Modi 3.0 शपथ ग्रहण का पड़ोसी देशों को न्योता, लेकिन चीन-पाक को नहीं, भारत ने बिना कुछ कहे दे दिया कड़ा संदेश.

मालदीव के राष्ट्रपति पर सबकी नजर

जितने पड़ोसी देशों को शपथ ग्रहण का न्योता मिला है, उसमें सबसे खास मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू होंगे। मुइज्जू पहली बार पीएम मोदी से मिलने वाले हैं। मालदीव ने शपथ ग्रहण का न्योता स्वीकार करके साफ कर दिया है कि वो भारत से बातचीत करना चाहता है। जबकि हाल ही में मालदीव से भारतीय सैनिकों को वापस बुलाने के बाद दोनों देशों के संबंधों में खटास आ गई थी। पिछले साल भी मालदीव के कुछ मंत्रियों ने पीएम मोदी को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, जिसके बाद दोनों देशों के बीच विवाद खड़ा हो गया था। हालांकि मालदीव ने उन मंत्रियों को पद से हटा दिया था।

ये मुलाकात इसलिए भी खास होगी, क्यों कि मालदीव के राष्ट्रपति मुइज्जू ‘भारत को बाहर करो’ के नारे के साथ सत्ता में आए थे। इसके अलावा उन्होंने बीजिंग के साथ एक सैन्य समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जो मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ावा देने के लिए मुफ्त चीनी सैन्य सहायता के प्रावधान की अनुमति देता है। इसी साल फरवरी में एक चीनी रिसर्च जहाज जियान यांग हांग 03, माले में पहुंचा। हालांकि चीन इस बात पर जोर देता है कि उसके जहाज शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए तैनात हैं, लेकिन भारत के नौसेना प्रमुख एडमिरल हरि कुमार, जो हाल ही में सेवानिवृत्त हुए हैं, ने एनडीटीवी से कहा था कि नौसेना को चिंता है कि ये जहाज पानी के नीचे के क्षेत्रों का पता लगा रहे हैं और इसका इस्तेमाल पनडुब्बियों को तैनात करने के लिए किया जा सकता है।

चीन की विस्तारवादी नीति को भारत दे रहा झटका
चीन की विस्तारवादी नीति किसी से छिपी नहीं है। वो अफ्रीकन देश जिबूती में एक मिलिट्री फैसलिटी चला रहा है। ये चीन का पहला अंतरराष्ट्रीय बेस है। सैटेलाइट इमेजरी से पता चलता है कि बेस अब पूरी तरह से चालू है। चीन ने अपने प्रमुख युद्धपोतों को नए बनाए गए घाटों पर डॉक किया गया है जो भविष्य में विमान वाहक को बर्थ करने के काफी हैं।

भारत ने चीन के इस बेस का मुकाबला करने के लिए मॉरीशस के अगालेगा द्वीप पर एक मिलिट्री फैसिलिटी बनाई है। द्वीप पर निर्माण और भारतीय सैन्य कर्मियों की मौजूदगी की रिपोर्ट से संकेत मिलता है कि यह एक स्थायी बेस बन सकता है, हालांकि मॉरीशस या भारत ने भविष्य की योजनाओं के बारे में खुलकर बात नहीं की है। यहां की तस्वीरों से पता चलता है कि द्वीप पर हवाई पट्टी के साथ नए जेटी भी मौजूद हैं। माना जा रहा है कि ये भारतीय नौसेना के पी-8 समुद्री टोही विमान का बेस होगा, जो इस क्षेत्र में चीनी नौसेना की गतिविधियों पर नजर रखेगा।

श्रीलंका में भी चीन की पकड़ होगी कमजोर
भारत चीन के हर कदम का जवाब देने की तैयारी कर रहा है। श्रीलंका में भी चीन की एक्टिवटी को कंट्रोल करने के लिए भारत ने तैयारी कर ली है। अगस्त 2022 में भारत ने श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट पर चीन के अत्याधुनिक मिसाइल और सैटेलाइट ट्रैकिंग पोत यांग वांग 05 की चीनी तैनाती पर आपत्ति जताई। कोलंबो ने चीन को बंदरगाह के विकास के लिए मंजूरी दी थी, लेकिन अब वो कर्ज के बोझ के तले यहां ये अपना कंट्रोल खो चुका है और अब इस पोर्ट पर एक चीनी कंपनी ने अपना कंट्रोल ले लिया है।

भारत की कंपनियां अब श्रीलंका के बुनियादी ढांचे को डेवलेप करने में बड़ी भूमिका निभा रही हैं। इन योजनाओं के लिए अमेरिका भी मदद कर रहा है, जो भारत का प्रमुख रणनीतिक साझेदार है। इसे इस तरह समझ सकते हैं कि पिछले साल कोलंबो पोर्ट के एक प्रोजेक्ट के लिए अमेरिकी कंपनी ने 4,600 करोड़ रुपये देने का वादा किया था। इस टर्मिनल में भारत के अडाणी ग्रुप की 51% हिस्सेदारी है। इसी पोर्ट पर चीनी कंपनी का एक टर्मिनल है, जहां से चीन श्रीलंका पर नजर रखता है।

भूटान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा भारत
चीन आर्थिक साझेदारी का चोला पहनकर हिंद महासागर के कई तटीय देशों के साथ संबंध बनाने की कोशिश कर रहा है। भूटान इसका ही एक उदाहरण है। चीन ने भूटान के इलाकों पर हमले करके वहां के पहाड़ों को काट डाला। चीन ने वहां की जमीन पर अपने कस्बे बसा लिए। भूटान के बास सैन्य बल न होने के कारण, वह चीन द्वारा उसके भू-भाग को काटे जाने की मूकदर्शक बना हुआ है, जो सीमा वार्ता जारी रहने के बावजूद जारी है।

भूटान भारत के लिए भी बेहद जरूरी पड़ोसी देश है। चीन ने डोकलाम के बड़े हिस्से पर अवैध रूप से कब्जा कर लिया है। ये वही जगह है जहां 2017 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच हिंसक झड़प हुई थी। भारत इस बात को लेकर चिंता में है कि चीनी सेनाएं सिलीगुड़ी कॉरिडोर की ओर बढ़ेंगी। ये भारत को नॉर्थ ईस्ट से जोड़ेने वाला संकरा भाग है। यानी अगर ये रास्ता बंद हुआ तो भारत अपने ही नॉर्थ ईस्ट के राज्यों से अलग हो जाएगा।

इसलिए भारत भूटान को मजबूत करने के लिए कई समझौते कर रहा है। भारत ने अंतरिक्ष से लेकर ऊर्जा और शिक्षा तक के क्षेत्रों में कई समझौते किए हैं। खुद पीएम मोदी फरवरी में थिम्पू गए थे। उन्हें भूटान के सर्वोच्च नागरिक सम्मान द ऑर्डर ऑफ़ द ड्रुक ग्यालपो से भी सम्मानित किया गया। भूटान ने भी कई प्रोजेक्ट के लिए भारत से मदद मांगी है।

इशारों-इशारों में दे दिया कड़ा संदेश
भले ही पीएम मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में आए पड़ोसी देशों के प्रमुखों का मुद्दा औपचारिक बातचीत और धन्यवाद ज्ञापन तक ही सीमित रह जाएगा, लेकिन इसका कड़ा संदेश हमारे विरोधी पड़ोसियों तक जरूर पहुंच जाएगा। भारत द्वारा जानबूझकर चीन और पाकिस्तान को शपथ ग्रहण में न बुलाना हमारी स्पष्ट विदेश नीति और कूटनीति की ओर इशारा करती है। इस कदम के जरिए भारत ने साफ कर दिया है कि वो चीन की विस्तारवादी नीति को रोकने में सक्षम तो है ही साथ ही दक्षिण एशियाई देशों का नेतृत्व करने वाला है।

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