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महिला नागा साधु बनना कठिन क्यों है? लगातार कई सालों तक देनी पड़ती है कड़ी परीक्षाएं, फिर मिलता है नया जन्म

महिला नागा साधु बनना कठिन क्यों है? लगातार कई सालों तक देनी पड़ती है कड़ी परीक्षाएं, फिर मिलता है नया जन्म
Women Naga Sadhu: महिला नागा साधु बनना आसान नहीं है। इसमें लंबी और कठिन परीक्षाएं होती हैं। साधु बनने का मानना एक नया जन्म होता है। इसमें ध्यान, तपस्या, और संयम की बड़ी मात्रा चाहिए। इसलिए, यह महिलाओं के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण होता है।भारत में महिलाएं भी नागा साधू बनती हैं। इसके लिए उन्हें कई सालों की परीक्षा पास करनी पड़ती है।

महिला नागा साधु बनना कठिन क्यों है? लगातार कई सालों तक देनी पड़ती है कड़ी परीक्षाएं, फिर मिलता है नया जन्म

इस पथ पर जाने के लिए उन्हें ध्यान, तपस्या, और संयम की बड़ी मात्रा चाहिए। भारत के कुछ धार्मिक स्थलों में ज्यादातर महिलाएं नागा साधू बनती हैं। महिला नागा साधुओं का जीवन ईश्वर को समर्पित होता है। उनका दिन पूजा-पाठ के साथ शुरू होता है और उसी के साथ समाप्त होता है। चलिए आपको बताते हैं महिला नागा साधु कैसे बनते हैं?

महिला नागा साधु कैसे बनते हैं? (Women Naga Sadhu)

महिलाओं को एक गेरुआ कपड़ा पहनने की अनुमति होती है और उन्हें एक तिलक लगाना होता है। भारत में ज्यादातर नागा साधुओं की महिलाएं नेपाल से आती हैं, और उन्हें नागा साधु बनने के लिए कठिन तप और परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है।

नागा साधु बनने से पहले महिला को 6 से 12 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना पड़ता है। जब वह इसे सफलतापूर्वक पाती है, तब उसे उसके गुरु नागा साधु बनने की अनुमति देते हैं। इसमें सिर का मुंडवाना, नारंगी या लाल रंग का कपड़ा पहनना, और हथियार रखना शामिल होता है। अधिकारिक बनने के बाद, महिला नागा “मां” बन जाती है।

शुरुआती दस सालों तक कठिन ट्रेनिंग दी जाती है ताकि वह साधु बनकर कठिन साधना को सम्पन्न कर सके। नागा साधु बनने के दौरान, महिला को यह साबित करना होता है कि वह पूरी तरह से ईश्वर के प्रति समर्पित है। उसे अब सांसारिक खुशियों से कोई भी लगाव नहीं है। वह स्पष्ट करती है कि उसका पिछला जीवन अब कोई नाता नहीं रखता है और वह सारे बंधनों से मुक्त है। उसे आध्यात्मिक जीवन में प्रवेश के लिए लग्जरी और सुविधाओं के बिना तैयार होना होता है।

नागा साधु बनने से पहले, महिला साधु को अपना पिंडदान करना होता है। इसका मतलब होता है कि वह पुरानी जिंदगी को पीछे छोड़कर नई जिंदगी में पूरी तरह समर्पित हो जाती है। इस प्रक्रिया में वह अपने पिछले जीवन को समाप्त मानती है और उससे अलग हो जाती है। महिलाओं को संन्यासी बनाने की प्रक्रिया आचार्य महामंडलेश्वर द्वारा पूरी की जाती है। नागा साध्वी परंपरा ने विदेशी महिलाओं को भी आकर्षित किया है। इस परंपरा का मुख्य उद्देश्य सनातन धर्म और वैदिक परंपराओं की रक्षा होती है।
महिला और पुरुष नागा साधु में अंतर

पुरुष और महिला नागा साधु में एक बड़ा अंतर है। पुरुष नागा साधु पूरी तरह से नग्न रहते हैं, जबकि महिला नागा साधु अपने शरीर को गेरुए रंग के एक वस्त्र से ढक कर रख सकती हैं। लेकिन अखाड़े में रहते समय भी महिला नागा साधु बगैर वस्त्र धारण किए बगैर ही रहती हैं। कुंभ में महिला नागा साधुओं अपनी टोली के साथ स्नान करती हैं, लेकिन जगह विशेष में पुरुषों का होता है। महिलाओं का स्नान पुरुषों के शाही स्नान के बाद होता है। कुंभ में शाही जुलूस के समय पुरुष नागा साधुओं के पीछे उनका भी दल होता है।

महिला नागा साधुओं को भी पुरुष नागा साधुओं के समान ही इज्जत मिलती है। वे भी कुंभ के पवित्र स्नान में शामिल होती हैं। उनकी आम जीवनशैली सादगी से भरी होती है, वे साधारण भोजन करती हैं और आमतौर पर जमीन पर ही सोती हैं, जिसके लिए उन्हें मामूली चादर या चटाई का इस्तेमाल करना पड़ता है। 
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