Willful Bank Defaulters: रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने बैंकों को कठोर निर्देश दिए हैं कि वे जानबूझकर लोन चुकाने में आनाकानी करने वाले ग्राहकों को बिना किसी देरी के विलफुल डिफॉल्टर के रूप में चिह्नित करें. आरबीआई के इस कदम का उद्देश्य वित्तीय संस्थानों में अनुशासन सुनिश्चित करना और जानबूझकर लोन न चुकाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करना है.
विलफुल डिफॉल्टर की पहचान
विलफुल डिफॉल्टर वे होते हैं जिनके पास भुगतान करने की क्षमता होती है. फिर भी वे जानबूझकर लोन की अदायगी से बचते हैं. आरबीआई के अनुसार ऐसे व्यक्तियों को तेजी से इस श्रेणी में डाला जाना चाहिए ताकि बैंकों को उनसे बकाया रकम की वसूली में मदद मिल सके.
प्रक्रिया और प्रभाव
जब किसी लोन अकाउंट की EMI तीन महीने तक नहीं चुकाई जाती, तो उसे नॉन-परफॉर्मिंग एसेट (NPA) माना जाता है. इस स्थिति में बैंक उस व्यक्ति को विलफुल डिफॉल्टर घोषित करने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं. इस प्रक्रिया में लोन लेने वाले को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया जाता है.
गारंटर पर भी कार्रवाई
अगर ग्राहक लोन चुकाने में असमर्थ होता है और वह विलफुल डिफॉल्टर के रूप में चिह्नित हो जाता है, तो गारंटर पर भी वसूली की कार्रवाई की जा सकती है. यह सुनिश्चित करता है कि बैंक को उनका पैसा वापस मिल सके.
आरबीआई का कड़ा रुख
आरबीआई का यह कदम बैंकिंग सिस्टम में जवाबदेही और अनुशासन सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है. यह न केवल वित्तीय प्रणाली की स्वास्थ्यता बनाए रखने में मदद करता है. बल्कि उधारकर्ताओं के लिए भी एक सख्त संदेश है कि जानबूझकर अदायगी में चूक करना उन्हें महंगा पड़ सकता है.