MP की एक ट्रायल कोर्ट ने 2013 में 21 वर्षीय युवक को 9 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार और हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई थी। घटना के केवल एक महीने बाद दो अन्य अदालतों ने भी उसे फांसी की सजा दी थी।
इस मामले में, इस साल मार्च में एक ट्रायल कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य का गलत विश्लेषण किया गया था और उसे निर्दोष करार दिया।
बीबीसी के संवाददाता इस मामले पर बात करने के लिए मध्य प्रदेश के एक गाँव पहुंचे थे, जहां वे पीड़िता के परिवार और आरोपी युवक से मिले।
11 साल बाद घर लौटे अनोखी लाल का स्वागत करने के लिए उनके रिश्तेदार और परिवारवाले एकत्र हुए थे। हैरानी की बात यह थी कि अनोखी लाल अपनी मातृभाषा भूल चुके थे और कई रिश्तेदारों को पहचान भी नहीं पा रहे थे।
अनोखी लाल ने कहा, ‘इन 11 सालों में मैंने बहुत कुछ भूल दिया था।’ फिर धीरे-धीरे कुछ बातें याद आने लगीं।
9 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार और हत्या के आरोप में अनोखी लाल ने लगभग 11 साल या 4,033 दिन जेल में बिताए थे। यह मामला पांच राउंड की कानूनी प्रक्रिया से गुजरा और छठी बार ट्रायल कोर्ट ने उन्हें निर्दोष करार दिया।
एक दशक बाद इस उलटफेर का कारण क्या था और इस अनियंत्रित कानूनी प्रक्रिया ने आरोपी और पीड़िता के परिवार पर क्या असर डाला?
मामला क्या था?
मध्य प्रदेश में जनवरी 2013 में एक 9 वर्षीय लड़की अपने घर से लापता हो गई थी। लड़की के माता-पिता ने उसकी गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराई थी और बताया कि उन्होंने अपनी बेटी को आखिरी बार 21 वर्षीय अनोखी लाल के साथ देखा था। अनोखी लाल गाँव में दूधवाले की दुकान में काम करते थे। गाँव के एक अन्य निवासी ने अदालत में लड़की के माता-पिता की बातों का समर्थन किया था।
हालांकि, अनोखी लाल ने दावा किया था कि वह घटना के समय गाँव में नहीं थे।
दो दिन बाद लड़की की लाश उसके पिता को मिल गई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के अनुसार, हत्या से पहले लड़की से बलात्कार किया गया था। अनोखी लाल को मुख्य आरोपी बनाया गया और जल्द ही उनकी गिरफ्तारी हो गई।
यह घटना मीडिया में सुर्खियों में आ गई थी। पत्रकार जय नागदा ने कहा, ‘लोगों में गुस्सा था और पुलिस व न्याय व्यवस्था पर दबाव था।’
यह घटना 2012 में दिल्ली में 22 वर्षीय मेडिकल छात्रा से बलात्कार और हत्या की घटना के बाद की थी। उस घटना ने देशभर में जबरदस्त गुस्से का माहौल पैदा किया था। मोमबत्तियां जलाकर उसका विरोध किया गया था। इस मामले में तेज न्याय और बलात्कारियों को कड़ी सजा देने की मांग की जा रही थी।
कुछ पत्रकारों ने कहा था कि अनोखी लाल का मामला तेज़ी से बढ़ा था, इसका एक कारण यह हो सकता है।
पुलिस ने केवल 9 दिनों में जांच पूरी की और तुरंत मुकदमा शुरू किया। दो सप्ताह में अनोखी लाल को फांसी की सजा सुनाई गई। ट्रायल कोर्ट ने कहा था कि अनोखी लाल ‘समाज के लिए शाप और खतरा हैं।’
सारा कुछ बहुत तेजी से हुआ था। अनोखी लाल ने कहा, ‘सभी चीजें इतनी जल्दी हो गईं कि मुझे या मेरे परिवार को या मेरे वकील को यह समझने का वक्त ही नहीं मिला कि क्या हो रहा है।’
अनोखी लाल एक गरीब आदिवासी परिवार से थे। राज्य सरकार ने उन्हें एक प्रॉ-बोनो वकील दिया था, जो उन्हें मुकदमा शुरू होने पर पहली बार मिले थे।
