भारतीय विदेश मंत्रालय ने बताया है कि वह नौकरी के नाम पर म्यांमार ले जाए गए 400 से अधिक लोगों को इन स्कैम सेंटर से बचा कर ला चुका है।
थाईलैंड में नौकरी, लाखों में सैलरी और आईटी से जुड़ा हल्का-फुल्का काम।
यही वो सपना है, जिसके नाम पर फँस कर हजारों भारतीय म्यांमार, लाओस समेत कई दक्षिण एशियाई देशों में चलने वाले स्कैम कॉल सेंटर तक पहुँच रहे हैं। संसद में दिए गए एक उत्तर में विदेश मंत्रालय ने बताया है कि वह अब तक 2000 से अधिक भारतीयों को इन स्कैम कॉल सेंटर से बचा कर वापस ला चुका है। यह स्कैम सेंटर कैसे काम करते हैं, किसको फँसाते हैं, किस तरह की प्रताड़ना देते हैं और इनसे क्या करवाते हैं, यह जानने से पहले इन स्कैम कॉल सेंटर से जो बच कर लौटे, उनकी कहानी जान सुन लीजिए, जिससे आपको अंदाजा हो कि यह समस्या कितनी बड़ी है।
24 दिन रखा, लगातार करवाया घोटाला: शिवेंद्र
म्यांमार के इन स्कैम कॉल सेंटर के चंगुल में फँसने और बचने का सबसे ताजा मामला कानपुर के शिवेंद्र सिंह का है। शिवेंद्र 19 नवम्बर, 2024 को ही म्यांमार से थाईलैंड के रास्ते भारत लौटे हैं। उन्होंने दैनिक भास्कर से अपनी कहानी बयाँ की है। शिवेंद्र ने बताया कि उसके साथ ही कानपुर के दफ्तर में काम करने वाले एक संदीप नाम के व्यक्ति ने ऑफर दिया कि थाईलैंड के कॉल सेंटर में ₹1 लाख/ महीने की नौकरी है। उसने इसके बाद उनसे ₹2 लाख लिए। उनका वर्क वीजा की जगह टूरिस्ट वीजा बनवाया गया।कानपुर के शिवेंद्र (फोटो साभार:दैनिक भास्कर)
शिवेंद्र को 31 अक्टूबर, 2024 को दिल्ली बुलाया गया। उन्हें समझाया गया कि थाईलैंड में एक स्टॉक एक्सचेंज कम्पनी के कॉल सेंटर में काम करना होगा। इसके बाद 3 नवम्बर, 2024 को उन्हें एक फ्लाइट में बिठा कर थाईलैंड भेज दिया गया। इसके बाद उन्हें दो चीनी लोग अपने साथ लेकर म्यांमार चले गए। शिवेंद्र ने बताया कि उन्हें म्यांमार में एक ऐसे ही कॉल सेंटर में ले जाया गया। यहाँ 8 घंटे लोगों को ठगने का साइबर क्राइम करवाया जाता। आधे घंटे कुछ खाने को दिए जाते। रात में रिपोर्ट ली जाती कि किसने कितनी ठगी की है।
शिवेंद्र ने वापस जाने की बात कही तो उनसे ₹10 लाख की माँग की गई। शिवेंद्र ने बताया कि जो भी लोग यहाँ ठगों का विरोध करते, उनके हाथ-पैर तोड़ कर जेल में डाल देते। कुछ लोगों को मगरमच्छ के सामने भी डाला जाता। शिवेंद्र ने किसी तरह अपने घर कानपुर में यह जानकारी पहुँचाई। सांसद देवेन्द्र सिंह भोले और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जल्द कार्रवाई को कहा। इसके बाद विदेश मंत्रालय के दखल से शिवेंद्र 25 नवम्बर को छोड़ा गया। शिवेंद्र ने बताया कि हर वक़्त, हर बात की जाँच यह चीनी ठग करते थे। उनका कहना है कि यह 24 दिन उन्हें 24 साल लगे।
सुअर का मांस खिलाते थे, उल्टा लटकाते थे: सौरभ
लखनऊ के रहने वाले सौरभ सिंह की भी कहानी कुछ ऐसी ही है। अप्रैल, 2024 में वापस आए सागर ने जागरण को बताया है कि उन्हें भी नौकरी के बहाने थाईलैंड बुलाया गया और फिर म्यांमार ले जाया गया। सागर ने बताया कि कैद के दौरान उनसे 22 घंटे तक चीन और बाकी देशों में ठगी करवाई जाती थी। जो भी सोने की कोशिश करता था, उसे बिजली के झटके दिए जाते थे। यहाँ तक कि नहाने भी नहीं जाने देते थे। खाने में उन्हें मात्र चावल और सुअर का मांस दिया जाता था।सौरभ (फोटो साभार: Jagran)
