आम आदमी पार्टी के नेता अवध ओझा
दिल्ली की पटपड़गंज विधानसभा से आम आदमी पार्टी (आप) उम्मीदवार अवध ओझा को राहत मिल गई है. दरअसल, उनका वोट ग्रेटर नोएडा से दिल्ली ट्रांसफर नहीं हो सका था. इस पर आप राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया गया था अवध ओझा ने अपना वोट दिल्ली में ट्रांसफर करने के लिए अंतिम तारीख 7 जनवरी को फॉर्म 8 भर दिया था. लेकिन 24 घंटे के अंदर दिल्ली चीफ इलेक्शन ऑफिसर (CEO) ने अपना ऑर्डर बदलते हुए कहा कि फॉर्म भरने की अंतिम तारीख 6 जनवरी है. अवध ओझा को रोकने के लिए यह किया गया है.
हालांकि भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने सोमवार शाम को आप नेता अवध ओझा का नाम ग्रेटर नोएडा की मतदाता सूची से दिल्ली स्थानांतरित करने की मंजूरी दे दी. आप प्रमुख अरविंद केजरीवाल ने कहा कि मतदाता सूची से ओझा का नाम स्थानांतरित होने से अब वह पटपड़गंज से अपना नामांकन दाखिल कर सकेंगे. यह घटनाक्रम तब हुआ जब केजरीवाल के नेतृत्व में आप नेताओं का प्रतिनिधिमंडल ईसीआई अधिकारियों से मिला.
ऐसे में सवाल है कि क्या विधानसभा चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी को उस राज्य का निवासी होना अनिवार्य होता है? क्या है वोट ट्रांसफर, जिस पर फंसा था पेंच? जानिए इन सवालों के जवाब.
क्या चुनावी विधानसभा सीट का निवासी होना अनिवार्य?
सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता ध्रुव गुप्ता कहते हैं, इस सवाल का जवाब रेप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल एक्ट के सेक्शन 5 में सब-सेक्शन सी मिलता है. नियम कहता है कि विधानसभा चुनाव में किसी भी सीट पर चुनाव लड़ने के लिए वही कैंडिडेट योग्य है जो उस राज्य का निवासी है. इसे उदाहण से समझ लेते हैं. अगर कोई कैंडिडेट उत्तर प्रदेश का निवासी है और वो दिल्ली में विधानसभा चुनाव लड़ना चाहता है तो सीधेतौर पर वह चुनाव लड़ने योग्य नहीं है. उनका नामांकन रद्द हो सकता है. चुनाव लड़ने के लिए पहले उसे दिल्ली का निवासी होना पड़ेगा. यानी उसेअपना वोट ट्रांसफर कराना होगा.
क्या है वोट ट्रांसफर, जिस पर फंसा पेंच?
चुनाव आयोग का नियम कहता है, किसी कैंडिडेट को दिल्ली से चुनाव लड़ना है तो उसका वोट दिल्ली में होना चाहिए. यानी उसे उस राज्य का निवासी होना चाहिए. अगर कोई दूसरे प्रदेश का निवासी है तो उसे चुनाव लड़ने के लिए अपना वोट निवासी राज्य से उस राज्य में ट्रांसफर कराना होगा जहां से वो चुनाव लड़ना चाहता है. इसे ही वोट ट्रांसफर कहते हैं.
वोट ट्रांसफर कराने में कई बदलाव भी होते हैं. अब इसे भी समझ लेते हैं. अगर कोई कैंडिडेट अपना वोट ट्रांसफर करा लेता है तो वो अपने पुराने राज्य में वोटिंग नहीं कर पाएगा. ऐसे में जहां के लिए वोट ट्रांसफर कराया गया है कैंडिडेट को वहां का नया वोटर आइडी कार्ड मिलता है.
वोट ट्रांसफर में कितना समय लगता है?
किसी भी कैंडिडेट को वोट ट्रांसफर करने के लिए चुनाव आयोग की तरफ से जारी फॉर्म भरना होता है. कैंडिडेट ऐसा करने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके अपना सकते हैं. वोट ट्रांसफर की प्रक्रिया शुरू होने के बाद करीब 10 दिन का समय लगता है. इसको लेकर चुनाव आयोग की तरफ से मैसेज के जरिए जानकारी दी जाती है. ध्यान रखने वाली बात है कि अगर नामांकन से पहले किसी कैंडिडेट का वोट ट्रांसफर नहीं हो पाया है तो उसका नामांकन रोका जा सकता है. ऐसी स्थिति में वो चुनाव नहीं लड़ सकता.
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