Property Rights in 2025 : पति और ससुराल की प्रोपर्टी में बहू का कितना अधिकार, जानिये कानूनी प्रावधान

Property Rights in 2025 : पति और ससुराल की प्रोपर्टी में बहू का कितना अधिकार, जानिये कानूनी प्रावधान

Himachali Khabar – (ब्यूरो)। आमतौर पर कई महिलाओं को यह लगता है कि शादी के बाद उन्हें ससुराल की संपत्ति (Daughter-in-law’s right in father-in-law’s property) में हिस्सा मिल जाएगा, लेकिन यह पूरी तरह से कानून पर निर्भर करता है।

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महिला को संपत्ति पर अधिकार पाने के लिए कानूनी रास्ते से गुजरना पड़ता है और यह सिर्फ पति की संपत्ति (Wife’s right in husband’s property) तक सीमित नहीं होता, ससुर की प्रोपर्टी में हक को लेकर भी है। इस तरह के मामलों में अक्सर अदालत में लंबी प्रक्रिया होती है। संपत्ति के बंटवारे में कई बार जटिलताएं होती हैं, जिन्हें हल करने के लिए अदालत का सहारा लिया जाता है।

 

ससुराल की संपत्ति पर महिला का अधिकार –

 

 

भारत में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-8 (Section-8 of Hindu Succession Act) के अनुसार, एक महिला को अपनी ससुराल की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होता है, जब तक कि वह विधवा न हो जाए। बेशक, शादी के बाद एक महिला ससुराल में पूरे परिवार की देखरेख भी करती है, लेकिन कानूनी दृष्टि से देखा जाए तो एक महिला का अपने पति या ससुराल की संपत्ति (Property Law) पर अधिकार नहीं होता। यदि उसके पति का निधन हो जाता है तो वह ससुराल व पति की संपत्ति पर कुछ अधिकार पा सकती है।

 

संपत्ति का अधिकार इस तरह होता है तय –

 

भारत में संपत्ति के अधिकारों को निर्धारित करने में तीन प्रमुख कानूनों का महत्व है। पहला है भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम (Indian Succession Act), दूसरा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) और तीसरा मुस्लिम पर्सनल लॉ। इन कानूनों के तहत यह तय किया जाता है कि संपत्ति पर किसका अधिकार है। जब हम इन नियमों को देखते हैं, तो यह साफ होता है कि सिर्फ शादी करने से एक महिला को अपने पति या ससुराल की संपत्ति पर कोई अधिकार (property rights) नहीं मिलता है। इसके बजाय, यह उसके अधिकारों का निर्धारण परिस्थितियों और कानूनी प्रावधानों पर निर्भर करता है।

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संपत्ति में महिला के हक को लेकर यह है प्रावधान –

 

 

जब तक किसी महिला का पति जीवित होता है, तब तक पति की स्वअर्जित संपत्ति में पत्नी का कोई कानूनी हक (wife’s Rights on husband’s property) नहीं होता। हालांकि, अगर पति की मृत्यु के बाद उनकी कोई वसीयत बनाई गई हो, तो संपत्ति का अधिकार उसी वसीयत के अनुसार तय होगा। यानी, पति की मृत्यु के बाद ही पत्नी को संपत्ति में अधिकार मिल सकता है, लेकिन यह उस पर निर्भर करेगा कि पति ने अपनी संपत्ति के बारे में क्या वसीयत लिखी है। वसीयत न लिखने की स्थिति में पत्नी का अधिकार अलग तरह से तय होता है, इसमें फिर संतान को भी शामिल किया जाता है।  

 

पत्नी मांग सकती है भरण-पोषण की राशि-

 

कानूनी दृष्टि से, एक महिला को अपने पति से केवल भरण-पोषण राशि लेने का अधिकार होता है, खासकर उस समय, जब वे अलग हो जाएं। हालांकि, इस दौरान उसे पति की संपत्ति में किसी प्रकार का अधिकार नहीं मिल (married women rights in property) सकता। इसका मतलब है कि भले ही पति और पत्नी अलग हों, महिला को पति से केवल भरण-पोषण राशि लेने का अधिकार होता है, लेकिन पति की संपत्ति पर उसका कोई हक नहीं होता।  

कब मिलता है ससुराल की संपत्ति में अधिकार –

अपने ससुराल या पति के परिवार की संपत्ति पर एक महिला का कोई अधिकार (woman’s right to family property)नहीं होता है, ऐसा हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा-8 में भी प्रावधान है। हालांकि, यदि पति का निधन हो जाता है, तो विधवा पत्नी को अपने ससुराल की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है। यह हिस्सा उसके पति की संपत्ति के हिसाब से निर्धारित होता है। 1978 में सर्वोच्च न्यायालय (supreme court) ने गुरुपद खंडप्पा बनाम हीराबाई मामले पर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया था, जिसमें साझा संपत्ति के बारे में महत्वपूर्ण दिशा-निर्देश दिए गए थे। यह फैसला महिला के अधिकारों को लेकर कई पहलुओं के हिसाब से अहम था।

सुप्रीम कोर्ट के वकील की टिप्पणी

  

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के एक वकील ने टिप्पणी करते हुए कहा है कि शादी के बाद अक्सर महिलाएं यह समझती हैं कि उन्हें अपने पति और ससुराल की पूरी संपत्ति (pati ki property par patni ka kitna hak) पर अधिकार मिल जाता है, लेकिन असल में कानूनी रूप से ऐसा नहीं होता। सिर्फ शादी करने से किसी महिला को पति या ससुराल की संपत्ति में कोई स्वामित्व तब तक नहीं मिलता कि जब तक उसे उस संपत्ति का हिस्सेदार नहीं बनाया जाता। 

उसके बाद भी महिला का उस संपत्ति पर पूरी तरह से हक नहीं मिलता है। उसमें बच्चों, प्रथम श्रेणी व द्वितीय श्रेणी के हकदारों आदि को भी देखा जाता है। यानी यहां तक भी देखा जाता है कि ससुराल में उक्त प्रोपर्टी स्वअर्जित है या पैतृक (ancestral property), प्रोपर्टी को लेकर कोई वसीयत लिखी गई है या नहीं। उसके बाद ही महिला के हक होने या न होने पर निर्णय लिया जाता है।

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