अभी हाल में मैक्स प्लेयर पर एक वेब सीरीज़ रिलीज़ हुई। जिसमें यह बताया गया है कि इंसान अपनी क़िस्मत ख़ुद लिखता है। इस वेब सीरीज में बताया और दर्शाया गया है कि इंसान की किस्मत उसके कर्मों से बनती है। हम जैसा कर्म करते हैं, हमारी किस्मत भी वैसी ही होती है। आज हम आपको एक ऐसी ही कहानी से रूबरू कराने जा रहें। जो वैसे तो कहानी एक आईएएस (IAS) की है, लेकिन जिन्होंने बहुत संघर्षों के बाद ये मुकाम पाया है। तो आइए जानते है इस आईएएस से जुड़ी कहानी…
बता दें कि हम आईएएस (IAS) शेख अंसार अहमद की बात कर रहें है। जिनका जन्म महाराष्ट्र के एक छोटे से गाँव में हुआ। अहमद का परिवार बहुत ही गरीब था। उनके पिता ऑटो चलाते थे, अहमद की 2 बहन और 1 भाई है। इतने बड़े परिवार का खर्च निकालना बहुत मुश्किल था। इसलिए उनकी माँ अपने घर का काम करने के बाद दूसरों के खेतों में काम किया करती थी।
घर की आर्थिक तंगी की वजह से उनके पिता ने उनकी पढ़ाई छुड़वाने की सोची, परन्तु अहमद पढ़ाई में बहुत होशियार थे। इसलिए उनके अध्यापक पुरुषोत्तम पडुलकर ने उनके पिता को ऐसा ना करने की सलाह दी और अहमद कहते है कि अगर उस समय उनके अध्यापक ने उनका साथ नही दिया होता तो वो भी आज ऑटो ही चला रहे होते।
जब कंप्यूटर सीखने के लिए होटल में जूठे बर्तन करने पड़े साफ…
अहमद के पिता ने उनके अध्यापक की बात मान ली और उनकी पढ़ाई को जारी रखा। जब वो 10 वीं में थे तो 10 वीं की गर्मियों की छुट्टी में उन्होंने ये तय किया कि वो कंप्यूटर का कोर्स करेंगे, परन्तु उस समय कंप्यूटर क्लास की फीस 2800 रुपये थी। उन्हें अपने आर्थिक स्थिति के बारे में पता था इसलिए उन्होंने पैसे का इंतजाम करने के लिए एक होटल में वेटर की नौकरी कर ली। सुबह 8 बजे से 11 बजे तक वो होटल के जूठे बर्तन साफ करते। फ़िर कुएं से पानी भरते, टेबल साफ करने के साथ-साथ वो रात में होटल की फर्श भी साफ करते थे। इन सब कामों के बीच उन्हें 2 घंटे का समय मिलता था। जिसमे वो खाना खाते और कंप्यूटर क्लास करने जाते थे।
भ्रष्टाचार ख़त्म करना है इनका लक्ष्य…
बता दें कि ये बात उस दौरान की है। जब अहमद अपने पिता के साथ बीपीएल योजना से जुड़े काम करने के लिए सरकारी ऑफिस पहुँचे। वहां के अफसर ने उनके पिता से उनका काम करने के लिए रिश्वत मांगी। जब अहमद ने अपने पिता से पूछा कि उन्होंने रिश्वत क्यों दी? तो उनके पिता ने उन्हें कहा कि बिना रिश्वत दिए यहाँ कुछ नही होता है।
मालूम हो तभी से अहमद ने यह ठान ली कि वो एक दिन अफसर बनकर समाज से भ्रस्टाचार को खत्म करेंगे। वो जिस कॉलेज में पढ़ते थे वहाँ के एक शिक्षक का चयन एमपीएससी (MPSC) में हुआ था। अहमद ने उनसे प्रभावित होकर उनसे सारी जानकारी ली। उस दौरान उनके शिक्षक ने भी उन्हें यूपीएससी (UPSC) के लिए कैसे तैयारी करे। इस विषय में सारी बातें बताई। जिसके बाद अहमद का एमपीएससी (MPSC) में चयन नही हो पाया।
फ़िर शुरू की कड़ी मेहनत और बन गए आईएएस अधिकारी…
अहमद की यात्रा यहीं नहीं रुकी। मुसीबतें तो उनके पीछे पीछे चल रही थी, लेकिन उन्होंने भी जैसे ठान लिया था कि वो कुछ करके ही दम लेगें। ऐसे में अहमद ने अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई उन पैसों से की। जो वो गर्मियों की छुटियों में कमाते थे। जब उनके ग्रेजुएशन के दो साल बाकी थे। तो उन्हें यूपीएससी की तैयारी करने के लिए अपना पूरा ध्यान पढ़ाई पर लगाना था। जिसकी वजह से उन्होंने काम करना छोड़ दिया। परन्तु पैसों का इंतजाम उनके छोटे भाई ने किया वह भी काम करके।
उनके छोटे भाई ने 5 वी क्लास में ही पढ़ाई छोड़ दी थी और काम करना शुरू कर दिया था। अहमद के पास असफल होने का विकल्प था ही नही। इसलिए उन्होंने कड़ी मेहनत की और सफल हुए। साल 2015 में उन्होंने पहले प्रयास में ही 361वीं रैंक के साथ यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली। अहमद अपने परिवार और शिक्षकों को अपनी सफलता का श्रेय देते है। अहमद की आर्थिक स्थिति इतनी दयनीय थी कि जब उन्होंने परीक्षा पास की तो उनके पास पैसे नही थे कि दोस्तो को पार्टी दे सकें। ऐसे में उन्हें दोस्तों ने पार्टी देने की सोची। कुल-मिलाकर देखें तो अहमद अंसार की यह कहानी हमें बताती है कि कर्म के बल पर हम अपना भविष्य लिख सकते हैं। बस इन सबके लिए कुछ ज़रूरी बातें है तो यह कि हमें वर्तमान की समस्याओं से घबराना नही चाहिए और दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ कर्मपथ पर बनें रहना चाहिए।