मुफ्त रेवडी पर भडका सुप्रीम कोर्टः जजों को सैलरी दे नहीं रहे, लोगों को बांट रहे मुफ्त

Supreme Court gets angry over free sweets: Judges are not being paid salaries, they are being distributed to people for freeSupreme Court gets angry over free sweets: Judges are not being paid salaries, they are being distributed to people for free

नई दिल्ली। दिल्ली चुनावों से ऐन पहले सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर गंभीर चिंता जताई है कि राज्यों के पास लोगों को मुफ्त सुविधाएं देने के लिए पर्याप्त पैसे हैं लेकिन जब जजों को सैलरी और पेंशन देने की बात आती है तो सरकारें यह कहती हैं कि वित्तीय संकट है। मंगलवार को जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ए जी मसीह की खंडपीठ ने ये टिप्पणी तब की, जब देश के अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमानी ने कहा कि सरकार को न्यायिक अधिकारियों के वेतन और सेवानिवृत्ति लाभों पर निर्णय लेते समय वित्तीय बाधाओं पर विचार करना होगा।

ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन बनाम भारत संघ एवं अन्य से जुड़े एक मामले की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने विशेष रूप से महाराष्ट्र सरकार की लाडली-बहना योजना और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आगामी विधानसभा चुनावों से पहले विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा किए जा रहे चुनावी वादों का हवाला देते हुए ऐसा कहा। बेंच ने कहा कि कोई 2100 रुपये तो कोई 2500 रुपये देने का वादा कर रहा है लेकिन जजों को वेतन और पेशन देने के लिए पैसे नहीं हैं।

जस्टिस संजीव खन्ना के बाद इसी साल CJI बनने जा रहे जस्टिस गवई ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “राज्य के पास उन लोगों के लिए खूब पैसा है, जो कोई काम नहीं करते हैं। जब हम वित्तीय बाधाओं की बात करते हैं तो हमें इस पर भी गौर करना चाहिए। चुनाव आते ही आप लाडली बहना और अन्य नई योजनाओं की घोषणा करते हैं, जिसमें आपको निश्चित राशि का भुगतान करना होता है। दिल्ली में अब किसी न किसी पार्टी ने घोषणा की है कि अगर वे सत्ता में आए तो 2500 रुपये का भुगतान करेंगे।”

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, खंडपीठ की टिप्पणी पर अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया कि मुफ्तखोरी की संस्कृति को एक विचलन माना जा सकता है लेकिन वित्तीय बोझ की व्यावहारिक चिंताओं को ध्यान में रखा ही जाना चाहिए। दरअसल, खंडपीठ ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन की 2015 की उस अर्जी पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कहा गया था कि जजों को वेतन और सेवानिति लाभ समय पर नहीं मिल रहा है। याचिका में कहा गया है कि कई जजों को समय पर वेतन भुगतान से भी वंचिक होना पड़ रहा है।

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