उन्होंने बताया कि मुकदमे की प्रक्रिया के बारे में उन्हें बहुत कम समझ थी। ‘मैं कभी स्कूल नहीं गया। दस साल का था तब से काम कर रहा था।’
फिर किसी ने उन्हें बताया कि उन्हें फांसी की सजा दी गई है। वे कहते हैं, ‘मैं स्तब्ध हो गया था। कांपने लगा था। फिर खुद को संभालने के लिए थोड़ा समय लगा था।’
पुलिस ने इस मामले को ‘कठिन’ मानते हुए कहा था, क्योंकि कोई प्रत्यक्ष गवाह नहीं था। केवल डीएनए और अन्य परिस्थितिजन्य साक्ष्य थे।
हालांकि, कई कानूनी विशेषज्ञों ने इस मामले को बहुत जल्दी निपटाने पर सवाल उठाए थे। जय नागदा ने एक वकील से संबंधित रिपोर्ट दिखाते हुए कहा था कि इस मामले में वास्तव में न्याय हुआ था या नहीं, यह सवाल उठाया था।
11 साल बाद यह चेतावनी सच साबित होती हुई नजर आई।
न्याय का लंबा रास्ता
यह मामला देश की विभिन्न अदालतों के चक्रव्यूह से गुज़रा। उच्च न्यायालय ने 2013 में फैसले को सही ठहराया।
अनोखी लाल ने बताया कि शुरुआती महीनों में वह हताश थे, ‘मैं ठीक से खाना नहीं खा रहा था। मैंने आत्महत्या करने का फैसला किया था, लेकिन मुझे मौका नहीं मिला। अगर मौका मिला होता, तो मैंने अपनी जान ले ली होती।’
(मृत्युदंड की सजा पाने वाले लोगों में मानसिक बीमारी आम होती है। 2021 में एक अध्ययन में पाया गया कि ऐसे 62 प्रतिशत लोग मानसिक बीमारी से पीड़ित होते हैं।)
छह साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले की जांच और मुकदमे में ‘स्पष्ट खामियां’ थीं। उसी दिन बचाव पक्ष के लिए वकील नियुक्त किए गए थे और उनके पास दस्तावेजों को जांचने का समय नहीं था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे मामले को फिर से चलाने का आदेश दिया।
अनोखी लाल ने कहा, ‘इससे थोड़ी उम्मीद जगी थी।’ तब तक वह जेल के माहौल में समाहित हो चुके थे। आत्महत्या के विचार कम हो गए थे। ‘मैंने जेल में दोस्त बनाए थे। उन्होंने मुझे बहुत सहारा दिया था।’
जन्म से एक प्रवासी मजदूर के रूप में काम करने वाले अनोखी लाल ने कहा कि उन्होंने इंदौर की जेल में सबसे ज्यादा समय बिताया। उन्होंने पढ़ाई शुरू की और जेल में रहकर 10वीं कक्षा तक की शिक्षा पूरी की थी।
अनोखी लाल कहते हैं, ‘जेल में मैं पढ़ता, कसरत करता और प्रार्थना भी करता था। इन सब से मानसिक स्वास्थ्य बनाए रखने में बहुत मदद मिली।’
हालांकि, उनका आनंद अल्पकालिक साबित हुआ। ट्रायल कोर्ट ने नए फैसले में तीन साल का समय लिया था। उन्हें फिर से फांसी की सजा सुनाई गई थी।
उस समय प्रोजेक्ट 39ए नामक एक शोध और कानूनी सहायता संगठन ने अनोखी लाल के मामले को लिया था।
अनोखी लाल कहते हैं, ‘वह लोग मुझे जेल में मिलने आए पहले लोग थे। अब तक कोई वकील मुझे मिलने नहीं आया था।’
उन्होंने उच्च न्यायालय में फिर से अपील की थी। उनके वकीलों ने बताया कि डीएनए रिपोर्ट में कई समस्याएँ थीं। इन समस्याओं को इस मामले की दस साल की विभिन्न ट्रायल्स में नहीं दिखाया गया था।
जिन विशेषज्ञों ने यह रिपोर्ट तैयार की थी, उन्होंने सभी संबंधित दस्तावेजों को कोर्ट में पेश करने और उनसे पूछताछ करने की मांग की थी। उच्च न्यायालय ने इसे मंजूरी दी और मामला फिर उसी कोर्ट में गया, जहां 2013 में इसकी शुरुआत हुई थी।
डीएनए रिपोर्ट की गहरी जांच के साथ ही इस मामले में सब कुछ बदल गया था।
सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि लड़की के प्राइवेट पार्ट्स से मिले डीएनए का अनोखी लाल से कोई संबंध नहीं था, बल्कि किसी अन्य पुरुष का था। अब तक अदालतों ने यह कहा था कि वह डीएनए ‘पुरुष का’ था और अनोखी लाल की ओर इशारा करते हुए अन्य साक्ष्य थे। इसलिए उन्हें दोषी ठहराया गया था।
कोर्ट के सामने कपड़ों और बालों से मिले डीएनए जैसे अन्य साक्ष्य थे। इस पर कोर्ट ने कहा था कि उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। उनकी देखभाल ठीक से नहीं की गई थी और ऐसे साक्ष्य ‘आसानी से उत्पन्न किए जा सकते थे’ इसलिए पुलिस को यह साबित करना पड़ा कि उनके साथ छेड़छाड़ नहीं की गई थी।
इस तरह, वही कोर्ट जिसने अनोखी लाल को 2013 में दोषी ठहराया था, ने 11 साल बाद उन्हें निर्दोष करार दिया।
पीड़िता की कहानी
अनोखी लाल कहते हैं कि जब वह जेल से बाहर आए तो उनका शहर पूरी तरह बदल चुका था। ‘नए रास्ते, नई इमारतें बन गई थीं।’
कोर्ट से सैंकड़ों किलोमीटर दूर बैठे पीड़िता के पिता कहते हैं कि उन्हें अनोखी लाल के रिहा होने के बारे में पता नहीं था। उन्होंने कहा, ‘किसी अजनबी ने मुझे फोन करके कहा था कि अनोखी लाल को रिहा किया गया है।’
इस मामले में, पुलिस और देश की न्याय व्यवस्था पर शिकायत करते समय उनके आवाज में गुस्सा और दर्द साफ झलकता है। उन्होंने कहा, ‘हमारा गुस्सा शांत करने के लिए उन्हें फांसी की सजा दी थी। बाद में वह बाहर आ गए। पूरा प्रशासन जिम्मेदार लोगों से भरा हुआ है।’
यदि उनके पास निजी वकील की सेवाएं होती, तो स्थिति अलग होती, ऐसा उन्हें लगता है। ‘मुख्य समस्या यह है कि मैं गरीब हूं।’
उन्होंने कहा, ’11 साल बाद भी वह घटना मुझे परेशान करती है। अगर बेटी जीवित होती तो अब 21 साल की होती। वह मेरी बड़ी बेटी थी। मेरे दिल का टुकड़ा थी।’
उन्होंने कहा, ‘समाचारों में बलात्कार की घटनाएं देखता हूं तो बहुत परेशान हो जाता हूं। उलझन महसूस करता हूं। इसलिए मैंने अब समाचार देखना ही छोड़ दिया है।’
न्याय पाने की कीमत
अनोखी लाल भी पूरी प्रणाली पर सवाल उठाते हैं, जिसने उन्हें 11 साल पहले फांसी की सजा दी थी। वे कहते हैं, ‘आपका जीवन खत्म हो जाता है और फिर आपको न्याय मिलता है।’
वे आश्चर्य जताते हुए कहते हैं, ‘अगर मैंने आत्महत्या कर ली होती तो क्या होता? सभी ने यही सोचा होता कि मैंने अपराध किया था और इसलिए आत्महत्या की।’
अनोखी लाल कहते हैं कि इस मामले ने उनका जीवन ‘बर्बाद कर दिया है। समाज अब भी यही मानता है कि मैं अपराधी हूं।’
जेल में बिताए गए वर्षों पर आश्चर्य जताते हुए वे कहते हैं, ‘मेरे बचपन के सभी दोस्तों ने जीवन में प्रगति की है। उन्होंने काम किया है, पैसे बचाए हैं। उनके अपने परिवार हैं। उनके बच्चे बड़े हो गए हैं।’
हालांकि, अनोखी लाल कहते हैं कि उन्हें फिर से शुरुआत करनी होगी। ‘पिछले 11 सालों का बदला मुझे कौन देगा?’
यह मामला केवल अनोखी लाल को ही नहीं, उनके पूरे परिवार को घेरने वाला था। पैसों की समस्या पहले से थी, वह और भी गंभीर हो गई थी। मिलने-जुलने में भी कठिनाई थी। अनोखी लाल के भाई तेजराम कहते हैं, ‘जब मैं उन्हें जेल में मिलने जाता था तो कई बार रेलवे प्लेटफॉर्म पर सोता था, क्योंकि मेरे पास होटल में रहने के पैसे नहीं थे।’
इस मामले के कानूनी खर्च को पूरा करने के लिए उनके परिवार को अपनी आधी-आधी ज़मीन बेचनी पड़ी थी और वह पैसा भी जल्द ही खर्च हो गया। इससे परिवार फिर से मुश्किल में पड़ गया था।