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चुनाव से पहले हेमंत सरकार भ्रष्टाचार की परंपरा, और तुष्टिकरण की रिवायत से कैसे निपटेगी?

चुनाव से पहले हेमंत सरकार भ्रष्टाचार की परंपरा, और तुष्टिकरण की रिवायत से कैसे निपटेगी?

झारखंड आगामी चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) में अहम मुकाबला होने वाला है। हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली सरकार पर भ्रष्टाचार के बढ़ते आरोप और तुष्टिकरण की राजनीति के आरोप लग रहे हैं, ऐसे में ये मुद्दे राजनीतिक परिदृश्य और चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकते हैं।

चुनाव से पहले हेमंत सरकार भ्रष्टाचार की परंपरा, और तुष्टिकरण की रिवायत से कैसे निपटेगी?

भ्रष्टाचार और विभाजनकारी नीतियों की दोहरी चुनौतियों ने न केवल हेमंत सोरेन की सरकार की ईमानदारी पर सवाल उठाए हैं, बल्कि इसके पारंपरिक वोट बैंक को भी खत्म करने की कोशिश की है। इसका सबसे ज्यादा असर आदिवासी समुदायों पर देखा जा हा है, जो JMM का मुख्य निर्वाचन क्षेत्र रहा है।

हेमंत सोरेन सरकार की सबसे बड़ी चुनौती, भ्रष्टाचार के आरोप
हेमंत सोरेन सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती भ्रष्टाचार के आरोपों की बढ़ती सूची है। खासकर भूमि घोटालों से संबंधित आरोप। सीएम हेमंत सोरेन हाल ही में मनी लॉन्ड्रिंग मामलों में जेल गए थे। अवैध भूमि सौदों में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा चल रही जांच ने धोखाधड़ी का भी खुलासा किया है। इन खुलासों ने जेएमएम की छवि को नुकसान पहुंचाया है और कई सवाल खड़े किए हैं।

झारखंड जैसे राज्य में, जहां भूमि स्वामित्व और संसाधन प्रबंधन संवेदनशील मुद्दे हैं, खासकर आदिवासी समुदायों के लिए, इन क्षेत्रों में भ्रष्टाचार लोगों के विश्वास को चोट पहुंचाता है। आदिवासी अधिकारों और समान विकास की वकालत करने वाली जेएमएम पार्टी के लिए ये घोटाले उसके मूलभूत सिद्धांतों के साथ विश्वासघात का प्रतिनिधित्व करते हैं।

जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं भाजपा जैसी विपक्षी पार्टियां हेमंत सरकार पर लगे रहे भ्रष्टाचार के आरोपों को जनता के सामने लेकर आ रही है। भाजपा JMM को एक ऐसी सरकार के रूप में पेश कर रही है, जिसने अपना नैतिक दिशा-निर्देश खो दिया है।

तुष्टिकरण की राजनीति ने आदिवासी वोटों को किया अलग-थलग
जेएमएम को तुष्टिकरण की राजनीति भी हानि पहुंचा सकती है। आप ये कह सकते हैं कि तुष्टिकरण की राजनीति इनके पार्टी के लिए एक रिवायत की तरह है। हेमंत सरकार द्वारा कुछ अल्पसंख्यक समुदायों को खुश करने के कथित प्रयासों से आदिवासी समाज में आक्रोश को जन्म को दिया है। सरकारी भूमि पर चर्च, कब्रिस्तान और अन्य धार्मिक संरचनाओं के अवैध निर्माण की रिपोर्ट ने आदिवासी क्षेत्रों में तनाव को बढ़ा दिया है। हजारीबाग और सिमडेगा जैसे जिलों में अवैध निर्माण की खबरें आम हो गई है।

सबसे विवादास्पद घटनाओं में से एक में कब्रिस्तान बनाने के लिए पवित्र स्थल जाहेरथान की भूमि को जब्त करने का प्रयास शामिल है। इसने आदिवासी समूहों में आक्रोश को भड़काया है, जो इन कदमों को अपनी सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान पर हमला मानते हैं। इस तरह की कार्रवाइयों से आदिवासी मतदाता में फूट पड़ गई है। आदिवासी वोटरों का अलग-थलग होना जेएमएम के लिए चुनाव में जोखिम भरा हो सकता है कि क्योंकि यही वोटर इनकी राजनीतिक शक्ति का आधार रहे हैं।

अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की इस रणनीति का उद्देश्य धार्मिक और अल्पसंख्यक समुदायों से वोट हासिल करना हो सकता है, लेकिन इसने इन समूहों और राज्य की आदिवासी आबादी के बीच एक खतरनाक विभाजन पैदा कर दिया है। ऐसे में जेएमएम अब एक अनिश्चित स्थिति में पहुंच गया है।

भाजपा भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण को लेकर जेएमएम पर हावी
भाजपा इस चुनाव में खुद को सोरेन सरकार के विकल्प के रूप में पेश कर रही है। भाजपा जेएमएम पर भ्रष्टाचार और तुष्टिकरण को लेकर हावी है। भाजपा भ्रष्टाचार पर ध्यान केंद्रित करके राज्य में स्वच्छ शासन के लिए मतदाताओं को लुभाने में लगी है। भाजपा ये वादा कर रही है कि वो एक ईमानदार सरकार चलाने के लिए सत्ता में आना चाहते हैं।

सोरेन सरकार की तुष्टिकरण नीतियों की भाजपा की आलोचना उसे आदिवासी मतदाताओं को एकजुट करने का अवसर देती है, जो झामुमो के कामों को देख ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। भाजपा का “मिला क्या?” अभियान से भी उनको फायदा मिल रहा है। भाजपा का “मिला क्या?” अभियान सोरेन सरकार की उपलब्धियों और अधूरे वादों पर सवाल उठाता है।

भ्रष्टाचार और आदिवासी चिंताओं के हाशिए पर जाने जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करके, भाजपा खुद को एक ऐसी पार्टी के रूप में चित्रित कर सकती है जो वोट बैंक की राजनीति से अधिक शासन और झारखंड की स्वदेशी विरासत की सुरक्षा को प्राथमिकता देती है।

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