नई दिल्ली। दिल्ली में लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पाला बदलने वाले (फ्लोटिंग या स्विंग वोटर्स) 15-17 फीसद मतदाताओं को साधना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती होगी। पिछले चुनावों को देखे तो लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को वोट देने वाले 15 से 20 फीसद मतदाता विधानसभा चुनाव में उसका साथ छोड़कर आप के पक्ष में मतदान करते हैं।
लोकसभा चुनाव में रास आए ये मुद्दे
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि 10 महीने के भीतर इतने बड़े पैमाने पर मतदाताओं का पाला बदलने के पीछे असली वजह केजरीवाल सरकार की मुफ्त रेवड़ियां हैं। भाजपा इन मतदाताओं को रोकने के लिए विशेष रणनीति बना रही है। आंकड़ों को देंखे तो लोकसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का चेहरा, राष्ट्रवाद, विकास और हिंदुत्व का मुद्दा दिल्ली के मतदाताओं को रास आता है। लो
विधानसभा में ठीक नहीं बैठता भाजपा का गणित
लोकसभा चुनाव में भाजपा को 2019 में 56.9 फीसद और 2024 में 54.7 फीसद वोट मिले। 2014 के लोकसभा चुनाव में भी भाजपा 46.6 फीसद वोट हासिल करने में सफल रही थी। तीनों ही चुनावों में भाजपा लोकसभा की सभी सातों सीटों पर कब्जा कर लिया था। मगर इसके 10 महीने बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में इसके ठीक उल्टा देखने को मिलता है।
स्विंग वोटर्स पर भाजपा की निगाहें
विधानसभा चुनाव में आप को 2015 में 54.5 फीसद और 2020 में 53.4 फीसद वोट मिले थे और इसके सहारे वह 70 में से 67 और 62 सीटें जीतने में सफल रही थी। वहीं विधानसभा चुनावों में भाजपा को 2013 में 33.3 फीसद, 2015 में 32.3 फीसद और 2020 में 38.8 फीसद वोट मिले थे।
भाजपा पाला बदलने वाले इन मतदाताओं को रोकने की कवायद में जुट गई है। इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी ने पिछले दिनों साफ कर दिया था कि दिल्ली सरकार द्वारा दी जा रही मुफ्त की रेबड़ियों को बंद नहीं किया जाएगा और वे पहले की तरह से जारी रहेगी। इसके अलावा भाजपा अपने घोषणापत्र में उनके लिए कई नई योजनाओं का भी एलान कर सकती है।
जानिए आप के पीछे का कांग्रेस फैक्टर
भाजपा के वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि पाला बदलने वाले मतदाताओं में से अगर आधे को भी रोकने में सफल रही तो पार्टी दिल्ली की बाजी बदल सकती है। लोकसभा चुनाव की तुलना में विधानसभा चुनाव में आप के वोटों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी के पीछे कांग्रेस के वोटों का कम होना अहम वजह माना जाता है।
2013 के विधानसभा चुनाव में 24.7 फीसद वोट लाने वाली कांग्रेस 2015 में 9.7 फीसद और 2020 में 4.3 फीसद पर सिमट कर रह गई। कांग्रेस की ओर मजबूत प्रत्याशियों के उतारे जाने और अरविंद केजरीवाल पर हमलों के बाद आप की नाराजगी को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। कांग्रेस के वोट में किसी भी तरह का इजाफा आप की कीमत पर ही होगी।