अजमेऱ शरीफ के शिव मंदिर होने के मामले की सुनवाई कोर्ट करेगा। इसके लिए केंद्र, ASI और दरगाह कमिटी को नोटिस भेजा गया है।
राजस्थान के अजमेर सिविल कोर्ट ने मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में संकटमोचन महादेव मंदिर होने का दावा करने वाली याचिका स्वीकार कर ली है।
अब इस पर अगली सुनवाई 20 दिसंबर को होगी। कोर्ट ने अल्पसंख्यक मंत्रालय, दरगाह कमेटी और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (ASI) को नोटिस जारी करके उससे पहले जवाब माँगा है। याचिका में दरगाह की जगह हिंदू मंदिर होने के तीन आधार बताए गए हैं।
इस याचिका को हिंदू सेना के प्रमुख विष्णु गुप्ता ने दायर किया है। गुप्ता का दावा है कि मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह में लगे दरवाजों की बनवाट और नक्काशी इसके हिंदू मंदिर होने की पुष्टि करते हैं। दरगाह में मौजूद बुलंद दरवाजे की बनावट हिन्दू मंदिरों के दरवाजे की तरह है। इन नक्काशी को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहाँ हिन्दू मंदिर रहा होगा।हरबिलास की किताब, जिसे आधार बनाया गया (साभार: भास्कर)
गुप्ता ने जो दूसरा आधार दिया है, वह दरगाह की ऊपरी संरचना। दरगाह के ऊपरी संरचना में भी हिन्दू मंदिरों के अवशेष जैसी चीजें दिखाई देती हैं। गुप्ता ने अपनी याचिका में कहा है कि इसके गुंबदों को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह पूर्व में कोई मंदिर रहा होगा और उसे तोड़कर ही उसके अवशेष पर दरगाह का निर्माण करवाया गया है।
अपने दावे का तीसरा आधार उन्होंने पानी और झरने को दिया है। गुप्ता का कहना है कि जहाँ शिव मंदिर होता है, वहाँ पानी और झरने जरूर होते हैं। इस दरगाह में भी ऐसा ही है। इसलिए यहाँ हिंदू मंदिर होने के दावे को नकारा नहीं जा सकता है। इसके अलावा, उन्होंने अपनी याचिका में हरबिलास शारदा की किताब ‘अजमेर: हिस्टोरिकल एंड डिस्क्रिप्टिव’ का भी संदर्भ दिया है।किताब में दावा (साभार: भास्कर)
गुप्ता का दावा है कि इस किताब में कहा गया है कि जिस जगह पर मोइनुद्दीन की दरगाह है, वहाँ कभी हिंदू मंदिर हुआ करता था। किताब में यह भी दावा किया गया है कि यहाँ एक हिंदू दंपति रहते थे और दरगाह स्थल पर बने महादेव मंदिर में पूजा-अर्चना करते थे। वे सुबह चंदन से महादेव का तिलक और जलाभिषेक करते थे। शारदा ने यह किताब 1911 में लिखी थी।
हरबिलास शारदा ब्रिटिश भारत में जज थे। सन 1892 में उन्होंने अजमेर के न्यायिक विभाग में सब जज के रूप में काम करना शुरू किया था। सन 1894 में वे अजमेर नगरपालिका के नगर आयुक्त बनाए गए। इसके बाद 1902 में उन्होंने अजमेर-मेरवाड़ा में उन्होंने सत्र न्यायाधीश के रूप में काम किया। सन 1925 में शारदा जोधपुर हाई कोर्ट के सीनियर जज बने थे।
विष्णु गुप्ता के वकील रामस्वरूप बिश्नोई ने बताया कि सिविल जज मनमोहन चंदेल की बेंच ने मामले की सुनवाई की स्वीकृति दी है। यह मामला भगवान श्री संकटमोचन महादेव विराजमान बनाम दरगाह कमिटी के बीच है। बिश्नोई ने कहा कि इसमें पहले 750 पेजों का वाद पेश किया गया था। इसे संशोधित करके 38 पेजों का किया गया है।