सागर ने बताया कि जो भी ठगी करने से मना करता था, उसे उलटा लटका कर मारते थे, खाने को नहीं देते थे। यातनाएँ दी जाती थीं। इन चीनी ठगों ने सागर के परिवार से ₹8.14 लाख की वसूली करके उन्हें छोड़ा। उनके परिवार ने किसी तरह इस पैसे का इंतजाम किया। पूरा पैसा मिलने के बाद उन्हें थाईलैंड के रास्ते छोड़ा गया। सौरभ किसी तरह वापस भारत पहुँचे। सागर के लौटने के समय उनके दोस्त अजय और राहुल वहीं फंसे हुए थे। राहुल नवम्बर, 2024 में ही लौटे हैं। आगे राहुल की कहानी पढ़िए।
अजय को टॉर्चर करते हैं, झटके देते हैं: राहुल
भारत लौटे राहुल ने बताया कि उनका दोस्त अजय अब भी म्यांमार में फंसा है। द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि अजय को मलेशिया में एक नौकरी के लिए ऑफर दिया गया था लेकिन असल में म्यांमार ले जाया गया। अजय को म्यांमार की थाईलैंड सीमा के नजदीक एक जगह पर रखा गया।अजय की हालत (फोटो साभार: TNIE)
अजय को एक जगह अँधेरे कमरे में बंद करके रखा गया है। उसको घंटों तक डंडों और पाइपों से पीटा जाता है। उसके शरीर पर चोट के अनगिनत निशान हैं। अजय को खाना भी नहीं दिया जाता। अजय का परिवार गरीब है, जो फिरौती के पैसे नहीं दे पा रहा। ऐसे में वह फंसे हैं।
12 दिन भूखा रखा, टॉयलेट का पानी पिलाया: विधान
देहरादून के विधान भी इसी से गुजरे हैं। विधान अगस्त, 2024 में वापस भारत लौट पाए हैं। टाइम्स ऑफ़ इंडिया को दिए गए एक इंटरव्यू में विधान ने बताया कि वह मई, 2024 में थाईलैंड गए थे। यहाँ उन्हें देश के आईटी सेक्टर में एक अच्छी नौकरी का झांसा दिया गया था। हालाँकि, थाईलैंड से उन्हें म्यांमार के म्यावदी ले जाया गया और ठगी के काम में झोंक दिया गया। उन्होंने जब यह करने से मना किया तो उनको 12 दिनों तक भूखा रखा गया। बिजली के झटके दिए गए। उनको टॉयलेट से पानी पिलाया गया। कई-कई घंटों तक लाठियों से उन्हें मारा।विधान (फोटो साभार: TOI)
उनके परिवार को वीडियो कॉल करके दिखाया जाता कि किस तरह उन्हें यातनाएँ दी जा रही हैं। इसके बाद उनके परिवार से 2000 डॉलर माँगे गए। जब यह पैसे मिल गए तो उन्हें खाना दिया गया। एक दिन म्यांमार की सेना के लोगों ने आकर उन्हें छोड़ने को कहा। इसका कारण भारतीय विदेश मंत्रालय का दबाव बताया गया। विधान, अजय, राहुल, सौरभ और शिवेंद्र के अलावा अभी भी संभवतः हजारों भारतीय म्यांमार में इसी तरह फंसे हैं। सिर्फ भारतीय ही नहीं, म्यांमार के इन कैम्प में पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश और यहाँ तक कि लन्दन से भी लोग आकर फंस गए हैं।
अब जानिए कौन लोग भारतीय युवाओं को इस नरक में धकेल रहे हैं, कैसे लोग इस झाँसे में फंसते हैं, इनसे काम क्या करवाया जाता है, म्यांमार ही क्यों ले जाया जाता है और बाकी जरूरी बातें।
कैसे और क्यों लोग फंसते हैं?
