Putrada Ekadashi Vrat Katha: पुत्रदा एकादशी के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, हर मुराद होगी पूरी!

Putrada Ekadashi Vrat Katha: पुत्रदा एकादशी के दिन जरूर पढ़ें यह व्रत कथा, हर मुराद होगी पूरी!

पुत्रदा एकादशी व्रत कथा

Vaikuntha Ekadashi vrat katha: एकादशी तिथि हिंदू धर्म में सबसे विशेष महत्व रखती है. एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे उत्तम मानी गई है. हर माह के कृष्ण और शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर व्रत किया जाता है. पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है. एक साल में दो बार पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जाता है. एक पौष माह में और एक श्रावण यानी सावन महीने में.

पौष पुत्रदा एकादशी को वैकुंठ एकादशी भी कहा जाता है. धार्मिक मान्यता है कि पुत्रदा एकादशी के दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा-अर्चना और व्रत रखने से संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं और व्यक्ति को वैकुंठ लोग की प्राप्ति होती है. संतान की लंबी उम्र और उनके खुशहाल जीवन की कामना के लिए महिलाएं पुत्रदा एकादशी का व्रत रखती हैं.

आज यानी 10 जनवरी 2025 को पौष पुत्रदा एकादशी का व्रत रखा जा रहा है. पुत्रदा एकादशी के दिन महिलाएं विधिवत भगवान विष्णु की उपासना करती हैं और निर्जला व्रत रखती हैं. पुत्रदा एकादशी के दिन इसकी व्रत कथा का पाठ जरूर करना चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि इस व्रत कथा पढ़ने से पुत्रदा एकादशी व्रत का पूर्ण फल मिलता है. साथ ही, पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा का पाठ करने से पूजा सफल होती है और श्रीहरि विष्णु प्रसन्न होते हैं. ऐसे में चलिए पढ़ते हैं पुत्रदा या वैकुंठ एकादशी की व्रत कथा हिंदी में.

पुत्रदा एकादशी की कथा क्या है? (Putrada ekadashi vrat katha in Hindi)

प्राचीन समय में भद्रावती नगर में सुकेतुमान नाम का एक राजा राज्य करता था. सबकुछ होने के बाद भी वह दुखी रहता था, क्योंकि उसके कोई संतान नहीं थी. राजा की पत्नी का नाम शैव्या था. उस पुत्रहीन राजा के मन में इस बात का बहुद दुख था कि उसके बाद उसे और उसके पूर्वजों का पिंडदान कौन करेगा. बिना पुत्र के पितरों और देवताओं से उऋण नहीं हो सकते हैं. इन्हीं चिंताओं के बारे में सोचकर राजा हमेशा चिंतिंत रहता था.

इस चिंता के कारण एक दिन राजा इतना दुखी हो गया कि उसके मन में अपने शरीर को त्याग देने की इच्छा याना आत्महत्या की इच्छा उत्पन्न हुई लेकिन वह सोचने लगा कि आत्महत्या करना तो महापाप है. यह सोचने के बाद राजा ने इस विचार कोअपने मन से निकाल दिया. एक दिन राजा घोड़े पर सवार होकर जंगल की ओर चल दिया. पानी की तलाश में राजा आगे बढ़ता रहा.

कुछ दूर जाने पर उसे एक नदी मिली. उस नदी के किनारे बैठे हुए ऋषियों को प्रणाम कर राजा उनके सामने बैठ गया. ऋषिवर बोले – ‘हे राजन! हम तुमसे बहुत प्रसन्न हैं. तुम्हारे मन में जो इच्छा है, हमसे कहो. हम निश्चय ही उसका हल निकालेंगे.’ राजा ने प्रश्न किया – ‘हे विप्रो! आप कौन हैं और यहां क्यों रह रहे हैं?’

ऋषि राजा से बोले – ‘हे राजन! आज पुत्र की इच्छा करने वाले को श्रेष्ठ पुत्र प्रदान करने वाली पुत्रदा एकादशी का दिन है और आज से पांच दिन बाद माघ स्नान है, इसलिए हम सब इस नदी में स्नान करने आए हैं.’ ऋषियों की बात सुनकर राजा ने कहा – ‘हे मुनियो! मेरी भी कोई संतान नहीं है, अगर आप मुझसे प्रसन्न हैं तो कृपा कर मुझे एक पुत्र का वरदान दीजिए.’

ऋषि बोले – ‘हे राजन! आज पुत्रदा एकादशी है. आप इसका उपवास रखें और विधिवत पूजा-अर्चान करें. भगवान श्रीहरि की कृपा से आपके घर अवश्य ही पुत्र का जन्म होगा.’ राजा ने मुनि के कहे अनुसार पुत्रदा एकादशी के दिन उपवास किया और द्वादशी तिथि को व्रत का पारण किया और ऋषियों को प्रणाम करके वापस अपने नगर आ गया.

भगवान श्रीहरि की कृपा से कुछ दिनों बाद ही राजा की पत्नी गर्भवती हो गई और 9 महीने बाद राजा के घर एक तेजस्वी पुत्र का जन्म हुआ. यह राजकुमार बड़ा होने पर बहुत वीर, धनवान, यशस्वी और प्रजापालक बना.” इस प्रकार जो भी निसंतान दंपति पुत्रदा एकादशी के दिन विधिवत उपवास करते हैं, तो श्रीहरि की कृपा से उन्हें संतान सुख की प्राप्ति होती है.

पुत्रदा एकादशी का पारण कब से कब तक है? (Purada ekadashi 2025 vrat parana time)

एकादशी व्रत का पारण अगले दिन यानी द्वादशी तिथि में किया जाता है. पंचांग के अनुसार, पुत्रदा एकादशी व्रत का पारण 11 जनवरी को सुबह 07 बजकर 15 मिनट से लेकर सुबह 8 बजकर 21 मिनट तक कर सकते हैं.

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