हिमाचल प्रदेश में दहे उत्पीड़ना और घरेलु हिंसा के कई मामले सामने आते हैं- जिनमें अधिकतर फर्जी पाए जाते हैं। मगर अब अगर पत्नी घरेलू हिंसा के आरोपों को साबित करने में असफल रहती है, तो वह भरण-पोषण और अन्य आर्थिक राहत की हकदार नहीं मानी जा सकती।
पत्नी साबित नहीं कर पाई घरेलू हिंसा
ये फैसला अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट रामपुर बुशहर की अदालत ने घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले पर सुनाया है। दरअसल, रामपुर क्षेत्र की रहने वाली एक महिला ने अपने पति के खिलाफ घरेलू हिंसा से महिलाओं के संरक्षण अधिनियम 2005 की धारा 12 के तहत अदालत में याचिका दायर की थी।
महिला ने गढ़ी झूठी कहानी…
याचिका में महिला ने दावा किया था कि उसका पति उसे मानसिक, शारीरिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित करता है और खाने-पीने और दवाइयों तक की जरूरतें पूरी नहीं करता। इतना ही नहीं कई बार मारपीट कर जान से मारने की धमकी भी दे चुका है।
पति ने सभी आरोपों को बताया झूठा
महिला ने अदालत से सुरक्षा आदेश, मासिक भरण-पोषण भत्ता, रहने के लिए अलग आवास उपलब्ध करवाने और मुआवजा देने की मांग की थी। वहीं, महिला के पति जो एक पूर्व सैनिक है ने पत्नी की याचिका को पूरी तरह झूठा और तथ्यों के विपरीत बताया।
बेटे के साथ पत्नी ने छोड़ा घर
उसने कहा कि शादी के शुरुआती दो वर्षों तक सब सामान्य था, लेकिन उसके बाद पत्नी का व्यवहार अचानक बदल गया। पति ने दावा किया कि एक दिन पत्नी बिना किसी जानकारी या विवाद के घर छोड़कर चली गई और नाबालिग बेटे को भी साथ ले गई।
जिम्मेदारियों से नहीं हटा पति
पति ने यह भी बताया कि अपनी जिम्मेदारियों से वह कभी पीछे नहीं हटा। पत्नी के नाम पर 4.50 लाख रुपये की फिक्स्ड डिपॉजिट करवाई, सर्विस के दौरान जीपीएफ ग्रेच्युटी, लीव एनकैशमेंट और ग्रुप इंश्योरेंस तक का लाभ पत्नी के लिए सुनिश्चित किया। इसके अलावा, वह नियमित रूप से अपने संयुक्त खाते में पैसे भेजता रहा, जिसमें उसकी पेंशन भी आती है।
पत्नी ने भी बताया सच
सुनवाई के दौरान पत्नी स्वयं ने स्वीकार किया कि पति सर्विस में रहते समय उसके खाते में पैसे भेजता था। दोनों का एक जॉइंट खाता है, जिसमें पति की पेंशन आती है। वह पंचकूला में नौकरी करती है और हर महीने 10–15 हजार रुपये की आय है।
पति से अलग रह रही महिला
उसने बताया कि वह वर्ष 2020 से पति से अलग रह रही है और उसने फैमिली कोर्ट में पहले ही तलाक की याचिका दायर कर रखी है। इन तथ्यों ने अदालत के समक्ष यह स्पष्ट किया कि महिला आर्थिक रूप से संपूर्ण रूप से निर्भर नहीं है और न ही पति के साथ रहने की इच्छुक है।
साबित करने के लिए सबूत जरूरी
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि याचिकाकर्ता महिला ने अपने आरोपों के समर्थन में कोई ठोस सबूत प्रस्तुत नहीं किया। न मारपीट का प्रमाण, न चिकित्सा संबंधी रिकॉर्ड, न प्रताड़ना के अन्य दस्तावेज या गवाह।
इससे यह स्थापित नहीं होता कि पति ने उसके साथ किसी प्रकार की घरेलू हिंसा की। ये खबर आप हिमाचली खबर में पढ़ रहे हैं। उधर, पति की ओर से यह भी उल्लेख किया गया कि उसके ऊपर बेटे और अन्य परिजनों की जिम्मेदारियां हैं।
उच्च न्यायालय के फैसले का हवाला
अदालत ने प्रदेश उच्च न्यायालय के 2021 के फैसले का हवाला देते हुए बताया कि अगर पत्नी शारीरिक, मानसिक या आर्थिक किसी भी प्रकार की घरेलू हिंसा को सिद्ध नहीं कर पाती, तो उसे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत भरण-पोषण का अधिकार नहीं मिलता। अधिनियम का उद्देश्य केवल घरेलू हिंसा के कारण उत्पन्न परिस्थितियों में राहत देना है।
महिला की याचिका हुई खारिज
तथ्यों और दोनों पक्षों की दलीलों का विश्लेषण करने के बाद अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता घरेलू हिंसा साबित करने में विफल रही। पति की आय या संसाधनों को लेकर लगाए गए आरोप भी प्रमाणित नहीं हुए।
याचिकाकर्ता स्वयं नौकरी कर रही है और अलग रहने की उसकी अपनी इच्छा तलाक की याचिका दाखिल करने से साबित होती है। ऐसे में अदालत ने कहा कि याचिका स्वीकार करने योग्य नहीं है और इसे खारिज किया जाता है।