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मात्र 12 लाख रुपये में बनकर तैयार हुई थी ये फिल्म, लोगों से चंदा लेकर इकठ्ठा किया था पैसा, रिलीज होते ही ब्लॉकबस्टर हुई साबित

मात्र 12 लाख रुपये में बनकर तैयार हुई थी ये फिल्म, लोगों से चंदा लेकर इकठ्ठा किया था पैसा, रिलीज होते ही ब्लॉकबस्टर हुई साबित

बॉलीवुड दुनिया में सबसे ज्यादा फिल्म बनाने वाली इंडस्ट्री है। आजकल फिल्मों का बजट औसत 50 करोड़ से लेकर 500 करोड़ तक होता है। फिल्म निर्देशकों को आसानी से निवेशक मिल भी जाते हैं। हिंदी सिनेमा में हमेशा ऐसा दौर नहीं था। एक ऐसा भी समय था जब निर्देशकों के पास स्क्रिप्ट, एक्टर समय सबकुछ होता था लेकिन पैसे नहीं होते थे।

इस वजह से सैकड़ों अच्छी फिल्में नहीं बन सकी। इस आर्टिकल में हम एक ऐसी फिल्म के बारे में आपको बताएंगे जिसे चंदा लेकर बनाया गया और फिल्म ने जबरदस्त कामयाबी हासिल की थी। इस फिल्म का नाम था मंथन। ‘मंथन’ (Manthan) एकमात्र भारतीय फिल्म है, जिसे इस साल फेस्टिवल के कान्स क्लासिक सेक्शन के तहत चुना गया है।
चंदा लेकर बनी थी फिल्म

श्याम बेनेगल (Shyam Benegal) बॉलीवुड के एक ऐसे फिल्म निर्देशक रहे हैं जिन्होंने इंडस्ट्री को दर्जनों कल्ट फिल्में दी हैं। उनकी फिल्में आम जन जीवन से जुड़ी और सामाजिक मुद्दों को उठाने वाली रही हैं। श्याम बेनेगल के पास फिल्म मंथन की स्क्रिप्ट थी लेकिन फिल्म बनाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे।

जानकारी के मुताबिक फिल्म को बनाने के लिए 5,00000 किसानों से 2-2 रुपये चंदा लेते हुए 10 लाख रुपये इकट्ठे किए गए थे और तब जाकर ये फिल्म बनी थी और 1976 में रिलीज हुई थी। रिलीज के बाद फिल्म को देखने के लिए ट्रक में भरभर कर किसान सिनेमा हॉल पहुँचे थे।

नसीर और स्मिता की मुख्य भूमिका

मंथन में नसीरुद्दीन शाह (Naseeruddin Shah) और स्मिता पाटिल ने अहम भूमिका निभाई थी। इनके अलावा गिरीश कर्नाड, कुलभूषण खरबंदा और अमरीश पुरी भी दमदार भूमिका में थे। इन कलाकारों की बेहतरीन अदायगी ने फिल्म को ऑलटाइम ग्रेट फिल्म की सूची में शामिल करवा दिया था। फिल्म को 2 नेशनल अवॉर्ड मिले थे।

श्वेत क्रांति आंदोलन से प्रेरित

मंथन फिल्म वर्गीज कुरियन द्वारा चलाए गए श्वेत क्रांति यानी दुध के आंदोलन से प्रेरित थी। ये आंदोलन वर्गीज ने देश में दुध की कमी दूर करने और घर घर दूध पहुँचाने के उद्देश्य से चलाया था। विजय तेंदुलकर ने उनके साथ मिलकर फिल्म की स्क्रिप्ट लिखी थी और फिर श्याम बेनेगल ने इसे पर्दे उतार कर एक जरुरी फिल्म बना दी। फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार तो मिला ही था विजय तेंदुलकर को भी बेस्ट स्क्रिप्ट के लिए नेशनल अवार्ड दिया गया था।

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