जो भी युवा इस दलदल से वापस लौटे हैं, उनकी लगभग एक ही कहानी है, थाईलैंड-मलेशिया-फिलिपीन्स में नौकरी। भारत में बेरोजगारी से परेशान युवा ज्यादा पैसे के लालच में आते हैं। उनको बताया जाता है कि काफी कम पैसे में वह भी विदेश जाकर पैसा कमा सकते हैं। कम पढ़े-लिखे युवा झाँसे में आ जाएँ, इसके लिए कॉल सेंटर की नौकरी बताई जाती है। जो युवा तकनीकी बैकग्राउंड से हैं, उन्हें आईटी में नौकरी का सपना दिखाया जाता है। उन्हें ₹1 लाख से अधिक की सैलरी बताई जाती है। कई बार यह झांसा देने वाले उनके करीबी भी होते हैं।
उन्हें नौकरी का ऑफर देते समय थाईलैंड, मलेशिया या फिलिपीन्स का नाम लिया जाता है, ताकि उन्हें शक ना हो। वीजा के नाम पर भी उनसे ठगी की जाती है। वर्क वीजा की जगह पर उन्हें टूरिस्ट वीजा थमाया जाता है। इसके बाद जब वह चंगुल में आ जाते हैं तो उन्हें भारत से बैंकॉक ले जाया जाता है। एजेंसियाँ भी भारत से बैंकॉक जाने वालों पर शक नहीं करतीं। क्योंकि भारत से हर साल लाखों टूरिस्ट थाईलैंड जाते हैं। ऐसे में यह पता करना कि कौन सा आदमी किस उद्देश्य से जा रहा है, संभव नहीं हो पाता।
म्यांमार कैसे ले जाते हैं?
थाईलैंड में पहुँचने के बाद इन भारतीयों को एयरपोर्ट पर ही रिसीव कर लिया जाता है। इसके बाद इन्हें चीनी गैंगस्टर अपने साथ गाड़ी में बिठा कर कंपनी दिखाने के वादे के साथ ले जाते हैं। एक बार इनके कब्जे में आने के बाद यहाँ आए लोग असहाय हो जाते हैं। थाईलैंड में इन्हें अलग-अलग गाड़ियों से म्यांमार की सीमा तक पहुँचाया जाता है। अगर कोई विरोध करता है या फिर जाने से मना करता है, तो उसको बन्दूक के बल पर डराया जाता है। ज्यादातर लोग यहीं सरेंडर कर देते हैं।
म्यांमार-थाईलैंड के बीच 2400 किलोमीटर से अधिक लम्बी सीमा है। इसमें नदी-नाले, पहाड़ और खेत समेत आबादी वाले इलाके हैं। यह सीमा कई जगहों पर खुली हुई है। यानि एक-दूसरे देश से लोग आवाजाही कर सकते हैं। कई जगह दोनों देशों को नदियाँ बाँटती हैं। इन्हीं नदियों में नाव के जरिए ही थाईलैंड से लाए जाने के बाद भारतीय और बाकी लोगों को म्यांमार में दाखिल करवाया जाता है। यहाँ तक आते-आते लोग समझ जाते हैं कि उनके साथ अब क्या होने वाला है। इसके बाद उन्हें इस स्कैम में झोंक दिया जाता है।
म्यांमार ही क्यों ले जाते हैं?
इसके पीछे भी एक कारण है। म्यांमार 2021 से ही गृह युद्ध में फंसा हुआ है। म्यांमार, ब्रिटेन से आजादी पाने के बाद अधिकांश समय तक सैन्य शासन में रहा है। इसे ‘Junta’ या ‘हुन्ता’ कहते हैं। 2021 में सेना ने आंग सान सू की सरकार को सत्ता से फेंक कर फिर से कब्जा कर लिया था। इसके बाद देश में गृह युद्ध छिड़ गया।
विद्रोही समूहों ने बड़े गठबंधन बना लिए। उन्होंने म्यांमार के दूरदराज इलाकों में हमले करने चालू के दिए। वर्तमान में शान-चिन जैसे देश राज्य तक इन विद्रोहियों के कब्जे में हैं। पूरे देश में अराजकता का माहौल है। इसीलिए यह स्कैम चलाने के लिए सबसे मुफीद जगह म्यांमार ही है।
म्यांमार में थाईलैंड या चीन से सीमा वाले इलाकों में यह स्कैम चलाए जाते हैं। कई जगह इसके लिए पूरे शहर बसाए गए हैं। इनको रोकने वाला कोई नहीं है। यदि सेना या फिर विद्रोही गुट इन पर कार्रवाई करना चाहते हैं तो वह इनको खिला देते हैं। विद्रोही समूहों को भी हथियार के लिए पैसे जरूरत है, इसलिए वह भी इस पर आँख मूँद लेते हैं।
कई मामलों में सेना भी कुछ नहीं बोलती। स्थानीय लोग भी इन सबमें जुड़े हुए हैं। इन इस घोटाले का सबसे बड़ा केंद्र म्यावादी शहर है। यह थाईलैंड सीमा पर स्थित है। इस शहर पर कब्जे के लिए सेना और विद्रोहियों में भारी लड़ाई हो चुकी है। अभी भी कई जगहों पर सेना का नियंत्रण नहीं है। ऐसे में आसानी से यहाँ घोटाला चलाया जा सकता है।
यह शहर थाईलैंड की सीमा पर है, ऐसे में यहाँ लोगों को फंसा कर लाना और बाकी सुविधाएँ प्राप्त करना भी आसान है। जब म्यावदी में कार्रवाई होती भी है, तो यह दूसरी जगह चले जाते हैं। इनके पास इतना पैसा है कि यह स्थानीय लोगों को पैसा देकर सारी सुविधाएँ हासिल कर लेते हैं।
कौन हैं यह स्कैम सेंटर चलाने वाले?
