भूमि संबंधी विवादों को कम किया जा सके. इस योजना के लिए वर्ष 2016-17 से पूरा फंड केंद्र सरकार मुहैया करा रही है. इस योजना को वर्ष 2026 तक बढ़ा दिया गया है. इस योजना का मकसद लैंड रिकॉर्ड और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को ऑनलाइन मुहैया कराना है ताकि जमीन से जुड़े फर्जीवाड़े, बेनामी लेनदेन और जमीन संबंधी विवाद को कम किया जा सकता है. मंत्रालय के मुताबिक वर्ष 2008-09 से 2024-25 के दौरान केंद्र सरकार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को 2428 करोड़ रुपये का आवंटन कर चुकी है. केंद्र पूरा पैसा देता है और इस वर्ष राष्ट्रीय स्तर पर लैंड रिकॉर्ड का डिजिटलाइजेशन 98.5 फीसदी हो चुका है. उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों और लद्दाख को छोड़कर अन्य राज्यों में यह काम तेजी से हुआ है. 

 भू-आधार जारी करने की पहल शुरू

उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों में स्वायत्त जिला काउंसिल में जमीन का मालिकाना हक समुदाय के नाम पर है और इस क्षेत्र में लैंड रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. राष्ट्रीय स्तर पर जमीन के मैप का 95 फीसदी डिजिटलीकरण हो चुका है. देश के 72 फीसदी गांवों में कैडेस्ट्रेल मैप को रिकॉर्ड से जोड़ा जा चुका है. देश के 96 फीसदी उप पंजीकरण कार्यालय का कंप्यूटरीकरण हो चुका है और ऐसे 89 फीसदी कार्यालय में राजस्व और पंजीकरण रिकॉर्ड को जोड़ दिया गया है. इसके अलावा विभाग जमीन के लिए भू-आधार भी जारी करने की पहल शुरू की है और अब तक 23 करोड़ जमीनों के टुकड़े का भू-आधार जारी किया जा चुका है. 

जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की भी हो रही है कोशिश


भूस्खलन, पानी की कमी और मौसम के बदलते मिजाज से उपजी चुनौतियों से निपटने के लिए जल स्रोत विकास योजना शुरू की है. इसका मकसद कृषि उत्पाद को बढ़ाना, गरीबी दूर करना और ग्रामीण लोगों की आजीविका को बेहतर बनाना है. साथ ही सूखे के खतरे को कम करना और पर्यावरणीय संतुलन स्थापित करना है. यह कार्यक्रम 2021-22 से 2025-26 तक चलेगा. इस मद में सरकार ने 8134 करोड़ का आवंटन किया है. सरकार की कोशिश देश के 49.5 लाख हेक्टेयर भूमि को खेती के लिए पानी मुहैया कराना है. अब तक इस योजना के तहत 1150 प्रोजेक्ट को मंजूरी दी जा चुकी है और केंद्रीय हिस्सेदारी का 56 फीसदी 4574.54 करोड़ रुपये राज्यों को जारी किया जा चुका है.

इस योजना के तहत देश में 1.15 लाख वाटर हार्वेस्टिंग ढांचा बनाने और पुराने ढांचे को दुरुस्त करना है. इसके अतिरिक्त 1.69 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई व्यवस्था से जोड़ने में मदद मिलेगी और 9.86 लाख किसानों को फायदा होगा. देश के 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में  4075 जल स्रोत की पहचान कर उनके विकास का काम किया जा रहा है. 

नीति आयोग की वर्ष 2018 में आयी रिपोर्ट के अनुसार देश में लगभग 50 लाख जल स्रोत है, जिसमें से 30 लाख हिमालयी क्षेत्र में हैं. चिंता की बात है कि इसमें से आधे से अधिकजल स्रोत सूख चुके हैं. अधिक वर्षा के बावजूद पहाड़ी क्षेत्र गर्मी के दौरान पानी की कमी का सामना कर रहे हैं. वर्ष 2019 में नीति आयोग ने भूमि संसाधन विभाग को राष्ट्रीय स्तर पर दूर करने के लिए एक कार्यक्रम चलाने की सिफारिश की थी. 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *