एक शिक्षिका ऐसी भी: बच्चों के लिए 23 साल से कर रही 50 KM का सफ़र, 3 KM चढ़ती है खड़ी पहाड़ी

एक शिक्षिका ऐसी भी: बच्चों के लिए 23 साल से कर रही 50 KM का सफ़र, 3 KM चढ़ती है खड़ी पहाड़ी

माता-पिता के बाद बच्चों के भविष्य के असल निर्माता होते हैं शिक्षक. एक शिक्षक का किसी भी व्यक्ति के जीवन में बड़ा हाथ होता है. हमारे देश में श्री राम, श्री कृष्ण हर किसी को गुरु या शिक्षक की आवश्यक पड़ी. भगवान, देवता होने के बाद भी उनके भविष्य के निर्माता बने शिक्षक, गुरु. भारतीय परंपरा में शिक्षक का एक अहम स्थान है. हमारे देश में गुरु पूर्णिमा भी मनाई जाती है वहीं शिक्षक दिवस भी मनाया जाता है.

teachers day

हर साल शिक्षक दिवस 5 सितंबर को मनाया जाता है. भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति और शिक्षक रहे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन के उपलक्ष्य में शिक्षक दिवस मनाया जाता है. भारत में अब तक कई उदाहरण शिक्षकों के देखने को मिले हैं. बच्चों के प्रति शिक्षक के अद्वितीय और अद्भुत समर्पण की खूब चर्चा होती है. ऐसी ही एक शिक्षिका है कमलती. जो कि मध्यप्रदेश के बैतूल जिले से है.

कमलती में शिक्षा को लेकर का एक अद्भुत जज्बा देखने को मिलता है. वे बच्चों को पढ़ने की खातिर हर दिन करीब 50 किलोमीटर का सफ़र तय करती है. 25 किलोमीटर जाना और फिर 25 किलोमीट आना. यह सिलसिला बीते 23 सालों से चल रहा है और कमलती कहती है कि आगे भी सालों तक चलता रहेगा.

kamlati

कमलती डोंगरे की उम्र 45 साल है और वे बैतूल से 25 किमी दूर पहाड़ी गांव गौला गोंदी में शिक्षिका के रूप में कार्यरत है. वे बतौर शिक्षाकर्मी इस स्कूल में 31 अगस्त 1998 को ज्वाइन हुई थी. 14 साल बाद उन्हें अध्यापक बना दिया गया. वहीं फिर साल 2018 में वे एक शिक्षिका बन गई. वे अपनी नौकरी के रिटायरमेंट तक इसी स्कूल में बच्चों को पढ़ाना चाहती है.

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बता दें कि, पहाड़ी रास्ते, जंगली जानवरों, कभी तेज धूप, कभी मूसलाधार बारिश इन सबके बीच होते हुए बीते 23 साल से वे बच्चों की खातिर स्कूल जाती है. घर से निकलने और स्कूल तक पहुंचने में उन्हें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. घर से निकलने के बाद वे 10 किलोमीटर की यात्रा बस से करती है. वहीं बाद में 12 किलोमीटर की यात्रा लिफ्ट लेकर करती है. इसके बाद शुरू होती है कठिन डगर.

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कमलती आगे के तीन किलोमीटर बड़ी मुश्किलों के बीच जाती है. दरअसल, इसके बाद तीन किलोमीटर तक उन्हें पैदल ही खड़ी पहाड़ी पर चढ़ना होता है. 23 साल से वे ऐसे ही पथरीले रास्ते का सफर तय कर स्कूल पहुंच रही है. फिर इसके बाद उन्हें आने में भी काफी कठिनाई होती है. इस तरह वे रोज 50 किलोमीटर की यात्रा करती है.

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कमलती की शादी 28 अप्रैल 1999 को हुई थी. हालांकि शादी के बाद उन्होंने अपने गांव में ही रहकर बच्चों को पढ़ाने का मन बनाया. बैतूल की ताप्ती नदी के किनारे एक खेत में वे अकेले कच्चे मकान में चार साल तक रही. फिर उन्होंने बेटे को जन्म दिया. इसके बाद उन्होंने बैतूल का रुख किया. जिन बच्चों को कमलती ने पढ़ाया है उनमें से कोई सेना में है तो कोई दूसरी शासकीय सेवाओं में कार्यरत है.

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