इस काम में ठगी का काम भारतीय, पाकिस्तानियों, अफ्रीकी और बाकी जगहों से तस्करी करके लाए लोगों को दिया जाता है। यह काम उनसे करवाने वाले चीनी हैं। यह चीन के आपराधिक गैंग हैं। कोविड से पहले यह गैंग मकाऊ में जुए का काम करते थे। इसमें भी यह अरबों कमाते थे। कोविड के बाद अब उन्होंने यह धंधा अपना लिया है। चीन से आकर यह म्यांमार में अपना पूरा गैंग बनाते हैं। एयरपोर्ट से लेकर इन शहरों में अपने लोग बिठाते हैं। इसके बाद तस्करी और ठगी का धंधा चालू कर देते हैं। चीन की सरकार भी इनके इतने बड़े ऑपरेशन के आगे फेल है।
कैसा होता है यह स्कैम सेंटर?
एक स्कैम सेंटर में जानवरों की तरह लोग रखे जाते हैं। एक-एक कमरे में 10-12 लोग रखे जाते हैं। उनके खाने-पीने या नहाने-धोने का भी सही इंतजाम नहीं होता। इन्हीं स्कैम सेंटर में हजारों कम्प्यूटर या फोन होते हैं, जिनके जरिए ठगी की जाती है। इसी सेंटर के भीतर ही जेल और टॉर्चर सेंटर बनाए जाते हैं। इनकी सुरक्षा के लिए हथियारबंद गार्ड लगाए जाते हैं। चारों तरफ कंटीली तार भी लगाई होती है ताकि कोई भाग ना सके। इसके अलावा, ठग यहाँ बाकी इंतजाम भी रखते हैं।केके पार्क, म्यांमार का सबसे बड़ा स्कैम सेंटर (फोटो साभार: DW)
क्या स्कैम करवाते हैं?
इन जगहों पर अभी साइबर स्कैम ही सबसे अधिक चल रहे हैं। यह लोग जो ठगी या स्कैम सबसे अधिक करवाते हैं, उसका नाम ‘पिग बुचरिंग’ है। इसका अर्थ है किसी सुअर को काटना। यानी यह किसी को निशाने पर लेते हैं और उसे आर्थिक तौर पर मारते हैं। इन सेंटर में काम करने वाले लोगों ने बताया है कि उन्हें सुंदर लड़कियों के तौर पर आईडी बनानी होती है।
इसके बाद उन्हें अमेरिका-चीन और यूरोप समेत बाकी विकसित देशों के पुरुषों को निशाना बनाना होता है। ठगी करने वालों को सबसे पहले इन देशों के अकेलापन महसूस करने वाले या सेक्स की तलाश में इन्टरनेट पर मौजूद पुरुषों को खोजना होता है। इसके बाद उन्हें ठगी करने वाले फर्जी प्रोफाइल के आधार पर कोई सुंदर लड़की बना कर सम्पर्क करते हैं।
जब कई दिन तक बात करने के बाद सामने वाले पुरुष को विश्वास हो जाता है कि वह असल में किसी लड़की से बात कर रहा है तो उसे एक निवेश का झाँसा दिया जाता है। उसे ठग अपने विश्वास में लेकर किसी फर्जी एप में एक निवेश करने को कहते है, इसमें उन्हें बड़े फायदे का सपना दिखाया जाता है।
यदि कोई पैसा निवेश करता है, तो उसे इसी फर्जी एप में 100% तक का फायदा भी दिखाया जाता है। इसके बाद उसे कभी-कभार निवेश की आधी रकम भी वापस भेज दी जाती है और बताया जाता है कि यह उसका मुनाफ़ा है। इसके बाद झाँसे में आए लोग पक्के तौर पर मान लेते हैं कि वह सही जगह बात कर रहे हैं।
इसके बाद जितना सम्भव हो, उतना पैसा ठग कर उसे छोड़ दिया जाता है। इसके अलावा और भी कई तरीके हैं, जिनसे ठगी की जाती है। इनमें अचानक फोन करके किसी की अश्लील वीडियो बनाकर धमकाना, पार्ट टाइम नौकरी देकर ठगना और बाकी तरीके भी शामिल हैं।
कितना लूट चुके?
इसका कोई ठीक-ठीक अनुमान नहीं लेकिन एक स्टडी बताती है कि इस ‘पिग बुचरिंग’ जरिए ही 75 बिलियन डॉलर (लगभग ₹6.5 लाख करोड़) की वसूली यह गैंग कर चुके हैं। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से यह ठगी चलती रहती है। एक और रिपोर्ट बताती है कि 2023 में ही ठगी का यह आँकड़ा 64 बिलियन डॉलर (लगभग ₹5 लाख करोड़) पार कर चुका था।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट कहती है कि म्यांमार, लाओस और कम्बोडिया में चलने वाले इन स्कैम सेंटर में 1 लाख से अधिक लोग फंसे हैं जो यही काम कर रहे हैं। इसी से यह अंदाजा लग सकता है कि यह घोटाला कितना बड़ा है और इसमें कितना पैसा यह घोटालेबाज कमाते हैं।
जो बात नहीं मानते, उनका क्या?
इन स्कैम सेंटर में धोखे से पहुँचने वालों में से कई ठगी करने से इनकार भी करते हैं। उनके साथ यहाँ जानवरों से भी बदतर सलूक होता है। किसी को बिजली के झटके दिए जाते हैं तो किसी को बाँध कर घंटों तक मारा जाता है। विरोध करने वालों ने बताया कि यहाँ खाना-पीना नहीं दिया जाता और कई दिनों तक भूखा रखा जाता है। साथ ही हाथ-पैर तक तोड़ दिए जाते हैं। मगरमच्छों के सामने तक फेंकने की बात सामने आई है। कितने लोगों को यहाँ मार दिया गया, इसकी जानकारी नहीं है।
छोड़ने का क्या माँगते हैं?
यहाँ तस्करी कर लाए गए लोगों को छोड़ने की एवज में फिरौती माँगी जाती है। उन्हें बताया जाता है कि वह बेचे गए हैं, ऐसे में उन्हें यह कीमत चुकानी होगी। कई बार यह धनराशि ₹1 लाख से लेकर ₹10 लाख तक होती है। जो पैसा नहीं चुकाते, उनसे काम करवाया जाता है। छोड़ने की एवज में लोगों से और लोगों को तस्करी कर बुलाने और फिर इसी काम में झोंकने की बात भी कही जाती है। डरे-सहमे होने के कारण परिवार भी फिरौती का पैसा इकट्ठा करके दे देते हैं।
भारत सरकार क्या कर रही?
भारत में बीते लगभग 2 वर्षों में यह समस्या तेजी से उभरी है। जल्दी अमीर बनने और विदेश में अच्छी नौकरी के नाम पर युवा झाँसे में आते हैं। इसी के चलते वह घोटाले में फंसते हैं। जिनके परिवार के युवा इन कैम्प में फंसे हैं, वह स्थानीय सांसद-विधायक से मदद माँगते हैं। कई बार वह विदेश मंत्रालय तक पहुँचते हैं। विदेश मंत्रालय अपने स्तर से इन पर काम कर रहा है। विदेश मंत्रालय ने 28 अगस्त, 2024 को राज्यसभा में इस विषय में जानकारी भी दी है।
विदेश मंत्रालय ने बताया कि उसने कम्बोडिया से 1091, लाओस से 770 और म्यांमार से 497 लोगों को वापस लाने में सफलता पाई है। हालाँकि, इन देशों में चलने वाले इन स्कैम कॉल सेंटर में कितने भारतीय अभी फंसे हैं। इस विषय में कोई जानकारी नहीं है। विदेश मंत्रालय ने लोगों को सचेत भी किया है कि विदेश में नौकरी के नाम पर झाँसे में ना पड़ें।